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यूपी चुनाव : पांचवें दौर में बही बदलाव की फागुनी बयार

जिन 12 ज़िलों में 27 फरवरी को वोट डाले गए हैं उनमें बाराबंकी, कौशाम्बी, अमेठी, अयोध्या, बहराइच, और गोंडा में समाजवादी पार्टी मज़बूत दिख रही है। प्रयागराज, श्रावस्ती, सुलतानपुर, प्रतापगढ़ और चित्रकूट में कांटे की टक्कर है। पढ़ें, सैयद जैगम मुर्तजा का विश्लेषण

उत्तर प्रदेश में पांच दौर के मतदान हो चुके हैं। पांचवें चरण का मतदान गत 27 फरवरी, 2022 को संपन्न हुआ। अब जबकि 403 में से केवल 111 सीटों पर वोटिंग होना शेष है, ऐसे में राज्य में बनने वाली अगली सरकार की तस्वीर भी पहले से साफ होती जा रही है। हालांकि अभी कहानी सिर्फ क़यासबाज़ी की है। लेकिन फिर भी कहा जा सकता है कि 292 सीटों पर वोटिंग के बाद समाजवादी पार्टी का पलड़ा बस थोड़ा सा भारी है। पांचवे दौर की वोटिंग के बाद लोगों का दावा है कि राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री रहे कई नेताओँ का इस बार जीत पाना आसान नहीं है।

उत्तर प्रदेश में इस बार किसकी हवा है? यह एक ऐसा सवाल है जिसे लेकर सत्ताधारी भाजपा समेत कोई भी पार्टी साफ-साफ दावा करने की हालत में नहीं है। हालांकि समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव अपनी भारी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि इस बार जनता स्वयं चुनाव लड़ रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी दावा है कि उनकी पार्टी के पक्ष में लोगों का मज़बूत समर्थन है। हालांकि जैसी भाषा उनकी पार्टी के नेता अब बोल रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि यूपी में भाजपा की राह आसान नहीं है।

ख़ैर, पांचवें चरण में राज्य के 12 ज़िलों में कुल 61 सीटों पर 55 प्रतिशत मत डाले गए। इन 12 ज़िलों में मतदाताओं ने कुल 693 उम्मीदवारों के निर्वाचन के फैसले को ईवीएम के सुपुर्द कर दिया। इस दौर के मतदान में कुछ खास बातें सामने आयीं।। पहली, इस दौर में वोटिंग को लेकर मतदाताओं में कुछ ख़ास उत्साह नहीं रहा। कम वोटिंग का मतलब उत्तर प्रदेश में देश के बाक़ी राज्यों से अलग होता है। यहां माना जाता है कि साठ फीसदी के ऊपर जब भी वोटिंग होती है वह भाजपा के लिए फायदेमंद होती है। कम वोटिंग, मतलब तमाम सीटों पर क़रीबी मुक़ाबला है और भाजपा के लिए राह इतनी आसान नहीं है, जितनी पार्टी के नेता क़रीब एक महीना पहले तक दावा कर रहे थे।

दूसरी अहम घटना यह हुई कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य वोटिंग शुरु होने के कुछ देर बाद ही, यानी क़रीब 9 बजे अपने विधानसभा क्षेत्र सिराथू (कौशाम्बी) से बनारस के लिए रवाना हो गए। उन्होंने मान लिया कि अपने वोटरों के बीच रहने से बेहतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में उपस्थित रहना है। यह उनका अति आत्मविश्वास भी हो सकता है या फिर संभावित हार का संकेत भी। उनका मुक़ाबला अपना दल (कमेरा) की पल्लवी पटेल से है। इंद्रजीत सरोज, जो ख़ुद बराबर वाली सीट मंझनपुर से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार हैं, ने केशव प्रसाद मौर्य के लिए तमाम दुश्वारियां खड़ी कर रखी हैं। 

पांचवें चरण के दौरान सिराथु के एक मतदान केंद्र पर महिलाओं में दिखा उत्साह

हालांकि केशव प्रसाद मौर्य धनबल और सत्ताबल के सहारे भले ही चुनाव जीत जाएं, लेकिन इस बार यह इतना आसान लग नहीं रहा। कम मतदान के बीच जिस तरह सिराथू में मुसलमान, पटेल, पासी और दलित मतदाताओं का ध्रुवीकरण देखने को मिला है, वह केशव के लिए अच्छा संकेत नहीं है। 

सिर्फ केशव ही नहीं, योगी सरकार में कई दूसरे मंत्री भी इस बार चुनाव में मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं। भले ही भाजपा दावा कर रही है कि उसके पक्ष में ज़बरदस्त लहर है लेकिन राज्य सरकार के मंत्री न सिर्फ जनता के ग़ुस्से का बल्कि बूथ पर ज़बरदस्त सत्ता विरोधी हवा से रू-ब-रू हो रहे हैं। मसलन, योगी सरकार में मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह (इलाहाबाद पश्चिम), नंद गोपाल नंदी (इलाहाबाद दक्षिण), राजेंद्र सिंह (पट्टी, प्रतापगढ़), रमापति शास्त्री (मानकपुर, गोंडा) मुश्किल में नज़र आ रहे हैं। यही हाल पार्टी उम्मीदवार मयंकेश्वर सिंह (तिलोई, अमेठी) और संजय सिंह (अमेठी सदर) का भी है। एक महीना पहले तक भाजपा के इन तमाम क़द्दावर उम्मीदवारों ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि उनको अपने मज़बूत गढ़ मानी जाने वाली सीटों पर कोई विपक्षी उम्मीदवार चुनौती भी दे सकता है। न सिर्फ भाजपा के नेता बल्कि कुंडा (प्रतापगढ़) से जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के उम्मीदवार रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को भी उनके क्षेत्र में पहली बार गंभीर चुनौती मिल रही है। 

जिन 61 सीटों पर रविवार को वोटिंग हुई उनमें अधिकतर पर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुक़ाबला है। हालांकि सत्ता की दौड़ से बाहर मानी जा रही कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार इस दौर में कुछ बेहतर प्रदर्शन करते दिख रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार अराधना मिश्रा (रामपुर ख़ास, प्रतापगढ़), और विजय पासी (जगदीशपुर, अमेठी) से मज़बूत नज़र आ रहे हैं। इसी तरह रुदौली (अयोध्या) में बीएसपी उम्मीदवार अब्बास अली के समर्थन में ठीक-ठाक वोटिंग हुई है। लेकिन फिर भी इस दौर में तमाम पार्टियों के कई बड़े चेहरों को हार का मुंह देखना पड़ा सकता है।

सिराथू के अलावा भाजपा की प्रतिष्ठा अगर किसी सीट को लेकर दांव पर है तो वह है अयोध्या। राम मंदिर मुद्दे पर सियासत की सीढ़ीयां चढ़ने वाली भाजपा अयोध्या सदर समेत ज़िले की तमाम सीटों पर मुश्किल में है। मथुरा की तरह ही पार्टी को अयोध्या सीट पर कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ रहा है। अगर भाजपा मथुरा और अयोध्या में चुनाव हारती है तो पार्टी के लिए यह तक़रीबन अपमानजनक साबित होगा। अयोध्या में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार पवन पांडे मज़बूती से लड़े हैं। जिस तरह यहां औसत से कम वोटिंग हुई है, उसके मद्देनज़र पवन पांडे जीत भी सकते हैं। 

इसके अलावा जो उम्मीदवार मज़बूत नज़र आ रहे हैं, उनमें अपना दल (कमेरा) उम्मीदवार और स्वर्गीय सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल (प्रतापगढ़ सदर), पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी प्रजापति (अमेठी), स्वर्गीय राजू पाल की पत्नी और समाजवादी पार्टी उम्मीदवार पूजा पाल (चायल, कौशाम्बी), पूर्व सांसद और समाजवादी पार्टी महासचिव इंद्रजीत सरोज (मंझनपुर, कौशाम्बी), पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का पुत्र राकेश वर्मा (कुर्सी, बाराबंकी), पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप (दरियाबाद, बाराबंकी), फरीद महफूज़ किदवई (रामनगर, बाराबंकी) शामिल हैं।

जिन 12 ज़िलों में 27 फरवरी को वोट डाले गए हैं उनमें बाराबंकी, कौशाम्बी, अमेठी, अयोध्या, बहराइच, और गोंडा में समाजवादी पार्टी मज़बूत दिख रही है। प्रयागराज, श्रावस्ती, सुलतानपुर, प्रतापगढ़ और चित्रकूट में कांटे की टक्कर है। कुल मिलाकर भाजपा के लिए यह दौर इसलिए बेहतर नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि 2017 के चुनाव में इन 61 सीटों में से पार्टी ने 47 पर जीत हासिल की थी और तीन सीट पर उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) के उम्मीदवार जीते थे। इस बार पार्टी के सामने इन पचास सीटों को दोबारा जीतने की चुनौती है जो आसान नज़र नहीं आ रही।

तो क्या भाजपा यूपी में चुनाव हार गई है? हालांकि पांचवें दौर की वोटिंग और महज़ क़यासों के आधार पर यह दावा करना जल्दबाज़ी होगी। लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी इस वक़्त अगली सरकार बनाने के लिए मज़बूत स्थिति में है। अगर समाजवादी पार्टी बचे हुए दो दौर में पिछड़ों को और बेहतर तरीक़े से अपने पक्ष में लामबंद कर पाई तो उसको सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है। इन सबके बावजूद पांचवें चरण के मतदान में किसी की आंधी नहीं चली। बह रही है तो केवल बदलाव की फागुनी बयार।

(संपादन : नवल/अनिल)


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सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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