सीएसडीएस, नई दिल्ली के निदेशक प्रो. संजय कुमार देश के प्राख्यात चुनावी विश्लेषक हैं। जातिगत जनगणना को लेकर देश भर में उठ रहे सवालों के मद्देनजर फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार से विशेष साक्षात्कार में प्रो. कुमार न केवल जातिगत जनगणना को अहमियत देते हैं बल्कि वे मंडल-2 आंदोलन का आगाज भी बताते हैं। प्रस्तुत है यह विशेष साक्षात्कार
साक्षात्कार
सैफोलॉजी के हिसाब से जातिगत जनगणना का महत्व क्या है?
सैफोलॉजी में आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि चुनाव में क्या नतीजे आएंगे। किस समुदाय के वोटरों की संख्या कितनी है, किस समुदाय के लोगों ने किनको वोट दिया, किस समुदाय ने बहुत ही कम वोट दिये, यह पता ही न हो कि उनकी आबादी कितनी है – इन सबकी चिंता खासकर होती है। लेकिन सैफोलॉजी अलग-अलग समुदाय के वोटरों का आंकलन सटीक तरीके से उपलब्ध कराने का कार्य करता है। वर्तमान में दलितों और आदिवासियों की मतदाताओं की संख्या उनकी जनगणना होने के नाते हमें जानकारी होती है, लेकिन ओबीसी समुदाय की चर्चा नहीं हो पाती। बिहार, तमिलनाडु और यूपी जैसे कई राज्यों में ओबीसी कितने हैं, इस बात की जानकारी हमें नहीं हो पाती है। इसी तरह उच्च जातियों की संख्या के बारे में भी हमें पता नहीं है। ये आंकड़े सैफोलॉजिकल इंटरप्रेटेशंस या चुनावी नतीजों के अध्ययन के लिए बहुत जरूरी होते हैं।