अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए क्रीमीलेयर संबंधी कानून में संशोधन के सवाल पर दो तरह की स्थितियां उत्पन्न हो गई है। पहली यह कि देश भर के ओबीसी प्रतिनिधि इस पक्ष में हैं कि सरकार बी. पी. शर्मा कमेटी की उन अनुशंसाओं को खारिज कर दे जिनके तहत वेतन से प्राप्त आय को वार्षिक आय में शामिल करने का प्रस्ताव है। दूसरी और सत्तासीन भाजपा के ओबीसी सदस्य भी इस खतरे को भलीभांति समझ रहे हैं कि यदि शर्मा कमेटी की अनुशंसा लागू हो गयीं तब ओबीसी का आरक्षण अर्थहीन हो जाएगा। संभवत: यही वजह है कि ओबीसी मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह, ओबीसी सांसदों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को ट्वीट करने का आह्वान कर रहे हैं। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी भी चिंतित हैं और इसी चिंता के कारण उन्होंने बीते 21 जुलाई, 2020 को आयोग के अन्य सदस्यों के साथ गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
बताते चलें कि पिछले वर्ष केंद्र सरकार के केंद्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने मंत्रालय के पूर्व सचिव बी.पी. शर्मा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था जिसे सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) में कार्यरत आरक्षित वर्गों के ग्रुप सी व ग्रुप डी स्तर के कर्मियों के लिए पदों की समतुल्यता का निर्धारण करना था ताकि उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिल सके। उन्होंने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी। मीडिया में प्रकाशित समाचारों के मुताबिक, इस समिति ने डीओपीटी द्वारा 1993 में जारी ऑफिस मेमाेरेंडम को ही बदल देने की बात कही और कहा कि वार्षिक आय में वेतन से प्राप्त आय शामिल किया जाय।
इस मामले में खास बात यह है कि केंद्र सरकार के स्तर पर बी.पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसा को लागू करने संबंधी निर्णय लिया जा चुका है और प्रस्ताव सहमति के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पास लंबित है। हाल ही में फारवर्ड प्रेस से बातचीत में आयोग के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी ने कहा कि आयोग के पास पिछले 6 महीने से कैबिनेट नोट लंबित है।
अमित शाह से मुलाकात अच्छी रही : भगवानलाल साहनी
अमित शाह से मुलाकात के संबंध में साहनी ने दूरभाष पर फारवर्ड प्रेस को बताया कि “मुलाकात का मकसद सरकार का ध्यान क्रीमीलेयर से जुड़े सवालों की तरफ आकृष्ट कराना था। इस संबंध में अमित शाह जी से अच्छी बातचीत हुई और ऐसा लगता है कि सरकार भी मूड में है। लेकिन कोई फैसला नहीं लिया गया है।”

एक सप्ताह में समर्पित करेंगे अपना विचार : सुधा यादव
वहीं आयोग की सदस्य सुधा यादव ने बताया कि अमित शाह के साथ आयोग के सदस्यों की औपचारिक मुलाकात थी। इस मुलाकात के दौरान ओबीसी से जुड़े कई विषयों पर बातचीत हुई। इनमें क्रीमीलेयर का मामला भी है। सुधा यादव ने बताया कि सार्वजनिक लोकउपक्रमों में काम करने वाले ओबीसी कर्मियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसा 1993 से चल रहा है। पदों की समतुल्यता का निर्धारण नहीं हो पाया है। मुलाकात के दौरान इस विषय पर भी बातचीत हुई। साथ ही इस विषय पर भी रायशुमारी हुई कि क्रीमीलेयर की राशि 8 लाख से बढ़ाकर 12 लाख कर देने से पदों की समतुल्यता की समस्या खत्म हो जाएगी। वहीं वार्षिक आय में वेतन से प्राप्त आय को शामिल करने का सवाल भी विमर्श के दौरान लाया गया।
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सुधा यादव ने कहा कि इस संबंध में उनका एक पक्ष यह भी है कि पेरामिलिट्री फोर्स के वे जवान जो ऊंचाई वाले इलाकों में या सीमा पर तैनात हैं या फिर लद्दाख व कश्मीर में हैं, उन्हें दिए जाने वाले विशेष भत्तों को आय में शामिल नहीं किया जाय।इस संबंध में अमित शाह ने उनसे कहा कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है और सरकार यह मानती है कि ये भत्ते जवानों का सम्मान बढ़ाने के लिए दिये जाते हैं।
सुधा यादव ने कहा कि फिलहाल इन सभी मामलों का कोई नतीजा नहीं निकला है। हम सभी मुद्दों पर विचार कर रहे हैं। उम्मीद है कि अगले सप्ताह तक हम अपनी राय से सरकार को अवगत करा देंगे।
ओबीसी का कस्टोडियन है राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, समझे अपनी जिम्मेदारी
बहरहाल, क्रीमीलेयर मामले में सरकार का रूख क्या होगा, यह स्पष्ट नहीं है कि वह वार्षिक आय में वेतन से प्राप्त आय को शामिल करेगी या नहीं। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह से आयोग के सदस्यों की यह मुलाकात सरकार की अपनी संरचना पर सवाल जरूर खड़ा करता है। इस पूरी प्रक्रिया में डीओपीटी व केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय शिथिल है। यहां तक कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को अमित शाह से अनुरोध करना पड़ रहा है। वह भी तब जबकि वर्ष 2018 में ही आयोग को संवैधानिक शक्तियां प्रदान कर दी गयी थीं।
इस संबंध में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के महासचिव सचिन राजुरकर का कहना है कि यह सब दिग्भ्रमित करने वालीं बातें हैं। यदि आयोग के अध्यक्ष व सदस्य बी.पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसओं से असहमत हैं तो उनके पास जो कैबिनेट नोट विचार के लिए लंबित है, उसमें यह स्पष्ट कर दें। चूंकि आयोग के पास अब संवैधानिक अधिकार है और वह चाहे तो सरकार को निर्देश भी दे सकता है। राजुरकर ने यह भी कहा कि आयोग अपनी शक्तियों को पहचाने। एक तरह से वह देश भर के ओबीसी वर्ग के लोगों का कस्टोडियन है। उनके हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी आयोग की है।
(संपादन : अनिल/अमरीश)
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