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वेदप्रकाश के प्रकाश से उन्माद में क्यों अंधे हो रहे ‘रणवीर सेना समर्थक’?

बिहार के युवा दलित पत्रकार वेदप्रकाश इन दिनों चर्चा में हैं। बीते 3 जुलाई को ट्वीटर पर पहली पोजीशन पर एक हैशटैग ट्रेंड कर रहा था, जिसमें उनकी गिरफ्तारी की मांग की गई थी। इस संबंध में, और अपने बारे में भी, वेदप्रकाश ने फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत की

तारीख 3 जुलाई, 2021। शाम 8 बजकर 51 मिनट पर ट्वीटर पर एक हैशटैग ट्रेंड कर रहा था– #ArrestVedPrakash। यह सामान्य बात नहीं है कि एक नौजवान, जिसकी उम्र मुश्किल से 28-29 साल होगी, उसकी गिरफ्तारी की मांग राष्ट्रीय स्तर पर ऊंची जातियों के लोग कर रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या यह नौजवान कोई आतंकवादी है या फिर कोई दुर्दांत अपराधी, जिसकी गिरफ्तारी की मांग की जा रही है? सवाल इसलिए भी कि 3 जुलाई, 2021 को बिहार की राजधानी पटना से प्रकाशित खबरों के मुताबिक वेदप्रकाश एक दलित पत्रकार का नाम है, जिन्होंने पुलिस को सूचना दी कि उनकी मॉब लिंचिंग की कोशिश 30 जून, 2021 को की गयी है। वह भी राजधानी पटना में जब वह अपनी बहन, भतीजे और भतीजी के साथ कार से जा रहे थे। बिहार में खास जाति के लफंगे किस कदर बेखौफ हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने फेसबुक लाइव व पोस्ट के जरिये केवल वेदप्रकाश के साथ हुई घटना की जिम्मेदारी ली, बल्कि उन्हें धमकाया भाी।

क्यों मजबूर है नीतीश कुमार की पुलिस?

हद तो यह कि पीड़ित दलित पत्रकार वेदप्रकाश ने पटना के फुलवारी थाने में मुकदमा दर्ज कराया। लेकिन खबर लिखे जाने तक पुलिस ने किसी को गिरफ्तार नहीं किया है। इस संबंध में फुलवारी थाना प्रभारी ने दूरभाष पर जानकारी दी कि नामित व्यक्तियों की पहचान की जा रही है। सवाल उठता है कि वे लोग जो वेदप्रकाश को सार्वजनिक तौर पर जान से मारने की धमकी देते नजर आए, क्या वे पटना पुलिस की पहुंच से दूर हैं, जबकि पीड़ित पत्रकार ने सबूत के तौर पर फेसबुक लाइव व पोस्ट का स्क्रीन शॉट पुलिस को उपलब्ध कराया है। यह जाहिर सी बात है कि आज की तारीख में किसी भी व्यक्ति की फेसबुक आईडी से उसका आईपी एड्रेस निकाला जा सकता है और तदुपरांत उसके भौगोलिक जानकारी के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर पटना पुलिस के समक्ष ऐसी क्या मजबूरी है कि वह अपराधियों पर हाथ डालने से हिचक रही है?

ब्रह्मेश्वर मुखिया के समर्थकों के सामने पहले भी पटना पुलिस ने किया था आत्मसमर्मण

सनद रहे कि वेदप्रकाश का पीछा करनेवाले और उन्हें सार्वजनिक तौर पर धमकियां देने वाले स्वयं को रणवीर सेना के समर्थक बता रहे हैं। बिहार के ऊंची जातियों के लोगों का यह सशस्त्र संगठन 1994 से लेकर 2000 के बीच डेढ़ दर्जन से अधिक नरसंहारों में शामिल रहा। इन नरसंहाराें के शिकार दलित-बहुजन समाज के थे। इस संगठन का सरगना था ब्रह्मेश्वर मुखिया, जिसकी हत्या 1 जून, 2012 को आरा के कातिरा मुहल्ले में कर दी गयी थी और उसकी अंतिम यात्रा के दौरान उसके समर्थकों ने पटना को चार घंटे तक अपने कब्जे में रखा था। तब भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे और आज भी इस कुर्सी पर वे ही विराजमान हैं। 

आसान नहीं रही है नियोजित शिक्षक से स्वतंत्र पत्रकार बनने की राह

दूरभाष पर बातचीत में वेदप्रकाश ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि उनका जन्म बिहार के नवादा जिले के रजौली प्रखंड के एक गांव में हुआ। वे पासी (एक अनुसूचित जाति) जाति से आते हैं। पिता राजस्व विभाग में सरकारी कर्मी थे। पत्रकारिता की शुरुआत कैसे हुई? पूछने पर वेदप्रकाश बताते हैं कि वर्ष 2007 में उनकी नियुक्ति बिहार के शिक्षा विभाग में नियोजित शिक्षक के रूप में हुई थी। उन दिनों उनके मित्र राजन जैन के बड़े भाई दीपक जैन पटना से प्रकाशित एक अखबार “आज” के जिला ब्यूरो प्रमुख थे। वेदप्रकाश ने उनके सहायक के रूप में काम करना शुरू किया। वे जिस स्कूल में शिक्षक थे, उस स्कूल में एक घटना में उन्हें आरोपी बना दिया गया। मामला एक छात्र को सजा देने से जुड़ा था। वेदप्रकाश के अनुसार, तब किसी भी अखबार ने उनका पक्ष नहीं प्रकाशित किया। यहां तक कि जिस अखबार को वे सेवा देते थे, उसने भी उनके पक्ष को नहीं रखा।

अपनी खास तरह की प्रस्तुति के लिए चर्चा में रहे हैं वेदप्रकाश

अखबारों में केवल ऊंची जाति के लोग ही क्यों?

वेदप्रकाश उपरोक्त घटना को अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट मानते हैं। उनके अनुसार, जब उन्होंने पड़ताल की कि आखिर उनके पक्ष को अखबारों ने क्यों प्रकाशित नहीं किया, तब उन्हें जानकारी मिली कि अखबारों में खास जाति का कब्जा है। कोई दलित-बहुजन पत्रकार नहीं है। इस सच्चाई के सामने आने के बाद वेदप्रकाश ने पत्रकारिता की पढ़ाई करने के लिए पहले नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के मास कम्यूनिकेशन पाठ्यक्रम में दाखिला लिया। लेकिन जब जानकारी मिली कि इस संस्थान की प्रतिष्ठा बहुत अच्छी नहीं है तो उन्होंने दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन (आईआईएमसी) में दो पाठ्यक्रमों रेडियो एवं टीवी पत्रकारिता व प्रिंट मीडिया में दाखिले के लिए आवेदन किया। रेडियो एवं टीवी पाठ्यक्रम की फीस 85 हजार रुपए थी जबकि प्रिंट मीडिया पाठ्यक्रम की फीस करीब 40 हजार रुपए। पैसे कम होने के कारण वेदप्रकाश ने प्रिंट मीडिया पाठ्यक्रम में दाखिला लिया। 

इस बीच पिता के असमायिक निधन का असर यह हुआ कि वे आईआईएमसी में हुए कैंपस सिलेक्शन में भाग नहीं ले सके और फिर परिस्थितियां ऐसी बनीं कि वे पटना में दैनिक भास्कर के साथ जुड़ गए। वेदप्रकाश के अनुसार, इस संस्थान में एक व्यक्ति विशेष ने उन्हें केवल इस कारण से मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया कि वे दलित हैं। इस कारण उन्होंने दैनिक भास्कर की नौकरी छोड़ दी। 

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के सहयोगी के रूप में किया काम

वेदप्रकाश बताते हैं कि बाद के दिनों में उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और बिहार सरकार के एक कैबिनेट मंत्री मदन सहनी के सहायक के रूप में काम किया। जब वे मदन सहनी के सहायक के रूप में काम कर रहे थे तभी उन्होंने “एक्टिविस्ट वेद” के नाम से अपना यूट्यूब चैनल व फेसबुक पेज बनाकर स्वतंत्र मीडिया की शुरूआत की। वेदप्रकाश बताते हैं कि पहले वह यह सब अकेले करते थे, लेकिन बाद में जब कुछ और साथी जुड़े तब उन्होंने अपने चैनल का नाम “द एक्टिविस्ट” कर दिया।

वेदप्रकाश की शैली से लगती है खास जातियों के लोगों को मिर्ची

अपनी खास शैली और बहुजन विषयों पर पकड़ के कारण जल्द ही उनकी पहचान बन गयी। वर्तमान में उनके चैनल के सब्सक्राइबर्स की संख्या करीब साढ़े दस लाख है। उन्हें प्रसिद्धि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव और 2020 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान मिली। वे पारंपरिक मीडिया को चुनौती देते दिखे।

जिस ताजा मामले में वेदप्रकाश सुर्खियों में हैं, उसके बारे में उनके विरोधियों का कहना है कि वे जातिवाद फैलाते हैं। जबकि इस संबंध में वेदप्रकाश बताते हैं कि यदि किसी को उनकी किसी खबर से आपत्ति है और किसी को ऐसा लगता है कि उन्होंने कोई अपराध किया है तो वह पुलिस में जाकर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराए। “मॉब लिंचिंग का प्रयास और डराने-धमकाना कहां तक सही है।” वे यह सवाल भी उठाते हैं कि “क्या बिहार में कोई सरकार नहीं है?”  

(संपादन : अनिल/अमरीश)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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