बहुजन साप्ताहिकी
जातिगत जनगणना को लेकर देश भर में आवाजें उठने लगी हैं। बिहार में तेजस्वी यादव ने सियासी दांव भी चल दिया है। दांव भी ऐसा कि बिहार में सत्तासीन राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में दरारें पड़ गयी हैं। हो यह रहा है कि जनतादल यूनाईटेड के नेतागण जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा के नेता विरोध कर रहे हैं। गत 30 जुलाई, 2021 को बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन करीब डेढ़ बजे विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव एक प्रतिनिधिमंडल लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने उनके कक्ष में चले गए। करीब एक घंटे तक बातचीत का दौर चला। जब यह दौर चल रहा था तब सदन में गहमागहमी का माहौल बन गया। हर कोई अलग-अलग तरह की कयासबाजी लगा रहा था।
मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद तेजस्वी यादव ने पत्रकारों को इस बात की जानकारी दी कि उन्होंने जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर मुख्यमंत्री से पहल करने की मांग की। मुख्यमंत्री ने क्या कहा, इस संबंध में तेजस्वी ने कहा कि मुख्यमंत्री जी को अभी दिल्ली जाना है। वे 2 अगस्त को लौटेंगे और उन्होंने कहा है कि लौटते ही अपनी तरफ से प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे।
इसके अलावा तेजस्वी ने बताया कि पहले भी दो बार 18 फरवरी, 2019 और 27 फरवरी, 2020 को बिहार विधानमंडल में जातिगत जनगणना को लेकर प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कराया जा चुका है। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना देश के बहुसंख्यक लोगों के लिए बहुत जरूरी है। जबतक आंकड़े नहीं होंगे तब तक बहुसंख्यकों के लिए कारगर नीति का निर्माण हो सकता है। तेजस्वी ने यह भी कहा कि यदि भारत सरकार जातिगत जनगणना नहीं कराती है और अड़ियल रवैया बनाए रखती है तो बिहार सरकार अपने संसाधनों के जरिए राज्य में जातिगत जनगणना कराए ताकि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की वास्तविक संख्या सामने आए।
जातिगत जनगणना के विरोध की तख्ती लगाकर घूमते नजर आए संजय पासवान
दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं भी जातिगत जनगणना को लेकर मुखर रहे हैं। पिछले साल मार्च महीने में उन्होंने अपने बयान में इसके महत्व के बारे में बताया था और केंद्र सरकार से मांग भी की थी। परंतु, मौजूदा दौर में वे इस मुद्दे को लेकर उतने मुखर नहीं हैं। इसकी वजह उनकी साझेदार भाजपा है। भाजपा नेताओं के द्वारा विरोध किया जा रहा है। वे जातिगत जनगणना के बजाय गरीब गणना की मांग कर रहे हैं। कल इसी संदर्भ में एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान अपने गले में एक तख्ती लगाकर सड़क पर प्रदर्शन करते नजर आए। उन्होंने अपनी तख्ती में लिख रखा था – जातीय जनगणना नहीं, गरीबी गणना हां हो।
जदयू सांसदों ने पीएम को लिखा पत्र
उधर जदयू सांसद चंदेश्वर प्रसाद ने बीते 29 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उनके पत्र पर जदयू के सभी सांसदों ने हस्ताक्षर किया है। अपने पत्र में चंदेश्वर प्रसाद ने कहा है कि “संसद के मानसून सत्र में सरकार द्वारा बताया गया है कि 2021 की जनगणना जाति आधारित नहीं होगी। इस सूचना से हम सब स्तब्ध और दुखी हैं क्योंकि हमारी केंद्र सरकार पिछड़ों एवं वंचितों के कल्याण के लिए जानी जाती है। यह सूचना निराशाजनक है। आज देश के अधिकांश लोग जाति आधारित जनगणना का समर्थन करते हैं। जबतक पिछड़े वर्ग की वास्तविक संख्या पता नहीं चलेगी तब तक उनके फायदे की योजनाएं कैसे बनेंगी।”
तेलंगाना में दलित उद्यमियों को दस-दस लाख रुपए, विपक्ष उठा रहा सवाल
वर्ष 2014 में जब भाजपा चुनाव लड़ रही थी तब बड़ी संख्या में युवा उसके साथ इस घोषणा के कारण जुड़े थे कि सरकार बनी तो सभी के खाते में 15-15 लाख रुपए भेजे जाएंगे। हालांकि बाद में इसे चुनावी जुमला कहकर हवा में उड़ा दिया गया। परंतु, अब हकीकत में ऐसा कुछ होने जा रहा है। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव सरकार ने ‘दलित बंधु’ नामक योजना की शुरुआत की है। दलित वर्ग के युवाओं के लिए इस योजना के तहत उद्यम लगाने के लिए अधिकतम दस लाख रुपए की राशि सीधे उनके बैंक खातों में भेजी जाएगी। इस संबंध में राव ने हाल ही में घोषणा की है कि उनकी सरकार इस योजना के लिए 80 हजार करोड़ रुपए से लेकर एक लाख करोड़ रुपए तक खर्च करने को तैयार है। हालांकि इसे लेकर विपक्ष राज्य सरकार की मंशा पर सवाल भी उठा रहा है। विपक्ष के सवालों के केंद्र में हुजुराबाद विधानसभा क्षेत्र है, जहां ‘दलित बंधु’ योजना का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जा रहा है। दरअसल, यहां उपचुनाव होना है। विपक्ष का कहना है कि सरकार चुनाव जीतने के लिए सरकारी धनराशि का उपयोग कर रही है।
वहीं इस संबंध में तेलंगाना के सामाजिक कार्यकर्ता सुब्बा राव का कहना है कि इस योजना से घुमंतू व गैर अधिसूचित जातियों/जनजातियों के लोगों को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। इसके पीछे कारण यह है कि संविधान में इन जातियों को किसी श्रेणी में अभी तक रखा ही नहीं गया है। किसी राज्य में हमारे लोग ओबीसी में शामिल किए गए हैं तो किसी राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में शामिल रखे गए हैं। हमारे सामने यह एक बड़ा सवाल है। तेलंगाना में दो दलित जातियां माला और माडिगा ही ताकतवर व रसूख वाली जातियां हैं। जबकि दलित में हमारे लोग भी हैं, लेकिन “दलित बंधु” स्कीम से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला है।
दो वर्षों में मैंने तीन बार सुनवाई की – भगवान लाल साहनी
गत 29 जुलाई, 2021 को भारत सरकार ने राज्याधीन मेडिकल कॉलेजों व संस्थानों में प्रवेश हेतु नीट परीक्षा में अखिल भारतीय कोटे में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा की। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल साहनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि यह विषय कई कारणों से लंबित था। इसके हल के लिए उन्होंने पिछले दो वर्षों में तीन बार सुनवाई की। पहली सुनवाई 23 जुलाई 2020 को, दूसरी सुनवाई 8 अक्टूबर, 2020 को और तीसरी सुनवाई 7 जनवरी, 2021 को हुई। तीनों सुनवाई के दौरान भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव और संयुक्त सचिव सम्मिलित रहे।
(संपादन : अनिल)
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