h n

दलितों का संघर्ष ही दलित साहित्य का सौंदर्य : कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’

दलित साहित्य आत्ममर्यादा और स्वाभिमान का साहित्य है – उनका साहित्य जिन्हें सदियों तक दबाया गया, वंचित रखा गया। इस घृणित उपेक्षा का जब हम उल्लेख करते हैं तो वहां प्रेम नहीं, आक्रोश ही सामने आएगा। कह सकते हैं कि यह आक्रोश दलित साहित्य में एक शिल्प की तरह है। बांग्ला दलित कवयित्री कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’ से कार्तिक चौधरी की विशेष बातचीत

कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’ बांग्ला भाषा की एक प्रमुख दलित कवयित्री हैं। वे पश्चिम बंगाल के नवगठित दलित साहित्य अकादमी की सदस्य हैं। उनके लेखन की शुरुआत छात्र जीवन से ही हो गई थी। वे 26 वर्षों से ‘नीड़’ नामक पत्रिका का संपादन कर रही हैं। यह पत्रिका अब दलित महिलाओं के लेखन की दुनिया है। उनकी आत्मकथा ‘आमी केनो चाड़ाल लिखी’ (मैं क्यों चाड़ाल लिखती हूं) बांग्ला दलित स्त्री लेखन की चर्चित आत्मकथा है। उन्होंने लोकगीत, पानी, शरणार्थी, दलित महिलाओं की कविता, दलित महिलाओं के लेखन, भारतीय महिलाओं की लघु कथाएँ जैसे विषयों पर कई पुस्तकों और विभिन्न विशेष पत्रिकाओं का संपादन किया है। उनका काव्य संग्रह ‘चाण्डालिनीर कविता’ बहुचर्चित रही है। प्रस्तुत है उनसे कार्तिक चौधरी की खास बातचीत

पूरा आर्टिकल यहां पढें : दलितों का संघर्ष ही दलित साहित्य का सौंदर्य : कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’

लेखक के बारे में

कार्तिक चौधरी

लेखक डॉ. कार्तिक चौधरी, महाराजा श्रीशचंद्र कॉलेज (कलकत्ता विश्वविद्यालय) के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इनकी प्रकाशित पुस्तकों में “दलित चेतना के संदर्भ में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानियां” (समालोचना), “दलित साहित्य की दशा-दिशा समकालीन परिप्रेक्ष्य में” (संपादन), “अस्मितामूलक विमर्श, दलित और आदिवासी साहित्य के संदर्भ में” (समालोचना), “बंगाल में दलित और आदिवासी कविताएं” (संपादित काव्य संग्रह) शामिल हैं। इन्हें डॉ. आंबेडकर सृजन सम्मान (2021) से सम्मानित किया गया है

संबंधित आलेख

फूलन देवी की आत्मकथा : यातना की ऐसी दास्तान कि रूह कांप जाए
फूलन जाती की सत्ता, मायके के परिवार की सत्ता, पति की सत्ता, गांव की सत्ता, डाकुओं की सत्ता और राजसत्ता सबसे टकराई। सबका सामना...
इतिहास पर आदिवासियों का दावा करतीं उषाकिरण आत्राम की कविताएं
उषाकिरण आत्राम इतिहास में दफन सच्चाइयों को न सिर्फ उजागर करती हैं, बल्कि उनके पुनर्पाठ के लिए जमीन भी तैयार करती हैं। इतिहास बोध...
हिंदी दलित कथा-साहित्य के तीन दशक : एक पक्ष यह भी
वर्तमान दलित कहानी का एक अश्वेत पक्ष भी है और वह यह कि उसमें राजनीतिक लेखन नहीं हो रहा है। राष्ट्रवाद की राजनीति ने...
‘साझे का संसार’ : बहुजन समझ का संसार
ईश्वर से प्रश्न करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कबीर के ईश्वर पर सवाल खड़ा करना, बुद्ध से उनके संघ-संबंधी प्रश्न पूछना और...
दलित स्त्री विमर्श पर दस्तक देती प्रियंका सोनकर की किताब 
विमर्श और संघर्ष दो अलग-अलग चीजें हैं। पहले कौन, विमर्श या संघर्ष? यह पहले अंडा या मुर्गी वाला जटिल प्रश्न नहीं है। किसी भी...