बीते 29 मार्च, 2022 को देश की राजधानी दिल्ली में दो अलग-अलग घटनाओं में छह सफाईकर्मियों की मौत हो गई। इन दोनों मामलों में राज्य सरकार ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है कि मारे गए कर्मी ठेकेदार के आदमी थे।
पहली घटना दिल्ली के समयपुर बादली थाना क्षेत्र के संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर इलाके में घटित हुई। वहां एमटीएनएल कंपनी के काम के लिए तीन सफाईकर्मी सीवर में उतरे। इनमें सूरज कुमार साहनी, बच्चू सिंह जाटव और पिंटू राऊत शामिल थे। जब बहुत देर तक वे बाहर नहीं निकले तब उनका एक रिक्शा चालक सतीश कुमार भी सीवर में उतरा और वह भी फंस गया। करीब नौ घंटे की मशक्कत के बाद चारों लाशों को बाहर निकाला जा सका। सूरज साहनी के बारे में बताया जाता है कि वह एक छोटा-मोटा ठेकेदार था। शेष दो यानी बच्चू सिंह जाटव और पिंटू राऊत भी एमटीएनएल के कर्मी नहीं थे।

दूसरी घटना है न्यू अशोक नगर थाना के दल्लूपुरा इलाके की। वहां दिल्ली जल बोर्ड के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में काम करने उतरे दो सफाईकर्मी (सरकार की नजर में कर्मी नहीं, ठेकेदार के आदमी) नितेश सिंह व यशदेव जाटव की मौत जहरीली गैस से दम घुटने की वजह से हो गई।
पंजाब : महिला किसान यूनियन की नेता ने की नीट खारिज करने की मांग
देश भर में मेडिकल शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु नेशनल एलिजीबिलिटी इंट्रेंस टेस्ट (नीट) का विरोध शुरू हो गया है। अब पंजाब में महिला किसान यूनियन की राज्य अध्यक्ष बीबी राजविंदर कौर राजू ने भी राज्य सरकार से मांग किया है कि वह नीट को खारिज करे। बताते चलें कि दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में पहले ही नीट को खारिज करने के संबंध में वहां की एम. के. स्टालिन सरकार ने पहल शुरू कर दी है।

अपने बयान में बीबी राजविंदर कौर राजू ने कहा है कि केंद्र सरकार की प्रवेश नीति ने बड़ी संख्या में गरीब और मेधावी ग्रामीण बच्चों के सपनों को खत्म कर दिया है। इसका दुष्परिणाम यह भी हुआ है कि मेडिकल की पढ़ाई बहुत महंगी हो गई है और बड़ी संख्या में युवाओं को विदेश में जाकर अध्ययन करना पड़ता है। उन्होंने सभी दलों के नेताओं से अनुरोध किया है कि वे अमीरों के लिए खास तौर पर बनायी ‘नीट’ नीति को खत्म करने की दिशा में पहल करें।
भागलपुर में वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहा– बहुजन दृष्टि सोशल इंजीनियरिंग नहीं
बीते 23 मार्च, 2022 को बिहार के भागलपुर जिले में दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में वरिष्ठ दलित पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहा कि बहुजन दृष्टि केवल सत्ता तक सीमित नहीं है। बहुजन दृष्टि में स्त्री-पुरुष की समानता है। धर्म का महत्व केवल उतना ही है जो बहुजन चेतना को सक्रिय रखने में मददगार है। बहुजन दृष्टि का मूल तत्व समानता, बराबरी व आजादी है। उन्होंने कहा कि बहुजन दृष्टि सोशल इंजीनियरिंग नहीं है। सोशल इंजीनियरिंग के जरिए सामाजिक न्याय और बदलाव की राजनीति आगे नहीं बढ़ सकती है। इस रास्ते आरएसएस से नहीं लड़ा जा सकता है। सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बहुजन चेतना को अवरूद्ध किया जाता है। सोशल इंजीनियरिंग के खेल में नहीं फंसना है।

भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु शहादत दिवस के मौके पर सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम का विषय ‘बहुजन आंदोलन: दृष्टि, एजेंडा व दिशा’ रखा गया था। इस मौके पर अपने संबोधन में पूर्व राज्यसभा सदस्य व ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष अली अनवर अंसारी ने कहा कि सामाजिक न्याय की राजनीतिक धाराओं के पास भाजपा से मुकाबला करने के लिए स्पष्ट व ठोस विचारधारा नहीं है। सामाजिक न्याय व बहुजनों की राजनीतिक पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह चलती हैं। इन पार्टियों के पास ठोस एजेंडा नहीं है। केवल चुनाव के दायरे मे सक्रियता रहती है और सत्ता के लिए जोड़तोड़-तिकड़म पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि ‘ए टू जेड’ और ‘सर्वजन’ के नारे के साथ बहुजन दृष्टि का रिश्ता नहीं बनता है। वहीं कथाकार व सामाजिक कार्यकर्ता रामजी यादव ने कहा कि सामाजिक न्याय की बात करने वाली छद्म समाजवादियों ने सामाजिक न्याय के ठोस सवालों पर डटने-टिकने का काम नहीं किया। भूमि सुधार, शिक्षा अधिकार, शासन-सत्ता व कारोबार में दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों की हिस्सेदारी की लड़ाई को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया। सामाजिक न्याय या बहुजन राजनीति की अवसरवादी धाराओं से बहुत कुछ नहीं निकलेगा। बहुजन आंदोलन को व्यापक दृष्टि व एजेंडा के साथ सामने आना होगा।
इनके अलावा प्रसिद्ध चिकित्सक व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. पीएनपी पाल ने कहा कि सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव के संघर्ष के बगैर राजनीतिक बदलाव का संघर्ष टिक व बढ़ नहीं सकता है। वहीं डॉ. विलक्षण रविदास ने कहा कि बहुजन दृष्टि संविधान की प्रस्तावना में अभिव्यक्त हुआ है। बहुजन दलों के पास बहुजन दृष्टि नहीं है। बहुजन राजनीतिक धाराएं संपूर्णता में सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय व राजनीतिक न्याय की बात नहीं करते हैं।
कार्यक्रम को हरिकेश्वर राम, पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता शिव दास, सामाजिक कार्यकर्ता नवीन प्रजापति, रामानंद पासवान व रिंकू यादव ने संबोधित किया।
बिहार के कैमूर में बाघ अभयारण्य के खिलाफ एकजुट हुए आदिवासी
बीते 28 मार्च, 2022 को बिहार के कैमूर जिला मुख्यालय में बड़ी संख्या में आदिवासी जुटे। दरअसल, यह एक पदयात्रा की परिणति थी जो 26 मार्च को अधौरा से शुरू हुई थी। करीब 52 किलोमीटर की यह पदयात्रा कैमूर में प्रस्तावित बाघ अभयारण्य के खिलाफ थी। इस जुटान में झारखंड, उत्तरप्रदेश समेत कई राज्यों के आदिवासी और जनसंगठन शामिल हुए।

पूरा मामला यह है कि कैमूर पठार पर एक बाघ अभयारण्य प्रस्तावित है। क्षेत्रफल के हिसाब से कैमूर पठार बिहार राज्य का सबसे बड़ा जंगली-पहाड़ी इलाका है। बिहार में कैमूर पठार के अर्न्तगत दो जिले आते हैं, कैमूर और रोहतास। जिसका कुल क्षेत्रफल 1800 वर्ग किलोमीटर है। यह आदिवासी बाहुल्य इलाका है। यहां खरवार, उरांव, चेरो, अगरिया, कोरवा आदिवासी समुदाय के लोग ज्यादा संख्या में निवास करते हैं। इसके अलावा यहां गैर परम्परागत वन निवासी (अन्य जाति के लोग) भी रहते हैं।
गौर तलब है कि कैमूर बाघ अभयारण्य भारत का 53वां और सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य बनने जा रहा है। इसका कुल क्षेत्रफल करीब 1342 वर्ग किलोमीटर प्रस्तावित है। इस क्रम में आदिवासियों को हटाया जाना शुरू कर दिया गया। आदिवासियों का स्पष्ट रूप से मानना है कि बाघ अभयारण्य की आड़ में सरकार आदिवासियों से उनकी जमीन छीन कर कैमूर पठार को पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है। भारत में आजादी के बाद से ही कभी बांध के नाम पर तो कभी वन्य जीव संरक्षण के नाम पर या कभी खनन के नाम पर आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया जाता रहा है।
(संपादन : अनिल, इनपुट सहयोग : आकांक्षा आजाद, रिंकू यादव)
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