उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के सभी प्रत्याशियों का नामांकन का कार्य भी पूर्ण हो चुका है और उम्मीदवारों की तस्वीर अब बिल्कुल साफ हो गयी है। हालांकि सवाल अब भी शेष है कि पसमांदा यानी पिछड़े समाज के व्यक्ति को किन-किन पाटिर्यों ने कितनी उम्मीदवारी दी है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्येांकि बहुजन नायक कांशीराम कहा करते थे कि राजनीतिक भागीदारी प्रत्येक समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार कर सकती है।
फिलहाल पहले चरण की जो सूची सार्वजनिक तौर पर घोषित है, उसके हिसाब से भाजपा ने किसी भी मुसलमान को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। वहीं सपा-रालोद के मुख्य विपक्षी गठबंधन ने पहले चरण के लिए जिन 58 उम्मीदवारों को उम्मीदवार बनाया है, उनमें से कुल 12 उम्मीदवार मुस्लिम समाज से हैं। इनमें 4 पसमांदा समाज के हैं। मसलन, मेरठ शहर विधानसभा से पूर्व विधायक रफ़ीक़ अंसारी को उम्मीदवार बनाया गया है, जो कि पसमांदा समाज से आते हैं। इनके अलावा मेरठ दक्षिण विधानसभा से आदिल चौधरी, बुलंदशहर विधानसभा से हाजी यूनुस (गद्दी समाज) से हैं को रालोद ने और समाजवादी पार्टी ने सहारनपुर देहात से पूर्व एमएलसी आशु मलिक को अपना उम्मीदवार बनाया है।
इस प्रकार कुल मिलाकर देखें तो गठबंधन ने अपने 12 मुस्लिम उम्मीदवारों में से पांच उम्मीदवार पसमांदा मुस्लिम समाज से उतारे हैं। इनके अलावा कैराना विधानसभा चुनाव से लड़ रहे नाहिद हसन गुर्जर समाज से आते हैं।
वहीं कांग्रेस ने पहले चरण के लिए 58 प्रत्याशियों में से कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पसमांदा समाज की नुमाइंदगी की बात करें तो कांग्रेस ने दिल्ली से सटी हुई लोनी विधानसभा से यामीन मलिक को टिकट दिया है। मीरापुर विधानसभा से मौलाना जमील जो पूर्व में विधायक रहे हैं और झोझा बिरादरी से हैं, को मैदान में उतारा है। इसके अलावा कांग्रेस ने मेरठ दक्षिण विधानसभा से सैफी समाज के नफीस सैफी को टिकट दिया है। यानी कांग्रेस ने 3 पसमांदा और 8 अशराफ मुसलमानों को अपना उम्मीदवार बनाया है।
जबकि बसपा ने 58 प्रत्याशियों में से कुल 13 मुस्लिमों को अपना प्रत्याशी बनाया है। लेकिन इसमें पसमांदा मुस्लिम समाज के उम्मीदवार कांग्रेस के बराबर हैं। इनमें बुढ़ाना विधानसभा से पार्टी ने अनीश अल्वी को टिकट दिया है। वहीं मीरापुर विधानसभा से मोहम्मद शालिम क़ुरैशी को अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि मुरादनगर विधानसभा से अय्यूब इदरीसी को अपना टिकट दिया है।
पहले चरण में पसमांदा उम्मीदवारों की हिस्सेदारी
पार्टी | कुल मुसलमान उम्मीदवार | पसमांदा उम्मीदवारों की संख्या |
---|---|---|
भाजपा | शून्य | शून्य |
सपा+रालोद | 12 | 4 |
बसपा | 13 | 3 |
कांग्रेस | 11 | 3 |
जाहिर तौर पर पसमांदा समाज जिसकी आबादी मुसलमानों की कुल आबादी का लगभग 80 फीसदी है, उसके साथ बेइंसाफी हुई है। ऐसे में पूर्व राज्यसभा सांसद और ऑल इंडिया पसमांदा महाज़ के अध्यक्ष,अली अनवर, का वक्तव्य प्रासंगिक हो जाता है, जिसे उन्होंने अपनी किताब ‘मसावात की जंग’ में लिखा है– “भारत का संविधान लिखे जाने के वक़्त मुस्लिम नेताओं ने अपने समाज के किसी तरह का आरक्षण नहीं मांगा। जैसा कि दलित नेताओं ने किया था। ये अपने मरहूम रहनुमाओं की नीयत पर शक़ नहीं, बल्कि पिछले 50 साल के अनुभव का पीड़ादायक पहलू है कि अपने अंदर के भेदभाव और गैर बराबरी को छुपाने के नतीजा अब नासूर के रूप में फूट रहा है।”
सन 2022 में भी अगर मुस्लिम समाज का बहुसंख्यक और सबसे पिछड़ा हुआ पसमांदा समाज राजनीतिक रूप से उभर नहीं पा रहा है तो यह सवाल न सिर्फ मुस्लिम समाज के राजनेताओं पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि 30 से 35 सालों से चलते आ रहे पसमांदा आंदोलन और उसके नेताओं पर भी सवाल खड़ा करता है कि आखिर क्यों भागीदारी और हिस्सेदारी का सवाल इतना पीछे छूट गया है?
(संपादन : नवल/अनिल)