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बिहार में जातिगत जनगणना का रास्ता साफ, भाजपा उदासीन

बिहार में जातिगत जनगणना कराये जाने के सरकार के फैसले से सियासी हलचल तेज हो गयी हैं। खासकर भाजपा के नेताओं में इसके प्रति उदासीनता का भाव देखा रहा है। भाजपा जातिगत जनगणना को लेकर अपने रूख को स्पष्ट नहीं कर पा रही है

जातिगत जनगणना को लेकर उल्लेखनीय पहल करते हुए बिहार सरकार ने अपने बूते जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है। इस संबंध में अहम घोषणा बीते 6 दिसंबर, 2021 को पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की। ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ नामक अपने साप्ताहिक कार्यक्रम के बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत में कुमार ने कहा कि इस मामले में वह अपने साझेदारों (भाजपा) से बात कर रहे हैं और यह विश्वास जताया कि सभी इस मामले सहमत होंगे। 

इससे तीन दिन पहले विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्षी दलों के शिष्टमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और उन्हें उनके वायदे का स्मरण दिलाया कि यदि केंद्र सरकार जातिगत जनगणना नहीं कराएगी तब राज्य सरकार अपने बूते इसे अंजाम देगी। वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जो कि बिहार में सत्ता में साझीदार है, अभी इस मसले पर उहापोह की स्थिति में है।

इस प्रकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा से यह स्पष्ट हो गया है कि 90 साल के बाद बिहार में जातिगत जनगणना करायी जाएगी। इससे पहले 1931 में अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा जातिगत जनगणना करायी गयी थी और तब से उसी जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर देश में नीतियों व योजनाओं का निर्माण होता रहा है।

नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार

बिहार में जातिगत जनगणना कैसे करायी जाएगी, इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसकी जानकारी नहीं दी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अभी तो हमने अपने बूते जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया है। इसके पहले दो बार विधान मंडल में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा ताकि जातिगत जनगणना हो सके। लेकिन जब केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने से इन्कार कर दिया है तब हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचता है कि हम अपने संसाधनों से इसे पूरा करें। उन्होंने कहा कि जनगणना के नियम क्या होंगे या इसके लिए कोई आयोग बनाया जाएगा, इन सब बातों पर विचार किया जा रहा है। सभी लोगों से राय ली जा रही है।

कुमार ने अभी इसकी घोषणा नहीं की है कि सरकार जातिगत जनगणना किस तारीख से शुरू कराएगी। वहीं यह पूछे जाने पर कि जातिगत जनगणना कराये जाने संबंधी बात संविधान में नहीं है, कुमर ने कहा कि संविधान में राज्य को इसका अधिकार दिया गया है कि जो सामाजिक और शैक्षणिक से पीछे रह गए हैं, उनकी पहचान कराए और उनके लिए योजनाएं बनाए। इसलिए इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है।

बहरहाल, बिहार में जातिगत जनगणना कराये जाने के सरकार के फैसले से सियासी हलचल तेज हो गयी हैं। खासकर भाजपा के नेताओं में इसके प्रति उदासीनता का भाव देखा रहा है। भाजपा जातिगत जनगणना को लेकर अपने रूख को स्पष्ट नहीं कर पा रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने दूरभाष पर बातचीत में कहा कि वे अभी इस मामले में कोई टीका-टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। इस संबंध में अपने केंद्रीय नेतृत्व से विचार-विमर्श किया जाना आवश्यक है। हालांकि इससे पहले जायसवाल ने साफ तौर पर मना करते हुए कहा था कि तकीनीकी कारणों से जातिगत जनगणना केंद्र के स्तर से नहीं करायी जा सकती है। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा था कि जनगणना का काम दो साल पहले शुरू किया जा चुका है जो कि कोरोना महामारी के कारण प्रभावित हुआ है, अब उसमें कोई नया फैक्टर नहीं डाला जा सकता है।

वहीं इस मामले में पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने हालांकि कहा है कि भाजपा जातिगत जनगणना के विरोध में नहीं है। लेकिन व्यवहारिक बाधाएं हैं। जातिगत जनगणना कराये जाने में कौन-सी बाधाएं हैं, इस बारे में मोदी ने कोरोना का उदाहरण देते हुए कहा कि अभी देश में टीकाकरण का अभियान चलाया जा रहा है और प्राथमिकता के लिहाज से यह बेहद जरूरी है।

इस प्रकार, 1990 में मंडल कमीशन की अनुशंसाएं लागू किये जाने के बाद यह पहला मौका है जब पक्ष और विपक्ष (भाजपा को छोड़कर) दोनों एक साथ नजर आ रहे हैं। बिहार में जातिगत जनगणना को कांग्रेस, भाकपा माले, सीपीआई, सीपीएम, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी तमाम दलों के नेता एक साथ मुखर हुए हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)


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