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हक-हुकूक के लिए 26 को सड़क पर उतरेंगे ओबीसी, अखिलेश-तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर खोला मोर्चा

नीट में ओबीसी के साथ हकमारी को लेकर हलचल बढ़ी है। आगामी 26 जुलाई को विभिन्न ओबीसी संगठनों द्वारा सड़क पर उतरने का आह्वान किया गया है। साथ ही पढ़ें, दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेता सूर्य शिवकुमार की नयी फिल्म के पोस्टर के संबंध में

बहुजन साप्ताहिकी

मेडिकल शिक्षण संसथानों में प्रवेश के संदर्भ में ओबीसी के साथ हकमारी की जा रही है। उन्हें राज्याधीन संस्थाओं में अखिल भारतीय कोटे के तहत आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है। इसके अलावा जातिगत जनगणना की मांग को लेकर देश के कई राज्यों में ओबीसी से जुड़े सामाजिक कार्यकर्तागण आगामी 26 जुलाई को छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा 26 जुलाई] 1902 को वंचितों को कोल्हापुर प्रांत की सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की वर्षगांठ के मौके पर सड़क पर उतरेंगे। बहुजन इसे आरक्षण दिवस के रूप में मनाते हैं। वहीं इस संघर्ष में समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव भी शामिल हो गए हैं।

अखिलेश यादव ने 24 जुलाई को फेसबुक पर अपनी पोस्ट में लिखा– “भाजपा सरकार की दुर्भावनावश OBC समाज निरंतर आरक्षण से वंचित हो रहा है। अब स्वयं राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केंद्र सरकार से शिकायत की है कि बीते 3 सालों में मेडिकल व अन्य जगह ओबीसी का हक़ औरों को दिया जा रहा है। भाजपा से सामाजिक न्याय की उम्मीद बेमानी है।” अपने संदेश के साथ अखिलेश ने एक अखबार की कटिंग को भी साझा किया है, जिसका शीर्षक है– “11,027 ओबीसी छात्र प्रवेश से वंचित”।

वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव 21 जुलाई को अपने फेसबुक पर लिखा– “केंद्र की मोदी सरकार ने मेडिकल एंट्रेंस नीट परीक्षा में 14 हजार ओबीसी छात्रों का हक खा लिया। प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री पिछड़ों और अतिपिछड़ों की इस हकमारी पर एकदम चुप है। प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि हमने ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों से मंत्री बनाए है। लेकिन यह नहीं बताते इन वर्गों से कितने कैबिनेट मंत्री बनाए है? पिछड़े और दलित वर्गों के जो भी गिने-चुने मंत्री बनाए गए है उन्हें महत्वहीन विभाग देकर महज़ सांकेतिक प्रतिनिधित्व की खानापूर्ति की गयी है। कोई भी अहम विभाग इन वर्गों के पास नहीं है। देश की 60 फ़ीसदी जनसंख्या वाले पिछड़े वर्ग के मात्र 4-5 मंत्री हैं जबकि 2-4 फ़ीसदी जनसंख्या वाले वर्ग के दर्जनों मंत्री हैं। केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के आँकड़े क्यों छुपा रही है? भाजपा सरकार जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती? सरकार को किस बात का डर है?”

सवर्ण आरक्षण का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में, फिर क्यों लागू है सवर्णों का आरक्षण?

वहीं इस संबंध में सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के संस्थापक रिंकु यादव ने बताया कि “आरएसएस और भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार लगातार एससी-एसटी के साथ ही देश की 52 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी के ओबीसी समाज को जीवन के हर क्षेत्र में हाशिए पर धकेल रही है। मोदी सरकार ने पिछले 4 साल में 11 हजार से अधिक ओबीसी को डॉक्टर बनने से वंचित कर दिया है और एक बार फिर नीट के ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सवर्ण आरक्षण के खिलाफ भी मुकदमा चल रहा है। लेकिन सवर्ण आरक्षण लागू हो रहा है। परंतु सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे के बहाने नीट में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है।” 

बिहार के भागलपुर में ओबीसी आरक्षण की हकमारी के विरोध में सड़क पर उतरे लोग

छत्तीसगढ़ में भी ओबीसी को लेकर हलचल

छत्तीसगढ़ के पिछड़ा वर्ग कल्याण संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मेडिकल प्रवेश हेतु नीट परीक्षा में राज्याधीन कोटे में ओबीसी के आरक्षण सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है। संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश साहू ने इस संबंध में बताया कि प्रधानमंत्री ने अपने कैबिनेट में 27 दलित-बहुजनों को जगह दी है, यह स्वागत योग्य है। लेकिन दूसरी ओर इन वर्गों के हक-हुकूम की उपेक्षा हो रही है। उन्होंने अपने पत्र में प्रधानमंत्री से जातिगत जनगणना कराने की मांग की है। जबतक यह जानकारी सामने नहीं आएगी कि किस समुदाय की कितनी हिस्सेदारी और उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति कैसी है, तबतक सरकार की किसी भी नीति और योजना का समुचित लाभ वंचितों को नहीं मिलेगा।

अयोध्या में गूंजा ‘जय श्रीराम-जय भीम’ का नारा

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक गतिविधियां तेज हाे गई हैं। इस क्रम में अपनी रणनीति में एक अहम बदलाव लाते हुए बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करवाना शुरू किया है। बीते 23 जुलाई को इसकी शुरुआत अयोध्या से की गयी। इस मौके पर उपस्थित लोगों ने “जय श्रीराम-जय भीम” का नारा लगाया। हालांकि अपने इस अभियान को लेकर मायावती आलोचनाओं के केंद्र में हैं। 

अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन के दौरान हाथ में गदा उठाए बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र

हालांकि वह अकेल दलित-बहुजन नेता नहीं हैं जो द्विजों को लुभाने का प्रयास कर रही हैं। सपा नेता अखिलेश यादव भी कुछ दिन पहले ही चित्रकूट के दौरे पर गए थे। उन्होंने वहां मंदिरों के दर्शन किए और परिक्रमा भी की। इस मौके पर अखिलेश फिर दुहराया कि राम भाजपा के ही नहीं हैं बल्कि उनके तो राम और कृष्ण दोनों हैं। अपने वोट बैंक के साथ ही ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए उन्होंने भी ब्राह्मण नेताओं को टिकट दिए। यही नहीं परशुराम जयंती का भी पार्टी मुख्यालय में आयोजन करवा कर उन्होंने संदेश देने की कोशिश की। कुछ इसी तर्ज पर प्रियंका व राहुल गांधी भी यूपी दौरों के दौरान चुनाव प्रचार की शुरुआत किसी न किसी मंदिर से दर्शन कर करते रहे हैं। 

सूर्य शिवकुमार की ‘जय भीम’ से गुलजार हुआ सोशल मीडिया

‘काला’, ‘कबाली’, ‘असुरन’, ‘पेरियारूम पेरूमल’, ‘कर्णन’, ‘मंडेला’ और ‘सरपट्टा’ के बाद दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेता सूर्य शिवकुमार ने बीते दिनों अपने जन्मदिन के मौके पर अपनी नयी फिल्म का पोस्टर जारी किया। फिल्म का नाम है– जय भीम। सोशल मीडिया पर यह पोस्टर आते ही वायरल हो गयी। 

फेसबुक पर अपनी टिप्पणी में संजय श्रमण जोठे ने इस संबंध में लिखा– “पेरियार और अम्बेडकर का टेक ऑफ पॉइंट एक जैसा होते हुए भी उनके विचारों की परिणति दो अलग तरीकों से होती है। दोनो तरीके और परिणाम अपनी जगह सही हैं और जरूरी हैं। आंबेडकर के परिणाम में सामाजिक नव-निर्माण की बजाय शोषण के निदान और चित्रण पर अधिक बल दिया गया है। वहीं पेरियार के परिणाम में नव निर्माण और विकल्प पेश करने का स्वर अधिक प्रबल मिलता है। दक्षिण की फ़िल्म इंडस्ट्री को पेरियार और एमजीआर ने खूब प्रभावित किया है। सामाजिक न्याय के लिए जो तड़प और आक्रोश है वह विलाप में नहीं जाता बल्कि युध्द और चुनौती देने की तरफ मुड़ता है। यह पेरियार की खूबी है, वे शोषण के निदान के बाद न केवल इलाज लिखते हैं बल्कि मुंह में हाथ डालकर दवाई भी ठूंसते हैं।”

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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