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हारकर भी जीत गयीं बहुजन बेटियां, बढ़ाया देश का मान, द्विजों ने उठाए सवाल

बहुजन साप्ताहिकी में इस बार पढ़ें भारतीय महिला हाॅकी टीम के बारे में द्विजों की प्रतिक्रिया। साथ ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के नये क्रांतिकारी फैसले के बारे में। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी को लेकर एक और भूल सुधार

बहुजन साप्ताहिकी

तोक्यो, ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही ग्रेट ब्रिटेन की टीम से 4-3 के अंतर से हार गयी, लेकिन अपने प्रदर्शन से टीम देश का दिल जीत लिया। यह मुकाबला कांस्य पदक के लिए था। इसके पहले जब अर्जेंटीना के खिलाफ टीम को हार मिली तब हरिद्वार के रोशनाबाद में लोगों ने टीम में शामिल वंदना कटारिया के घर के आगे पटाखे फोड़े और उनके परिजनों को जातिसूचक गालियां दीं। उनका यह भी कहना था कि टीम में चूंकि अधिकांश दलित खिलाड़ी हैं, इसलिए टीम हार गयी। इस संबंध में वंदना कटारिया के भाई चंद्रशेखर कटारिया ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया है। इसकी पुष्टि करते हुए हरिद्वार के सीनियर एसपी सेंथिल कृष्णराज एस ने दूरभाष पर बताया कि कुल तीन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है। मुख्य आरोपी विजय पाल को गिरफ्तार किया जा चुका है। वहीं दो अन्य आरोपियों अंकुर पाल और सुमित चौहान की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है।

ओबीसी के पक्ष में केंद्र सरकार अगले सप्ताह लाएगी एक और संशोधन विधेयक

नरेंद्र मोदी सरकार अगले सप्ताह एक और संविधान संशोधन विधेयक लाने जा रही है। इस पारित होने के बाद ओबीसी में जातियों के निर्धारण का अधिकार राज्यों के फिर से प्राप्त होगा। दरअसल, बीते 5 मई, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों और दाखिले में मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र के कानून को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था। यह फैसला जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया था। पीठ में जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस रविंद्र भट्ट शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष जो सवाल थे उनमें एक यह था कि इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) के संदर्भ में दिए गए फैसले की पुनर्समीक्षा हेतु बड़े पीठ को भेजा जाय अथवा नहीं? इसके अलावा महराष्ट्र सरकार द्वारा मराठाओं को 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को लांघते हुए 12 व 13 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना वैध है अथवा नहीं? क्या महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित एम.सी. गायकवाड़ कमेटी की रिपोर्ट में वर्णित तथ्य सही हैं और क्या इसके आधार पर मराठाओं को आरक्षण दिया जा सकता है जैसा कि विशेष परिस्थिति होने पर करने का प्रावधान इंद्रा साहनी मामले में तय है? वहीं एक सवाल 102वें संविधान संशोधन से संबंधित था जिसका संबंध राज्यों द्वारा किसी भी जाति/समुदाय को शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों में शामिल करने का अधिकार से है। सवाल यह था कि क्या जातियों का वर्गीकरण करने का अधिकार राज्यों से ले लिए जाएंगे और इससे संघीय व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

यह भी पढ़ें : दलित-बहुजनों के राजनीतिक-आर्थिक बहिष्करण को नई जनसंख्या नीति

इस संबंध में 102वें संविधान संशोधन के संबंध में जस्टिस राव, जस्टिस गुप्ता और जस्टिस भट्ट इस बात पर सहमत थे कि इस संशोधन के बाद राज्यों से पिछड़े वर्गों की पहचान करने का अधिकार खत्म हो गया है। संसद की सहमति के बाद केवल राष्ट्रपति की अधिसूचना से ही सूचियों में बदलाव संभव है। इसमें राज्य केवल अनुशंसा कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से ओबीसी की नई सूची बनाने को भी कहा और साथ में यह भी कि जब तक नई सूची नहीं बन जाती है, तब तक पहले की सूची मान्य रहेगी। तीनों न्यायाधीशों ने कहा था कि यह संशोधन संविधान के मूल स्वरूप के खिलाफ नहीं है।

मिलने गए जदयू सांसदों को पीएम ने किया डायवर्ट, वेटिंग में नीतीश

जातिगत जनगणना की मांग को लेकर बिहार के दो मुख्य राजनीतिक दलों राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाईटेड की सक्रियता बढ़ गयी है। जदयू की तरफ से बीते 2 अगस्त, 2021 को पार्टी के नवनिर्चाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सांसद ललन सिंह के नेतृत्व में पार्टी के सभी सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंचे। मिली जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा प्रधानमंत्री की सहमति मिलने के बाद ही उन्हें बुलाया गया था। परंतु, वहां पहुंचने पर उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने को कह दिया गया। हालांकि इसे लेकर जदयू सांसदों ने कोई टीका-टिप्पणी नहीं है। वहीं 4 अगस्त, 2021 को बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के नेता नीतीश कुमार ने पटना में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए समय मांगा है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलते जदयू के सांसदगण

चर्चा में स्टालिन सरकार

पेरियार के रास्तों पर चल रही तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने एक बार फिर जाति के विनाश को लेकर अहम पहल किया है। राज्य सरकार ने अपने पाठ्य पुस्तकों में विभिन्न महापुरुषों के नामों से उनकी जाति हटाने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के निर्देश पर अमल करते हुए तमिलनाडु टेक्स्ट बुक कारपोरेशन ने यू वी स्वामीनाथ अय्यर जैसे अनेक विद्वानों के नाम से जाति सूचक सरनेम को हटा दिया है। बताते चलें कि यू वी स्वामीनाथ अय्यर को तमिल थाथा भी कहा जाता है जिसका मतलब तमिल का सबसे महान पुरखा है। बारहवीं कक्षा के पाठ्य पुस्तक में स्वामीनाथ अय्यर पर केंद्रित एक अध्याय है, जिसमें उनके नाम के साथ अय्यर शब्द जुड़ा था। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद अब उनके नाम से अय्यर शब्द हटा दिया गया है।

नामों से जाति सूचक शब्द हटाने का फैसला हालांकि बहुत पहले ही किया गया था। वर्ष 1978 में द्रविड़ कषगम की वर्षगांठ के मौके पर इसके संस्थापक पेरियार ई.वी. रामासामी की मौजूदगी में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार सड़कों के नामों में जाति सूचक शब्दों को हटाएगी।  इस संबंध में उसी वर्ष एक आदेश राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया था। 

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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