साक्षात्कार
बिहार में दलित राजनीति एक बार फिर महत्वपूर्ण बनती दिख रही है। चिराग पासवान ने जिस तरह जदयू के खिलाफ मोर्चा खोला है, उसे आप किस रूप में देखती हैं?
देखिए, बिहार में दलितों की आबादी करीब 17 फीसदी है। दलितों के अलावा इतनी बड़ी आबादी केवल मुसलमानों और यादवों की है। बिहार में यादव पिछड़े वर्ग में शामिल हैं। दलितों के बारे में विचार करते हुए आपको यह भी देखना चाहिए कि उनके पास जीवन जीने का क्या जरिया है। वे अन्यों की तरह हैं – फिर चाहे वे मुस्लिम हों या यादव – या फिर उनके हालात अलग हैं। अभी भी बड़ी संख्या में दलित भूमिहीन हैं। शिक्षा के स्तर पर हमारी सरकार ने उनके लिए बहुत कुछ किया है। टोला सेवकों की बहाली हुई और यह सुनिश्चित किया गया कि दलित शिक्षित बनें। साथ ही हमारी सरकार ने उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए महादलित विकास मिशन के तहत अनेक योजनाओं की शुरूआत की है। हमारी सरकार की नीतियों के कारण दलित आज शिक्षित हो रहे हैं, जागरूक बन रहे हैं और अपने हक-अधिकार की मांग कर रहे हैं। यह बिहार की राजनीति में दलितों के नए उभार की शुरूआत है।
आपने चिराग पासवान जी की चर्चा की है तो मेरा यह स्पष्ट मानना है कि वे दलितों के नेता नहीं हैं। वे ऐसा दावा भी नहीं कर सकते। उन्हें बताना चाहिए कि उनकी पार्टी में उनके परिवार के अलावा और कौन दलित नेता है। उनकी पार्टी ने शुरू से सिर्फ परिवार की राजनीति की है और सत्ता में बने रहने के लिए बाहुबलियों को पाला है। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि दलितों के लिए किसी दलित नेता ने जितना नही किया, उतना नीतीश कुमार ने किया है। उन्होंने उनके वर्तमान के साथ-साथ उनका भविष्य भी सुरक्षित कर दिया है।
आपके हिसाब से नीतीश कुमार ने पिछले 15 वर्षों में दलितों के लिए कौन-कौन से ऐसे काम किए हैं जिनके कारण दलित उन्हें वोट देंगे?
इसकी सूची लंबी है और बिहार का हर दलित यह जानता है कि हमारे नेता नीतीश कुमार की दूरदर्शी सोच के कारण वे आज विकास की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। हमारी सरकार का सबसे अधिक जोर उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर रहा। दलित बस्तियों में आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए। स्कूल खोले गए। आप पहले का दौर याद करिए जब दलित बस्तियों के स्कूलों में शिक्षक पढ़ाने नहीं जाते थे। हमारी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि वे स्कूल जाएं और पढ़ाएं। साथ ही पक्की गली और पक्की नाली योजना के तहत सभी दलित बस्तियों को चमकाया गया। वहां बिजली की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी। स्कूल में पोशाक व पोषाहार योजना से भी दलित बस्तियों में आशा जागी है। हमारी सरकार ने दलित समाज के लोगों को नई पहचान भी दी है। जैसे पासी समुदाय के लोगों को दबंग किस-किस तरीके से प्रताड़ित करते थे। लेकिन हमारे मुख्यमंत्री ने ताड़ी को नीरा की संज्ञा दी और अब यह एक नशाविहीन पेय पदार्थ है। बाजार भी अब इसमें दिलचस्पी ले रहा है।

दलित महिलाओं की बात करें तो आप सरकार की किन उपलब्धियों को रेखांकित करेंगीं?
सच कहा जाय तो न सिर्फ दलित महिलाओं के लिए, बल्कि सभी वर्ग की महिलाओं के लिए बिहार में सबसे अधिक और क्रांतिकारी काम हुआ है। जो परिवर्तन सौ साल में भी संभव नहीं था, वह महज कुछ सालों में हुआ है। आप उदाहरण के रूप में साइकिल योजना को ही देखिए। यह महज एक योजना नही है बल्कि आप अगर इसका विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि इसके कारण समाज में व्यापक परिवर्तन हुआ है। बच्चियां पढ़ने जा रही हैं। उनका हौसला बढ़ा है। साथ में उनका शारीरिक विकास भी हुआ है। इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि महिलाएं शिक्षित होंगीं, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसे सामाजिक कुरीतियां खत्म होंगी तथा महिलाओं से जुड़े अपराधों में भी कमी आएगी। आप देखें कि हमारी सरकार ने बालिकाओं के जन्म से लेकर उनके पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई निशुल्क करवा रही है। साथ ही प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है। यह कोई वोट बैंक की राजनीति नही है। बल्कि सशक्त बिहार बनाने की परिकल्पना है। हमारी सरकार ने महिलाओं को नौकरियों में 35 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने का काम किया है। साथ ही महिला उद्यमी योजना से उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने का काम चल रहा है। त्रिस्तरीय पंचायती राज निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण से महिलाओं की राजनीतिक क्षेत्र में भागीदारी बढ़ी है। इससे आने वाले कुछ वर्षों में पाॅलिसी के लेवल पर इसका प्रभाव दिखने लगेगा। मेरा यह मानना है कि हमारे नेता नीतीश कुमार का कार्यकाल सामाजिक परिवर्तन का काल रहा है। इतिहास इसका ज्यादा बेहतर तरीके से मूल्यांकन कर पाएगा।
जीतनराम मांझी की वापसी से क्या कोई उम्मीद बनती दिख रही है?
निश्चित तौर पर, दलित समाज के लोग एनडीए के पक्ष में मजबूती से गोलबंद हुए हैं। इसमें जीतनराम मांझी जी की अहम भूमिका है। आपको यह देखना चाहिए कि यह हमारे नेता नीतीश कुमार की नीति का ही परिणाम है कि आज जीतन राम मांझी जी की पहचान दलित नेता के रूप में है। वरना रामविलास पासवान के अलावा दूसरा कोई दलित नेता नहीं बन पाता।
इस बार भी यह सामने आया है कि दलितों को केवल आरक्षित सीटों पर उम्मीदवार बनाया गया है। आपकी पार्टी ने भी यही किया है। क्या आपको नहीं लगता है कि यह सोच समाप्त होनी चाहिए कि दलित केवल आरक्षित सीटों से ही जीत सकते हैं?
आप लोकतांत्रिक राजनीति में आदर्श स्थिति की बात कर रहे हैं। हमारी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है। जनता ने बहुमत दिया तो हम इस प्रक्रिया को और तेज करेंगे। जाति की दीवारें तोड़ेंगे।
अंत में एक बार फिर सवाल चिराग पासवान से जुड़ा है। क्या वे भाजपा की रणनीति का हिस्सा हैं? यदि नहीं तो फिर तो जिस तरह की राजनीति वे कर रहे हैं, उससे आपकी पार्टी जदयू को कितना नुकसान होगा?
कोई नुकसान नहीं होगा। सभी जानते हैं कि उनकी पार्टी किस तरह की पार्टी है। चिराग पासवान कुछ वंडर नही कर रहे हैं। वे वही फार्मूला इस्तेमाल कर रहे हैं, जो उनके पिताजी ने किया था। अंतर बस इतना है कि वो अपनी जाति के लिए थोड़ा सोचते थे। परंतु चिराग पासवान ने लोजपा को फारवर्ड क्लास की पार्टी बना दिया है। उनके टिकट बंटवारे से खुद आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी पार्टी में फॉरवर्ड क्लास के बाहुबली उनके किराए के बंदूक मात्र हैं।
(संपादन : अनिल/अमरीश)