लोकतंत्र में संसद का महत्वपूर्ण स्थान है। संविधान के मुताबिक, सरकार, संसद के प्रति जिम्मेदार होती है। संसद सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से सरकार जनता के प्रति भी जवाबदेह होती है। परंतु, कोविड-19 के कारण देश में संसदीय गतिविधियां ठप्प हैं और इस कारण कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार से सवाल करने के उद्देश्य से अनेक जनसंगठनों द्वारा संयुक्त रूप से “जनता संसद” का आयोजन बीते 16 अगस्त, 2020 से किया जा रहा है। ऑनलाइन प्लेटफोर्मों के जरिए यह राष्ट्र स्तरीय आयोजन 21 अगस्त को शाम 6:00 बजे तक चलेगा। इसका थीम है “जनता की संसद, जनता के द्वारा, जनता के लिए”।
ऑनलाइन देखें जनता संसद की कार्यवाही और भाग लें
आयोजकों में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, मजदूर किसान शक्ति संगठन, एकता परिषद, जन स्वास्थ्य अभियान, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए), पर्यावरण सुरक्षा समिति, कल्पवृक्ष, विकल्प संगम, अखिल भारतीय किसान सभा समेत चार दर्जन से ज्यादा सामाजिक-नागरिक संगठन, अनेक बुद्धिजीवी एवं शिक्षाविद शामिल हैं।

“जनता संसद” में हो रही चर्चाओं का सीधा प्रसारण किया जा रहा है। साथ ही, यह कोशिश की गयी है कि इससे देश भर के लोग जुड़ सकें, इसके लिए कार्यवाही को अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ में सुनने की सुविधा आयोजकों द्वारा दी गई है। इस आयोजन से जुड़ने के लिए यहां क्लिक कर पंजीकरण कराना जरूरी है। यदि कोई केवल जनता संसद की कार्यवाही देखना चाहता है या उसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता है तो यहां क्लिक कर वेबसाइट का अवलोकन कर सकता है। इसके अलावा फेसबुक के जरिए भी इस कार्यक्रम से जुड़ा जा सकता है।
तीस घंटे तक चलेगी जनता संसद की कार्यवाही
“जनता संसद” के उद्घाटन सत्र में न्यायमूर्ति ए. पी. शाह, सैयदा हमीद, जिग्नेश मेवाणी और सोनी सोरी आदि शामिल हुए। इस सत्र में सभी ने यह चिंता जाहिर की कि सरकार द्वारा महामारी के दौर में जवाबदेही से बचने का प्रयास किया जा रहा है, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। आखिर इतने बड़ी लोकतंत्रिक व्यवस्था और इतने सारे राज्यों वाले देश में गिने-चुने चार लोग कैसे सभी फैसले ले सकते हैं?
आयोजकों के मुताबिक, “जनता संसद” में स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन का अधिकार, पर्यावरण, कृषि समेत दस से ज्यादा विषयों पर 200 से ज्यादा वक्ताओं द्वारा कुल मिलाकर लगभग 30 घंटे चर्चा किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। इस आयोजन के समापन के बाद एक प्रस्ताव ज्ञापन के रूप में सरकार व सांसदों को भेजा जाएगा। इस कड़ी के पहले दिन यानी 16 अगस्त को स्वास्थ्य के विषय पर चर्चा की गयी। जबकि 17 अगस्त को खाद्य सुरक्षा एवं पोषण पर चर्चा हुई।
जनता संसद जरूरी क्यों?
सनद रहे कि विश्व के कई देशों की संसदों ने महामारी के समय में भी अपना काम बंद नहीं किया है। ऑनलाइन सत्रों और मीटिंग्स के ज़रिए यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि जनता के प्रतिनिधित्व और सरकार की जवाबदेही पर रोक न लगे। लेकिन भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी का हवाला देकर संसद का बजट सत्र संक्षिप्त करके 23 मार्च, 2020 को समाप्त कर दिया और तब से संसद का कोई भी सत्र अभी तक आयोजित नहीं हुआ है। अब जाकर देश में ऑनलाइन विकल्पों पर विचार किए जाने की चर्चा है।
ज्ञात हो कि संसद का मानसून सत्र जुलाई में शुरु होना चाहिए था, लेकिन वह नहीं हुआ। देश के अनेक राज्यों में विधानसभा का मानसून सत्र आयोजित नहीं हुआ। मध्यप्रदेश में तो इस साल अभी तक कोई भी सत्र (ना बजट सत्र, ना मानसून सत्र) आयोजित नहीं हुआ है। कोविड-19 का हवाला देकर संसद और विधानसभा सत्रों के आयोजन नहीं करने से एक तरफ जहां कार्यपालिका की जनता के प्रति जवाबदेही को खतरा पैदा हो गया है, वहीं महामारी के दौर में जनता के मुद्दों और समस्याओं पर भी चर्चा नहीं हो पा रही है। आयोजकों के मुताबिक, ऐसे हालात में ‘जनता संसद’ की परिकल्पना जनता के मुद्दों और समस्याओं पर प्रकाश डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
(संपादन : नवल/अमरीश)
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