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बहस-तलब : जरा सोचिए, हमारे दिमाग में किस तरह का जहर है और इसे फैला कौन रहा है?

अब भारत के लोग सिर्फ मुसलमानों से नफरत नहीं करते। बल्कि वे फीस कम करने की मांग करने वाले विद्यार्थियों से भी नफरत करते हैं। बराबरी की मांग करने वाली महिलाओं को यह लोग गालियां देते हैं। फसलें लूटने के लिए लाये गये कानूनों का विरोध करने वाले किसानों को यही लोग आतंकवादी कहते हैं। पढ़ें, हिमांशु कुमार का यह विश्लेषण

भारतीय समाज में अनेक प्रकार की विसंगतियाें की अनेक वजहें हैं। इन विसंगतियों की वजह से भारत की दुर्दशा के कई आयाम हैं। आज अगर इसकी दुर्दशा के कारणों की सूची बनाऊँ तो वह कुछ इस तरह की होगी। एक तो यह कि भारत के लोग दूसरे लोगों से नफरत करते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि वे कल्पना करते हैं कि वे किसी दूसरी जाति के हैं और इसलिए वे दूसरे इंसान से एक काल्पनिक कारण से ज्यादा ऊंचे और बेहतर हैं। ऐसी कल्पना करने वाले लोग केवल अनपढ़ या अज्ञानी लोग ही नहीं हैं, बल्कि पढ़े-लिखे वैज्ञानिक, डाक्टर इंजीनियर व अन्य व्यवसायिक डिग्रीधारी लोग भी हैं। 

इतना ही नहीं, ये पढ़े-लिखे लोग इस काल्पनिक जाति की रक्षा करने के लिए इसकी तरफदारी करने वाली राजनीति और घटिया दंगाई नेताओं को समर्थन देते हैं चंदा देते हैं और वोट देकर सत्ता सौंपते हैं। जबकि जाति के चंगुल से निकलने की कोशिश करने वाले मेहनतकश लोग, जो ईसाई या मुसलमान बन गए, उन लोगों के काम-धंधे नष्ट करने के लिए उन पर लगातार हमले करने और उनकी इस गलती के लिए उन्हें सबक सिखाने वाले दंगाइयों को यह जातिवादी बड़ी आबादी अपना नायक मानती है। 

भारत की बड़ी आबादी के दिमाग में यह जातिवादी नफरत इतनी ज्यादा भर गई है कि भले ही संविधान सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा की गारंटी देता हो, लेकिन जब सरकार अमीरों के लाभ के लिए देश के कमज़ोर लोगों के मानवाधिकारों पर हमला करती है तो देश की बड़ी आबादी अपनी जातिवादी नफरत की वजह से खुशियां मनाती है और सरकार का समर्थन करती है। 

सनद रहे कि भारत की आज़ादी के समय तय हुआ था कि आज़ादी के बाद सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की स्थापना की जाएगी। लेकिन आज जनता का एक समुदाय दूसरे समुदाय के साथ होने वाले अन्याय को समर्थन दे रहा है। 

हिन्दुओं का एक बड़ा तबका इस बात की कल्पना से ही खुश है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) व राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) लागू होने के बाद बड़े पैमाने पर मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी और उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाल दिया जाएगा। जबकि आज भी भारत में दलितों, घूमंतू व खानाबदोश व आदिवासियों के अलावा पिछड़े वर्ग के लोगों की बड़ी आबादी है जो भूमिहीन हैं। इनके पास जमीन के दस्तावेज नहीं हैं। तो जब मुसलमानों से कागज मांगा जाएगा तो क्या ये गैर-मुस्लिम आबादियां सरकारी दमन का शिकार नहीं होंगीं?

गढ़े जा रहे हैं नफरत के नये प्रतीक

इसका बड़ा कारण भारत का ब्राह्मणवादी धर्म और उसके द्वारा पैदा किया गया अवैज्ञानिक चिंतन और भेदभावकारी घृणा फैलाने वाला ब्राह्मण धर्म है। ब्राह्मणों ने यह फैलाया कि वह मन्त्रोच्चार से चमत्कार कर सकते हैं। जबकि यह पूरी तरह झूठ है। ब्राह्मणों ने यह भी अंधविश्वास फैलाया कि वे पूजा-पाठ करके किसी की ज़िन्दगी के दुःख दूर कर सकते हैं या सुख बढ़ा सकते हैं। इन सब प्रपंचों के जरिए ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था और जाति के नाम पर एक ऐसा जहर पूरी आबादी के बीच घोल दिया, जिसकी वजह से आज भारत की बड़ी आबादी काल्पनिक नफरत को अपने दिमाग में भर कर घूम रही है और जिसके कारण वह अपने ही देश के लोगों का नुकसान करने की योजना बनाता रहता है।   

इस वजह से आज भारतीय जनता तर्क करने में असमर्थ होती जा रही है। हमारे घरों के लोग भी काल्पनिक और झूठे प्रचार की गिरफ्त में आ चुके हैं। ये लोग साधारण सा भी तर्क सुनना नहीं चाहते, विचारना तो खैर दूर की बात है। 

मेरे ही परिवार की एक सदस्य ने कहा कि मुसलमान अपने घरों में हथियार रखते हैं, वे दस-दस बच्चे पैदा करते हैं और अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं ताकि हिन्दुओं से ज्यादा हो जाएं। मैंने उनसे कहा कि हमारे घर के सामने रशीद ताउजी रहते थे। और उनके बगल में ही नकी ताउजी रहते थे जो मुस्लिम थे। हम उनके घर में खेलते थे, खाना खाते थे। हमने तो उनके घर में कभी कोई हथियार नहीं देखा। ना ही यह रशीद ताउजी या नकी ताउजी को हमने कभी मोहल्ले में किसी हिन्दू के खिलाफ तलवारें लेकर लड़ते हुए देखा। उलटे हम ब्राह्मण थे और हमारे घर में दो तलवारें, एक दोनाली बंदूक, एक फरसा, एक गुप्ती और एक रामपुरी चाकू जो मैंने खुद स्टूडेंट लाइफ से अपनी जेब में रखा है, होता था।

इस हकीकत के बावजूद हम उनके उपर झूठे इल्जाम लगा रहे हैं। इसके अलावा दूसरा इलज़ाम कि मुसलमान दस दस बच्चे पैदा करते हैं वह भी बिलकुल झूठा है। हमारे अपने ब्राह्मण ताउजी के अट्ठारह बच्चे, हमारी दादी के ग्यारह बच्चे और हमारे पिताजी के पांच बच्चे हुए वैसे ही रशीद ताउजी के भी छह बच्चे हुए और नकी ताउजी के भी पांच बच्चे हुए। आज हम हिन्दुओं की अगली पीढी के एक या दो बच्चे हैं। ऐसे ही नकी ताउजी और रशीद ताउजी के परिवार की अगली पीढी के घरों में भी एक या दो बच्चे हैं। 

सच यही है कि पढ़े-लिखे हिन्दू जितने बच्चे पैदा करते हैं, पढ़े-लिखे मुसलमान भी उतने ही बच्चे पैदा करते हैं।

लेकिन नफरत फैलानेवालों ने मुगलों के अत्याचारों की काल्पनिक कहानियां सुना कर हमें आज के मुसलमानों से नफरत करने के लिए भड़का रहे हैं। जबकि आज के मुसलमानों का मुगलों से कोई लेना-देना नहीं है। इंतहा यह कि पाकिस्तान में सीरिया में या अफगानिस्तान में होने वाली किसी भी घटना के लिए भारत के मुसलमानों को जिम्मेदार बता कर उनके खिलाफ नफरत भड़काई जाती है।

दरअसल, समस्या सिर्फ हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़का कर राजनीतिक सत्ता पर कब्ज़ा कर लेने का नहीं है। समस्या यह है कि पूरी सत्ता का ही चरित्र इससे बदल जाता है। 

अब भारत के लोग सिर्फ मुसलमानों से नफरत नहीं करते। बल्कि वे फीस कम करने की मांग करने वाले विद्यार्थियों से भी नफरत करते हैं। बराबरी की मांग करने वाली महिलाओं को यह लोग गालियां देते हैं। फसलें लूटने के लिए लाये गये कानूनों का विरोध करने वाले किसानों को यही लोग आतंकवादी कहते हैं। यह जनता युक्रेन में फंसे विद्यार्थियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर नफरती पोस्ट लिखती है, क्योंकि ये विद्यार्थी भारत सरकार से खुद की मदद करने की मांग कर रहे थे। 

ब्राह्मणवादी नफरत का यह ज़हर इतना व्यापक और प्रभावी हो चूका है कि आज यह जनता कहती है कि भले ही पेट्रोल महंगा कर दो, आटा महंगा कर दो, हमें बर्बाद कर दो, लेकिन हम तैयार हैं। बस मुसलमानों को परेशान करते रहो। जब किसी देश की जनता सरकार के सामने जमीन पर ऐसे लोट रही हो कि खुद को बर्बाद करने की गुहार लगा रही हो तो सोचिये वह सत्ता इस अबाध ताकत का इस्तेमाल करके कितनी हिंसा और पूंजीपतियों के लिए दौलत की लूट करेगी। डर यही है कि आज की सत्ता को पता है कि जनता इस नफरत को समर्थन दे रही है, इसलिए वह इसे और भी ज्यादा भड़काते जायेंगे।इसका नतीजा यह होगा कि समाज टूटेगा, देश टूटेगा। इसकी पूरी जिम्मेदारी उनकी होगी जो आज भारत के लोगों के दिमागों में धार्मिक और जातिवादी नफरत फैला रहे हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

हिमांशु कुमार

हिमांशु कुमार प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता है। वे लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के जल जंगल जमीन के मुद्दे पर काम करते रहे हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में आदिवासियों के मुद्दे पर लिखी गई पुस्तक ‘विकास आदिवासी और हिंसा’ शामिल है।

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