[भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में से एक ‘एयर इंडिया’ को टाटा समूह ने 18 हजार करोड़ रुपए की सबसे अधिक बोली लगाकर खरीद लिया है। इसके साथ ही यह सवाल उठने लगा है कि टाटा समूह द्वारा अधिग्रहण के बाद एयर इंडिया में काम करनेवाले कर्मियों का भविष्य क्या होगा। यह भी गौरतलब हे कि पहले भारत सरकार का सार्वजनिक उपक्रम होने के कारण एयर इंडिया में संविधान प्रदत्त आरक्षण लागू था। ऐसे में अब क्या होगा? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि निजी क्षेत्र में आरक्षण को लेकर भारत सरकार के द्वारा कोई नीति निर्धारित नहीं है। इन सभी सवालों के मद्देनजर फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने एयर कारपोरेशन ओबीसी इम्प्लॉयज एसोसिएशन के प्रेसिडेंट प्रदीप धोबले से दूरभाष पर विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपदित अंश]
साक्षात्कार : क्रीमीलेयर के अवरोध के कारण पायलट एवं अन्य पदों पर केवल 7-8 फीसदी ओबीसी
भारत सरकार ने एयर इंडिया को टाटा कंपनी के हाथों बेच दिया है। आपकी प्राथमिक प्रतिक्रिया क्या है?
देखिए, निजीकरण के नुकसान ही नुकसान हैं। इस संबंध में सभी ट्रेड यूनियनों के द्वारा संयुक्त रूप से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें भारत सरकार के फैसले की निंदा की गई है और कहा गया है कि एयर इंडिया को एक तोहफे के रूप में टाटा कंपनी को दे दिया गया है। प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि एयर इंडिया के पास 32 हजार करोड़ रुपए के हवाई जहाज हैं। भारत सरकार के साथ जो सौदा तय हुआ है उसके अनुसार टाटा इसके लिए 18 हजार करोड़ रुपए चुकायेगा और इसके तहत एयर इंडिया के उपर 62 हजार करोड़ रुपए कर्ज में से 15 हजार करोड़ रुपए कर्ज की देनदारी करेगा। अभी भी 47 हजार करोड़ रुपए की देनदारी भारत सरकार की होगी। यानी परिसंपत्तियों का निजीकरण तो सरकार ने कर दिया लेकिन कर्ज का निजीकरण नहीं हुआ है। आप यह देखें कि एयर इंडिया की अन्य संपत्तियां, बहुमूल्य लैंडिंग पार्किंग स्लॉट, ब्रांड, अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट अधिकार सब उसे मुफ्त में मिलेंगे।