जातिगत वर्चस्व बनाए रखने हेतु धर्मांधता की आग देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में फैल चुकी है। अब इसकी जद में लखनऊ विश्वविद्यालय भी आ गया है। विश्वविद्यालय के हिंदी विषय के प्रोफेसर रविकांत चंदन इसके शिकार हुए हैं। वे दलित वर्ग से आते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों द्वारा उन्हें घेरकर जान से मारने का प्रयास किया गया। वहीं इस मामले में लखनऊ पुलिस पर भी सवाल उठ रहा है, जिसने पीड़ित प्रो. रविकांत चंदन द्वारा किये गये शिकायत को एफआईआर के रूप में दर्ज नहीं किया, लेकिन उसने देर शाम उत्पीड़कों द्वारा की गयी शिकायत को प्राथमिकी के रूप में दर्ज कर लिया।
बताते चलें कि प्रो. रविकांत चंदन दलित-बहुजन विमर्श को लेकर मुखर रहे हैं। इस मामले में उन्होंने दूरभाष पर जानकारी दी कि दो दिनों पहले 9 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के संबंध में एक यूट्यूब चैनल पर बहस में भाग लेते हुए उन्होंने प्रसिद्ध इतिहासकार पट्टाभि सीतारमैया की किताब का उद्धरण देते हुए अपनी बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा कि उनके कथन को तोड़-मरोड़कर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। इसके बाद उनके कथन से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य भड़क गए और बीते 10 मई को उन्होंने घेरकर जान से मारने का प्रयास किया था। इस क्रम में वे जातिगत अपशब्दों का उपयोग कर रहे थे।
प्रो. चंदन ने बताया कि अपने साथ हुई इस घटना के बारे में उन्होंने स्थानीय हसनगंज थाने को लिखित सूचना दी। इसमें उन्होंने 12 लोगों को नामित किया। इनमें अमन दूबे, प्रणवकांत सिंह, अजय प्रताप सिंह, विंध्यवासिनी शुक्ला, अभिषेक पाठक, अमर वर्मा, आयुष शुक्ला, हिमांशु तिवारी, आकाश सिन्हा, उत्कर्ष सिंह, सिद्धार्थ चतुर्वेदी, और सिद्धार्थ शाही व अन्य शामिल हैं।

प्रो. चंदन के मुताबिक, 10 मई को जब वे अपनी शिकायत लेकर थाना पहुंचे तब स्थानीय अधिकारी ने उनकी बातें तो सुनी, लेकिन प्राथमिकी दर्ज नहीं की। इस संबंध में कहा गया कि मामला खत्म हो गया है। लेकिन यह सच नहीं था। देर शाम 6 बजकर 23 मिनट पर हसनगंज थाने की पुलिस ने प्रो. रविकांत चंदन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली। यह प्राथमिकी अमन दूबे द्वारा दर्ज करायी गयी है।
अपनी शिकायत में अमन दूबे ने लिखा– “मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि हिंदी विभाग के प्रोफेसर रविकांत चंदन द्वारा दिनांक 9/5/2022 को एक वीडियो में काशी विश्वनाथ तथा भारतीय संस्कृति के आधार साधु-संतों के उपर अभद्र व अमीदित [अमर्यादित] टिप्पणी की, जिससे विश्वविद्यालय के सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ने का प्रयास किया गया है। हिंदू छात्रों के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया। साथ ही उन्होंने छात्रों के विरोध करने पर बाहर से गुंडों को बुलवाकर मारपीट भी करने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार किया जा रहा है, जिससे विश्वविद्यालय व छात्रों की छवि धूमिल हो रही है। अत: आप महोदय से निवेदन है कि इसका संज्ञान लेकर सुसंगत धाराओं के अंतर्गत व आईटी एक्ट के अंतर्गत यथोचित कार्यवाही करने की कृपा करें। यथाशीघ्र एफआईआर दर्ज करने की कृपया करें।”
इस मामले में हसनगंज पुलिस ने फौरन ही भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए, 504, 505 (2) और आईटी एक्ट, 2008 की धारा 66 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर लिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर प्रो. चंदन की शिकायत पर हसनगंज पुलिस ने संज्ञान क्यों नहीं लिया? या फिर वह अपने आलाकमान के आदेश का इंतजार कर ही थी?
(संपादन : अनिल)
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