लंबा कद। आंखों पर चश्मा। हाथों में पुराने चेन वाली घड़ी। पैरो में चमड़े का चप्पल। सस्ते खरीदे गए कपड़ों से बनी फुलपैंट और वैसी ही शर्ट या टी-शर्ट। फादर स्टेन स्वामी ऐसे ही दिखते थे। सिंपल, सहज लेकिन मुद्दों को लेकर उतने ही गंभीर। विचारों में बेबाक और निडर। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन झारखंड के आदिवासी उन्हें सदियों तक अपनी यादों में जिंदा रखेंगे। वे जिंदा थे, जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे। यह अलग बात है कि कभी विचाराधीन बंदियों के अधिकारों के लिए न्यायिक लड़ाई लड़ने वाले स्टेन स्वामी का निधन एक विचाराधीन बंदी के रुप में जमानत मांगते हुए हुआ। मुंबई की अदालत उनकी जमानत पर फैसला करती, इससे पहले ही उनकी सांसें रुक गईं और वे दुनिया को अलविदा कह गए। अब उनके निधन से लोग दुखी हैं, आक्रोशित भी।