विश्व में जब भी कोई महामारी आती है तो निस्संदेह वह समाज के सभी वर्गों को नुकसान पहुंचाती है लेकिन महामारी के सबसे बड़े शिकार सामाजिक आर्थिक तौर पर हाशिए पर रहने वाले सामाजिक वर्ग होते हैं। कोरोना महामारी ने भारत में पहले से हाशिए पर रहे बहुजन समुदाय को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, मनोवैज्ञानिक तौर पर सबसे अधिक प्रभावित किया है।
पढ़ाई छोड़ने वालों में नब्बे फीसदी दलित-बहुजन
हाल ही में देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (जेएनयू) के संबंध में एक आरटीआई की रिपोर्ट से जानकारी मिली है कि इसके बहुत सारे नए छात्र, जिन्होंने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था, उन्होंने आर्थिक सामाजिक हालात एवं बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलने की वजह से मजबूरी में अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। स्कूल ऑफ सोशल साइंस की काउंसलर व छात्रा अनघ प्रदीप द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के अनुसार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सोशल साइंस स्कूल में मार्च 2020 से मार्च 2021 तक एमए और एमफिल में 98 छात्रों ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी है। इनमें 90 प्रतिशत से अधिक बहुजन विद्यार्थी हैं। यह स्थिति विश्वविद्यालय के एक स्कूल का है। शेष अन्य स्कूलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यदि इसे हम पूरे भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इससे भी अधिक भयावह तस्वीर हमें देखने को मिलेगी।
जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज से आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाएं व उत्तर
पूछा गया प्रश्न | दिया गया उत्तर |
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शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के दौरान एमए की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या बताएं जिन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी? | कुल छात्र - 23 एससी - 09 एसटी - 03 ओबीसी - 05 महिलाएं - 06 |
मार्च, 2020 से लेकर मार्च, 2021 के दौरान एमए की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या बताएं जिन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी? | कुल छात्र - 22 एससी - 07 एसटी - 04 ओबीसी - 07 महिलाएं - 04 |
वर्ष 2019-20 के दौरान एमफिल की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या बताएं जिन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी? | कुल छात्र - 28 एससी - 06 एसटी - 09 ओबीसी - 08 महिलाएं - 04 |
मार्च, 2020 से लेकर मार्च, 2021 के दौरान एमफिल की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या बताएं जिन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी? | कुल छात्र - 25 एससी - 04 एसटी - 08 ओबीसी - 09 महिलाएं - 07 |
कोरोना वजह नहीं : प्रो. विवेक कुमार
हालांकि उपरोक्त जानकारी के संबंध में जेएनयू के प्रो. विवेक कुमार यह मानते हैं कि “कोरोना के कारण दलित-बहुजनों पर सबसे अधिक असर हुआ है। लेकिन जहां तक जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज से पढ़ाई छोड़ने वाले छात्र-छात्राओं का सवाल है तो इसके और भी कई कारण संभव हैं। मसलन, एमए की पढाई के संबंध में जेएनयू में छात्र-छात्राओं को विषय बदलने का विकल्प होता है। ऐसे में यह संभव है कि कुछ छात्रों ने अपना विषय बदल लिया हो। वहीं एमफिल की पढ़ाई छोड़ने वाले छात्र-छात्राओं के संबंध में उन्होंने बताया कि ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि छात्र-छात्राओं ने किसी दूसरे विश्वविद्यालय में सीधे पीएचडी पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया हो।”

ऑफलाइन परीक्षा लेकर छात्रों को नियमित करे विवि प्रशासन : बापसा
वहीं जेएनयू के बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बापसा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश महतो का मानना है कि ड्रॉप आउट की मुख्य वजह यही है कि जेएनयू में दलित-बहुजनों के लिए हालात विषम कर दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि “इसकी जड़ में फीस बढ़ाने को लेकर डेढ़ साल पहले हुआ आंदोलन है। तब जेएनयू प्रशासन ने सभी पाठ्यक्रमों की फीस बढ़ा दी थी। तब जेएनयू छात्र संघ के आह्वान पर आंदोलन किया गया। इसमें बापसा व अन्य छात्र संगठन भी शामिल थे। इस आंदोलन के क्रम में जेएनयू द्वारा ली जाने वाली परीक्षा का बहिष्कार किया गया था। बाद में जब कोरोना का कहर शुरू हुआ तब विश्वविद्यालय प्रशासन ने ऑनलाइन परीक्षा लेने की बात कही। तब हालात यह थे कि प्रशासन द्वारा कैंपस खाली करने को बार-बार कहा जा रहा था। ऐसे में अनेक छात्र अपने-अपने घर जा चुके थे। इनमें बहुत सारे छात्र जो दलित-बहुजन परिवारों के थे और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे और उनके पास इंटरनेट की भी कमी थी, इसलिए वे ऑनलाइन परीक्षा नहीं दे सके। इस परिस्थिति में हुआ यह कि जेएनयू प्रशासन ने उन्हें ड्रॉप आउट करनेवाला मान लिया। हालांकि जेएनयू छात्र संघ से जुड़े द्विज जो सक्षम थे, वे इस मामले में आगे निकले। वे एक तरफ आंदोलन भी कर रहे थे और दूसरी तरफ ऑनलाइन परीक्षा भी दे रहे थे।”
महतो ने बताया कि “आज भी बापसा के बैनर तले हम जेएनयू प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि वह ऑफलाइन परीक्षा ले तथा जो छात्र परीक्षा नहीं दे सके, उनकी पढ़ाई नियमित हो सके।”
बहरहाल, कहना अतिश्योक्ति नहीं कि आज के समय में ऑनलाइन शिक्षा के कारण बच्चों की शिक्षा के मौलिक अधिकार का सबसे अधिक हनन हो रहा है, जिसका सबसे अधिक बोझ बहुजन समाज पड़ रहा है। सवाल उठता है कि क्या मनुस्मृति फिर से लागू हो गया है और बहुजनों को पढ़ाई से दूर रखा जा रहा है?
(संपादन : नवल/अनिल)
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