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अग्निपथ योजना : नौजवानों को इन सवालों का जवाब दे सरकार

अग्निवीर के दिमाग में एक चिंता हमेशा रहेगी कि अगर चार साल के दौरान उसमें कोई अस्थायी अपंगता आई और वह मेडिकल जांच पास नहीं कर पाया या आवेदन के ठीक पहले किसी कारणवश उसका अंग भंग हो गया तो उसके 15 साल के लिए सैनिक बनकर एक सैनिक तरह सारे अधिकार पाने और देश की सेवा करने के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। इन सब चिंताओं के बीच वह देश की सीमाओं की रक्षा कैसे करेगा? पढ़ें, अनुराग मोदी का यह तथ्यपरक विश्लेषण

भारतीय सेना में हर साल लगभग 50-60 हजार सैनिक सेवानिवृत होते है। वर्ष 2020 से ही सेना में भर्ती बंद है। रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अग्निपथ योजना के संबंध में 20 जून, 2022 को जारी अधिसूचना से साफ़ है कि अग्निवीर को पहले चार अग्निवीर की तरह चार साल बिताने होंगे। उसके बाद सबको सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा और उनके फिर से आवेदन करने पर उसमें से अधिकत्तम 25 फीसदी अग्निवीरों को सैनिक के रूप में 15 साल के लिए भर्ती की जाएगी। इसका मतलब है कि 2020 से सेना में भर्ती बंद होने के बाद 2026 के अंत या 2027 के प्रारंभ में यानी 7 साल बाद लगभग 12 हजार अग्निवीरों को नियमित सैनिक के पद पर भर्ती होने की संभावना है। जबकि इस अवधि तक लगभग 3 लाख नियमित सैनिक सेवानिवृत हो जाएंगे और ऐसा ही चला तो आनेवाले 15 सालों में नियमित सैनिकों की संख्या के मुकाबले अग्निवीरों की संख्यां ज्यादा होगी, जो काम तो सैनिक का करेंगे, मगर सरकार उन्हें सैनिक का दर्जा नहीं देगी। लेकिन हर अग्निवीर को एक सैनिक की तरह देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहना होगा, लेकिन सरकार उसे एक नियमित सैनिक की तरह मान्यता देकर उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा या सम्मान नहीं देगी। कुछ तय राशि के बदले सैनिक देश (राजा) के लिए अपना सब कुछ लुटा दे, यह एक मध्ययुगीन सोच है। इससे जहां एक तरफ सेना में भी अग्निवीर भर्ती के नाम बेरोजगार युवाओं के शोषण का दौर शुरू होगा, वहीं यह देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाला साबित होगा।

पिछले तीन दशकों में, जबसे आर्थिक सुधार का या सही कहें तो आर्थिक बिगाड़ का दौर शुरू हुआ है, तभी से सरकार विकास के नाम पर लाखों करोड़ रुपए पर्यावरण और मानव समाज के लिए विनाशकारी परियोजनाओं में लुटाती आ रही है और बजट का रोना रोकर स्थायी सरकारी नौकरियां धीरे-धीरे ख़त्म करती रही है। इस क्रम में पहले शिक्षकों, चिकित्सकों, सफाईकर्मियों आदि सरकारी कर्मचारियों को ठेके पर भर्ती किया जाने लगा। उनसे काम तो स्थायी कर्मचारी के कराए जाते हैं, लेकिन उन्हें पगार आदि सुविधा के लिए अस्थायी कर्मचारी माना जाता है। अब इसी नीति का प्रतिबिंब ही अग्निपथ योजना के नाम से सेना भर्ती में भी दिख रहा है।

सहसा विश्वास नहीं होता, जो सरकार इतने बड़े संसद भवन होने के बावजूद नया संसद भवन बनाने में हजारों करोड़ रुपए लगा दे और सेना के इतने हवाईजहाज प्रधानमंत्री की सेवा में उपलब्ध होने के बावजूद आठ-आठ हजार करोड़ की लागत वाले दो हवाईजहाज खरीद ले, वह बढ़ते पेंशन व वेतनादि व्यय के नाम पर देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले शूरवीरों को सैनिक का दर्जा देने को तैयार ना हो। सबसे कमाल की बात तो यह है, सेना के शौर्य और बलिदान को अपने राजनीतिक लाभ के लिए भुनाने वाली और राष्ट्रवाद का दम भरते नहीं थकने वाली पार्टी की सरकार ने बड़ी आसानी से यह सब कर दिया! 

अग्निपथ योजना में जो दो बातें प्रमुख तौर पर कही जा रही हैं। पहली बात यह कि इस योजना से सेना युवा सैनिको से भर जाएगी और दूसरी बात यह कि इससे सैनिकों की पेंशन आदि पर खर्च होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी। यह दोनों ही तर्क गलत और खतरनाक हैं। 

अग्निवीर की भारती के लिए जो नई अधिसूचना जारी की गई है, उसके बिंदु 2 (बी) (चार) एवं (पांच) में यह साफ़ है कि अग्निवीर को सेना की किसी भी ड्यूटी और किसी भी रेजिमेंट में भेजा सकता है। वहीं बिंदु 2 (सी) (एक) कहता है कि सभी अग्निवीर चार साल बाद ड्यूटी से निकाल दिए जाएंगे। बिंदु क्रमांक 2 (डी) (एक) के अनुसार, जो अग्निवीर एक सैनिक के रूप में 15 साल के लिए पोस्टिंग चाहते हैं, उन्हें नए सिरे से आवेदन देना होगा और नए सिरे से मेडिकल और शारीरिक जांच आदि में उत्तीर्ण होना होगा। चार साल के अग्निवीर के रूप में उनके प्रदर्शन के अंक भी इस दौरान देखे जाएंगे। इससे साफ़ है, अग्निवीर के दिमाग में एक चिंता हमेशा रहेगी कि अगर चार साल के दौरान उसमें कोई अस्थायी अपंगता आई और वह मेडिकल जांच पास नहीं कर पाया या आवेदन के ठीक पहले किसी कारणवश उसका अंग भंग हो गया तो उसके 15 साल के लिए सैनिक बनकर एक सैनिक तरह सारे अधिकार पाने और देश की सेवा करने के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। इन सब चिंताओं के बीच वह देश की सीमाओं की रक्षा कैसे करेगा?

लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तैनात एक भारतीय सैनिक (तस्वीर साभार : इंडियन आर्मी)

बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती। इन अग्निवीरों द्वारा ड्यूटी के दौरान एक सैनिक की तरह अपना सब कुछ न्यौछावर कर मौत को गले लगाने या स्थायी अपंगता होने पर भी इन्हें एक सैनिक की तरह मान्यता या पेंशन आदि राशि नहीं मिलेगी। इस बारे में अधिसूचना के बिंदु क्रमांक 15 से 17 तक में सारी बातें बताई गई हैं। मसलन, बिंदु क्रमांक 15 में बताया है कि उन्हें ड्यूटी के दौरान मृत्यु के बावजूद भी एक सैनिक की तरह पेंशन आदि कुछ नहीं मिलेगा। इसमें अग्निवीर की मृत्यु को एक्स, वाई और जेड श्रेणी में रखा गया है। इसमें से एक्स श्रेणी का मतलब स्वभाविक मौत और वाई श्रेणी ट्रेनिंग के दौरान किसी दुर्घटनावश मौत और जेड श्रेणी ड्यूटी पर युद्ध में दुश्मन के हाथों मारे जाने या शांति कार्य में ड्यूटी पर हिंसा होने के कारण मौत है। तीनों ही श्रेणियों में मात्र 48 लाख रुपए की बीमा राशि मिलेगी। वहीं वाई और जेड श्रेणियों में 44 लाख रुपए अतिरिक्त मुआवजा राशि दी जाएगी। बस और कुछ नहीं! अपंगता के मामले में 20 से 49 प्रतिशत अपंगता को 50 प्रतिशत अपंगता मानकर 15 लाख का मुआवजा मिलेगा। 50 प्रतिशत से 75 प्रतिशत अपंगता को 75 प्रतिशत अपंगता मानकर 25 लाख का मुआवजा मिलेगा, और 76 प्रतिशत से 100 प्रतिशत अपंगता को 100 प्रतिशत अपंगता मानकर 44 लाख का मुआवजा मिलेगा। उपरोक्त राशि के अलावा अग्निवीर या उसके परिवार को कोई पेंशन, उनके बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों को नौकरी में प्राथमिकता आदि कुछ नहीं मिलेगा।

मगर सरकार जिसे सैनिक का दर्जा देती है, उसके लिए यह सब मापदंड अलग है। उसे और उसके परिवार को अशक्त पेंशन, अशक्त ग्रेचुटी, अपंगता पेंशन वॉर इंजुरी पेंशन, परिवार के सदस्य को आश्रित पेंशन, सेना में नौकरी में वरीयता आदि लाभ दिये जाते हैं। इतना ही नहीं, सेवानिवृत होने के 10 साल के अंतराल में अगर सैनिक को कोई ऐसी शारीरिक अपंगता दिखाई दे या उसकी अपंगता में बढ़ोतरी हो, जो उसे सेना में सेवा के दौरान किसी कारण से आई चोट के कारण हो तो उसके मद्देनजर सैनिक की बढ़ी हुई पेंशन नई सिरे से तय की जाती है। इससे यह भी साबित होता है कि नियमित सैनिकों को सेवानिवृति के 10 साल तक कोई पुरानी चोट से अपंगता आ सकती है या अपंगता में बढ़ोतरी हो सकती है। और ऐसे समय में एक सैनिक को सरकार उचित सहायता देती है। अगर किसी अग्निवीर के साथ ऐसा हुआ तो वो क्या करेगा? कहां जाएगा? 

अब सवाल यह है कि सेना युवा कैसे होगी? अगर हम सेना भर्ती के 2019 के नोटिफिकेशन पर नजर डालें तो हमें समझ में आएगा कि सेना में भर्ती की उम्र सीमा पहले भी 17-1/2 से 21 वर्ष थी और अभी 2022 के नोटिफिकेशन में भी उम्र सीमा वही है (सिर्फ इस साल दो साल की छूट दी गई है)। अगर भर्ती की उम्र वही है तो फिर सेना युवा सैनिकों से कैसे भर जाएगी? इसका जवाब है, अग्निवीर को सिर्फ 6 माह की ट्रेनिंग दी जाएगी और 18 से साढ़े इक्कीस साल का युवा अग्निवीर सैनिक के नाम पर मोर्चे पर भेजा जाएगा। जहां तक एक स्थायी सैनिक का सवाल है, उस मामले में सेना युवा की बजाए वृद्ध होगी। पहले 17.5 से 21 साल के युवा को सेना में भर्ती होने के बाद 15 साल के लिए स्थायी सैनिक बनने का मौका मिलता था। यानी वह 32.5 से लेकर 36 साल तक एक सैनिक के रूप में काम करता। लेकिन, अब उसे पहले अग्निवीर बनना होगा और उसके बाद ही वह 21.5 से लेकर 25 साल का होने के बाद ही सैनिक के पद के लिए आवेदन देने के लायक होगा। मतलब अग्निवीर से निकला सैनिक लगभग 37 से लेकर 40 साल की उम्र तक एक सैनिक के रूप में काम करेगा। 

यह सही है कि युवा अग्निवीर में जोश तो होगा, मगर अनुभव और समझ की भारी कमी होगी। सीआरपी एफ के एक सैनिक ने मुझे कहा कि ट्रेनिंग के दौरान हम वहीं गोली चलाते हैं, जहां हमें कहा जाता है। अगर हम अपने मन से एक भी गोली चला दें, तो हमें कड़ी सजा मिलती है। हम हर काम आदेश पर करते हैं। इसलिए मोर्चे पर आने के बाद जगह और परिस्थिति की समझ बनने और अपने मन से फैसला लेने की हिम्मत और समझ आने में काफी समय लगता है। यूनिट में घुलने-मिलने में भी समय लगता है। यह अग्निवीर तो ऐसी रेजिमेंट व्यवस्था में भेजे जाएंगे, जो क्षेत्र के आधार पर बनी हैं और नाम, नमक और निशान की परंपरा में गुंथी हैं। इस रेजिमेंट व्यवस्था में एक युवा अग्निवीर, जिसका अस्तित्व एक अस्थायी सैनिक का है, वो कैसे सहज महसूस करेगा? 

इसलिए अग्निवीर का सवाल सिर्फ युवाओं के रोजगार से जुड़ा नहीं है। हम एक देश के रूप में देश के लिए सब कुछ न्यौच्छावर करनेवाले युवाओं के शोषण की मंजूरी कैसे दे सकते हैं? अपने आपको शोषित और भविष्य के प्रति असुरक्षित महसूस करने वाले युवा देश की रक्षा कैसे करेंगे? जरुरी है कि इस योजना को अविलंब रोका जाए और इस पर व्यापक बहस की जाय।

सनद रहे कि थल सेना का कथन है – कोई भी सैनिक या अफसर अपर्याप्त ट्रेनिंग के चलते युद्ध में घायल ना हो या अपनी जिन्दगी से हाथ ना धोए। यह भारतीय सेना के प्रशिक्षण का सार है। जबकि 6 माह के आधे-अधूरे रूप से प्रशिक्षित अग्निवीर को मोर्चे पर भेजकर सेना अपने इस उद्देश्य भटक जाएगी।

 (संपादन : नवल/अनिल)

(आलेख परिवर्द्धित : 26 जून, 2022 07:09 AM)


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लेखक के बारे में

अनुराग मोदी

समाजवादी जन परिषद् से सम्बद्ध अनुराग मोदी 27 वर्षों से आदिवासी ईलाके में काम करने वाला एक पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता हैं। 1989 में मुम्बई में सिविल इंजीनियर की नौकरी से त्याग पत्र देकर नर्मदा नदी पर बने पहले बड़े बाँध, बरगी बाँध के विस्थापितों के साथ काम किया। फिर बैतूल जिले के छोटे से गाँव पतौपुरा में आदिवासीयों के साथ श्रमिक आदिवासी संगठन शुरू किया। जनपक्षधर लेखन में सक्रिय।

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