अनुसूचित जातियां पंजाब की कुल आबादी का एक-तिहाई हैं। देश के किसी अन्य राज्य में अनुसूचित जातियां जनसंख्या का इतना बड़ा हिस्सा नहीं हैं। इसके बावजूद, इस कृषि-प्रधान राज्य में खेती की ज़मीन में उनकी हिस्सेदारी सबसे कम है। उनमें से केवल 5 प्रतिशत छोटे किसान हैं। यद्यपि जनगणना में उनकी गिनती अन्य समुदायों और जातियों के साथ ही की जाती है, परंतु असल में वे सबके साथ नहीं रहते। दलितों की बस्तियों गांवों की सीमाओं पर होती हैं। पंजाब के तीनों भौगोलिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में इन बस्तियों के अलग-अलग नाम हैं और वे सभी अपमानजनक हैं। दोआब में उन्हें चमारली, मालवा में थाथी और माझा में वेहरा कहा जाता है। पंजाबी कौम के अन्य तबको की तरह, पंजाबी अनुसूचित जातियां भी अन्यायपूर्ण शासकों और सामाजिक दमन के खिलाफ गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में खालसा सेना द्वारा किये गए युद्धों में अपनी वीरता के लिए जानी जातीं हैं। सन् 1920 के दशक के उत्तरार्द्ध में गरिमापूर्ण जीवन की चाह में वे आद धर्म के झंडे तले गोलबंद हुईं। यह अविभाजित पंजाब में अछूतों का पहला आंदेालन था, जो 11-12 जून 1926 को शुरू हुआ। पंजाब का आद धर्म आंदोलन, शेष भारत के विभिन्न हिस्सों में उसी कालखंड में उदित आदि आंदोलनों के समानांतर चलता रहा, परंतु उसने अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखा।
लेखक के बारे में

रौनकी राम
रौनकी राम पंजाब विश्वविद्यालय,चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके द्वारा रचित और संपादित पुस्तकों में ‘दलित पहचान, मुक्ति, अतेय शक्तिकरण’, (दलित आइडेंटिटी, इमॅनिशिपेशन एंड ऍमपॉवरमेंट, पटियाला, पंजाब विश्वविद्यालय पब्लिकेशन ब्यूरो, 2012), ‘दलित चेतना : सरोत ते साररूप’ (दलित कॉन्सशनेस : सोर्सेए एंड फॉर्म; चंडीगढ़, लोकगीत प्रकाशन, 2010) और ‘ग्लोबलाइजेशन एंड द पॉलिटिक्स ऑफ आइडेंटिटी इन इंडिया’, दिल्ली, पियर्सन लॉंगमैन, 2008, (भूपिंदर बरार और आशुतोष कुमार के साथ सह संपादन) शामिल हैं।