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छठ से असुरों का संबंध लिखे जाने पर वरिष्ठ बहुजन पत्रकार पर भड़के बिहार के मनुवादी

बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें बिहार सरकार के अनोखे अघोषित आदेश के बारे में। इसके अलावा यह भी छत्तीसगढ़ में कैसे राज्य सरकार ने बैगा जनजाति के जिंदा लोगों को प्रतिमा बनने को मजबूर किया

बहुजन साप्ताहिकी

कुमार बिंदु, बिहार के रोहतास जिले के निवासी हैं और वरिष्ठ बहुजन पत्रकार हैं। उन्होंने फारवर्ड प्रेस के लिए भी स्वतंत्र रूप से लेखन किया है। बीते 8 नवंबर, 2021 को दैनिक हिन्दुस्तान के रोहतास-कैमूर संस्करण में प्रकाशित उनके एक आलेख को लेकर बिहार के मनुवादी भड़क गए हैं और सोशल मीडिया पर उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे हैं। दरअसल, हिन्दुस्तान में जो आलेख प्रकाशित हुआ, उसका शीर्षक था– “छठ : गैर वैदिक सूर्योपासना व अराधना का स्त्री-पर्व”। 

कुमार बिंदु ने छठ पर्व के संदर्भ में लिखा कि “सोन घाटी क्षेत्र का बहुचर्चित लोक-पर्व है छठ। सूर्योपासना व अराधना का यह लोकपर्व सूबे बिहार की सांस्कृतिक पहचान भी है। देश के विभिन्न प्रदेशों व विदेशों में भी रहने वाले बिहारी परिवार इस पर्व को करने लगे हैं, इसलिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर इसकी चर्चा होने लगी है। छठ मूलत: स्त्री-पर्व है। हालांकि आजकल अनेक पुरूष भी छठ व्रत करने लगे हैं। लेकिन, मुख्यत: सुहागिनें और खासतौर से नव विवाहित स्त्रियां संतान सुख के लिए यह पर्व करती हैं। छठ पर्व के पारंपरिक गीतों में यही कामना व्यक्त की गई है।”

कुमार बिंदु, बिहार के बहुजन पत्रकार

बिहार के मनुवादी कुमार बिंदु के जिस उद्धरण पर भड़के हैं, वह है– “पौराणिक शास्त्रों के वर्णित है कि जब कृष्ण के वंशज जब सूर्य मंदिर का निर्माण कराते हैं, तो उसके पूजन की विधि जानने वाला कोई वैदिक पुरोहित नहीं मिलता है। तब शाक्य द्वीप से असुर पुरोहित आहूत किए जाते हैं। असुर पुरोहित आहूत:। इस तथ्य को इतिहासकार भागवत शरण उपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति के स्रोत’ में बताया है। इससे सिद्ध होता है कि सूर्य पूजन की परंपरा गैर वैदिक है। शाक्य द्वीप से आए पुरोहितों के वंशज आज शाक्यद्वीपी या सकलदीपी ब्राह्मण कहे जाते हैं। यह गौर तलब है कि सूर्य मंदिर मगध प्रदेश में ही बने हैं। इतिहासकार डा. श्यामसुंदर तिवारी व इतिहास के अध्येत्ता कृष्ण किसलय के मुताबिक सोन के पश्चिम में रोहतास जिला के देव मार्कण्डेय तथा सोन के पूर्व में औरंगाबाद के देव [नामक स्थान] में बने मंदिर में सूर्य की प्रतिमा यूनानी शासक के वेश-भूषा वाली है। इतिहासकार डॉ.भागवत शरण उपाध्याय ने लिखा है कि ज्योतिष की प्रथम पुस्तक ‘होड़ाचक्रम’ है। होड़ा या होरा वैदिक संस्कृत का शब्द नहीं है। यह यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ होता है सूर्य। यूनानी सूर्य पूजक थे। यूनान की एक राजकुमारी हेलेना की शादी मगध प्रदेश के शासक चंद्रगुप्त से हुई थी। यानी देवी पूजक मगध प्रदेश में सूर्य पूजन की यह पंरपरा यूनान और असुर सभ्यता से जुड़ी हुई भी है, क्योंकि शाक्यद्वीपी ब्राह्मणों का भारत में निवास मगध प्रदेश में ही रहा है।”

मनुवादियों द्वारा दी जा रही प्रतिक्रिया के संबंध में कुमार बिंदु ने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया पर अपशब्द तो कहे ही जा रहे हैं, फोन पर भी परेशान किया जा रहा है जबकि उन्होंने जो लिखा है, उसका पूरा संदर्भ उन्होंने दिया है। उन्होंने बताया कि उनके मोबाइल पर 8299037752 नंबर से एक व्यक्ति ने फोन किया। उसने अपना परिचय एक जज के रूप में दिया और उसके बाद उसने अपशब्द कहे। वहीं उन्हें व्हाट्सअप पर शाकद्वीपीय जागृति मंच के मुकेश मिश्र ने लिखा कि “इस समाचार को लेकर सम्पूर्ण मगध क्षेत्र के शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में भारी असंतोष है। आरा, बक्सर, सासाराम कैमूर, गया, औरंगाबाद में ब्राह्मणों की काफी आबादी है। इस असत्य खबर के खिलाफ लोग अखबार का बायकॉट करने, बंडल जलाने और कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। इस मुतल्लिक सुबह से मेरे पास अनगिनत कॉल आये। आपके सूचनार्थ और आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रेषित।”

बहरहाल, कुमार बिंदु ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में स्थानीय पुलिस को सूचना दे दी है। उन्होंने यह भी कहा कि “इतिहासकार-पुरातत्वविद डा. भगवत शरण उपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति के श्रोत’ में लिखा है कि वेद में वरुण, अग्नि एवं अन्य कई देवताओं को ‘असुर’ विशेषण के साथ संबोधित किया गया है। अगर ऐसा है, तो ‘असुर’ विशेषण को अपमानजनक क्यों माना जाए? असीरियाई समुदाय के लोग ‘असुर’ कहे जाते थे। उनका बहुत बड़ा साम्राज्य भी था। शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ के हवाले से विद्वान बताते हैं कि जल-प्रलय के बाद ‘मनु’ ने अनुष्ठान कराने के लिए असुर पुरोहित को बुलाया था। इसके बाद भी असुर विशेषण को हेय, शुद्र और निगेटिव क्यों माना जाए? असुर शब्द गाली तो कत्तई नहीं है। विरोधी उसे गाली और अपमानजनक क्यों मान रहे हैं?” 

क्रीमीलेयर नीति में संशोधन के लिए केंद्र को पत्र

केंद्र सरकार की क्रीमीलेयर नीति में अस्पष्टता के कारण केंद्रीय सार्वजनिक लोकउपक्रम के ओबीसी कर्मियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस संबंध में ऑल इंडिया बैकवर्ड्स इम्पलॉयज फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव जी. करुणानिधि ने केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार को पत्र लिखा है। अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि पूर्व में केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा गठित बी.पी. शर्मा कमेटी की आय निर्धारण संंबंधी अनुशंसा को खारिज करते हुए पदों की समतुल्यता का निर्धारण किया जाय। उन्होंने लिखा है कि वार्षिक आय के निर्धारण में वेतन व कृषि से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाना चाहिए जैसा कि 8 सितंबर, 1993 को केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में उल्लेखित है।

बिहार में जहरीली शराब से होनेवाली मौत से हाेनेवाली बदनामी से बचने के लिए सरकार ने जारी किया अनोखा अघोषित आदेश  

बीते दो सप्ताह में बिहार में अलग-अलग स्थानों पर जहरीली शराब के कारण 42 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके कारण राज्य सरकार की जगहंसाई हो रही है। इस जगहंसाई से बचने के लिए राज्य सरकार ने अनोखा तरीका अपनाया है। मिली जानकारी के अनुसार सूबे के सूचना जनसंपर्क विभाग द्वारा राज्य के सभी अखबारों व न्यूज चैनलों को “जहरीली शराब” शब्द से परहेज करने और इसके बदले ‘मिलावटी पेय पदार्थ’ का उपयोग करने को कहा गया है। राज्य सरकार के द्वारा जारी अघोषित आदेश का असर अब दीखने लगा है। 12 नवंबर, 2021 को पटना से प्रकाशित दैनिक ‘प्रभातखबर’ में एक खबर प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है– “मुजफ्फरपुर : बोचहां में संदेहास्पद स्थिति में एक की मौत, हो रही जांच”। इस खबर के मुताबिक कांटी के बाद अब बोचहां में मिलावटी पेय पदार्थ पीने से धरभारा गांव के निवासी बुधु पासवान की मौत हो गई है। 

छत्तीसगढ़ में बैगा समुदाय के जनजाति के लोगों को प्रदर्शनी में शामिल करने पर कटघरे में बघेल सरकार

सामान्य तौर पर कला प्रदर्शनी के दौरान प्रतिमाओं, पेंटिंग व अन्य कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाता है। क्या आपने कभी देखा है कि प्रदर्शनी के दौरान जिंदा इंसानों को मूर्तिवत रहने को कहा गया हो। जी हां, ऐसा हुआ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज में राज्य सरकार द्वारा राज्य के स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कला प्रदर्शनी के दौरान। दरअसल, राज्य सरकार की मंशा थी कि वह इस प्रदर्शनी के जरिए विभिन्न सामाजिक समूहों की बेहतरी के लिए उसके द्वारा उठाए गए कदमों एवं उनकी संस्कृति के बारे में लोगों को बताना था। इसके लिए सरकार ने बैगा जनजाति के लोगों को प्रदर्शनी के दौरान प्रतिमावत रहने की हिदायत दे रखी थी। इसे लेकर सरकार की आलोचना की जा रही है।

(संपादन : अनिल, इनपुट सहयोग : तामेश्वर सिन्हा)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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