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वर्ण धर्म का अग्निपथ

अग्निपथ योजना के अंतर्गत सेना में सबसे निचले पद (रंगरूट अथवा सिपाही) पर भर्ती की जाएगी। जाहिर है कि संपन्न वर्ग और द्विज जातियों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया, कायस्थ और खत्री) के लड़के अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर अग्निवीर नहीं बनेंगे, बता रहे हैं कांचा इलैया शेपर्ड

गत 17 जून, 2022 को देश के अनेक शहरों में युवाओं ने सैन्य बलों में भर्ती की नई योजना अग्निपथ के विरोध में प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन मुख्यतः रेलवे स्टेशनों के आसपास किये गए। अनेक प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई। विशेषकर बिहार में ट्रेनों के डिब्बे जला दिए गए और उपमुख्यमंत्री के घर पर भी हमला हुआ। यह हिंसा स्तब्ध कर देने वाली थी। 

सरकार ने इस योजना की घोषणा 14 जून को की थी। मुझे भी तब तक इस योजना के निहितार्थों का अंदाज़ा नहीं था जब तक कि मैंने नौजवानों के गुस्से से भभकते चेहरे और आक्रोशपूर्ण भाव-भंगिमाओं को नहीं देखा था।   

कुछ अंग्रेजी न्यूज़ चैनलों, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थक माने जाते हैं, में एंकर और भाजपा के प्रवक्ता एक सुर में प्रदर्शनकारियों को आपराधिक तत्व, विपक्षी दलों के एजेंट और सेना के लिए अनुपयुक्त बता रहे थे। जबकि तेलंगाना के सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन में पुलिस की गोली से मारा गया डी. राकेश 24 वर्ष का ओबीसी नौजवान था, जो सेना में सिपाही बनकर अपना जीवनयापन करना चाहता था। 

हिंसा की विचारधारा 

मैं यह देखकर चकित था कि मीडियाकर्मी और भाजपा नेता हमें यह विश्वास दिलाने का पूरा प्रयास कर रहे थे कि प्रदर्शनकारियों में आरएसएस का एक भी कार्यकर्ता नहीं था। आरएसएस का यह दावा रहा है कि शाखाओं के अपने विशाल नेटवर्क के ज़रिए वह देश के अधिकांश युवाओं पर प्रभाव और नियंत्रण रखता है। क्या प्रदर्शनकारियों में एक भी शाखा-प्रशिक्षित युवा नहीं था? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमें बार-बार बताते रहे हैं कि भारत की सबसे बड़ी ताकत है उसकी युवा आबादी। देश के 40 प्रतिशत रहवासियों की आयु 35 वर्ष से कम है। परन्तु इन युवाओं के गुस्से के विस्फोट से यह सिद्ध हो गया है अगर सरकार बेरोज़गारी को बढ़ावा देगी तो वे अकल्पनीय हिंसा करने में सक्षम हैं। 

जब वे सत्ता में नहीं थे तब आरएसएस/भाजपा कभी अहिंसा की बात नहीं करते थे। अहिंसा उनके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडा का हिस्सा नहीं थी। गांधीवादी सेवादल और आंबेडकर के समता दल के विपरीत आरएसएस की शाखाओं में प्रशिक्षण लेने वाले युवकों और बच्चों को कभी यह नहीं सिखाया जाता है कि उन्हें अहिंसा के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। वैचारिक दृष्टि से आरएसएस और कुछ कम्युनिस्ट दल भले ही विपरीत ध्रुव हों, परंतु दोनों ही यह मानते हैं की उनके लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हिंसा एक आवश्यक उपकरण है।  

अब आरएसएस/भाजपा के लोग यह कह रहे हैं कि उनके प्रशिक्षित युवाओं को गांधीवादी या आंबेडकरवादी बनना चाहिए, सावरकरवादी नहीं। यह सचमुच एक महान आश्चर्य ही है। 

अग्निवीर और शिक्षा 

अग्निपथ योजना का ध्यान से अध्ययन करने पर यह साफ़ हो जाता है कि वह कतई राष्ट्रहित में नहीं है। यह योजना वर्ण धर्म का आधुनिक स्वरुप है। इसका लक्ष्य शूद्र/ओबीसी/एसटी/एससी विद्यार्थियों को साढ़े सत्रह साल की अल्प आयु में स्कूल से बाहर कर देना है। ग्रामीण कृषि और शिल्पकार समुदायों के अधिकांश बच्चे इस उम्र तक मुश्किल से दसवीं कक्षा पास कर पाते हैं। यह योजना उन्हें स्कूल ड्रॉपआउट बना देगी। चार साल तक अग्निवीर के रूप में काम करने के बाद वे बेरोजगार हो जाएंगे। वे फिर से स्कूल में दाखिला लेने से रहे। क्या यह योजना नयी शिक्षा नीति का भाग है? चार साल तक सेना में काम करने के बाद अग्निवीर अपने गांव लौटकर आखिर करेंगे क्या? 

अग्निपथ योजना के अंतर्गत सेना में सबसे निचले पद (रंगरूट अथवा सिपाही) पर भर्ती की जाएगी। जाहिर है कि संपन्न वर्ग और द्विज जातियों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया, कायस्थ और खत्री) के लड़के अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर अग्निवीर नहीं बनेंगे। वे एनडीए में प्रवेश लेकर कमीशंड अधिकारी बनने का प्रयास करेंगे। एससी, एसटी और ओबीसी में भी केवल गरीब वर्ग के लोग अपने बच्चों को इस योजना के अंतर्गत सेना में भर्ती होने देंगे। 

दरअसल, अग्निपथ योजना संघ की शाखाओं का ही एक स्वरुप है। सरकार श्रमजीवी वर्गों/जातियों के साक्षर युवकों को चार साल में नाममात्र का वेतन देकर योद्धा बना देगी। उसके बाद, वे अपनी शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं करेंगे। वे कहा जाएंगे? क्या करेंगे? 

हाल में आयोजित एक प्रेस वार्ता में अग्निपथ योजना के फायदे गिनाते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और तीनों सेनाओं के प्रमुख

सरकार के दिमाग में उनके लिए तीन प्रकार की नौकरियां हैं। पहली, अडाणी और अंबानी मार्का निजी उद्योग समूह उन्हें मामूली तनख्वाह पर सुरक्षाकर्मी के रूप में भर्ती कर लेंगे। शायद तब उन्हें ‘औद्योगिक अग्निवीर’ कहा जाएगा। आनंद महिंद्रा ने तो अभी से यह संकेत दिया है की वे अग्निवीरों को इस श्रेणी के काम देंगे। बढ़ते निजीकरण के इस दौर में निजी कंपनियों को श्रमजीवी वर्ग को काबू में रखने के लिए निजी अग्निवीर चाहिए होंगे। आरएसएस उन्हें अपने अतिवादी काडर में शामिल कर लेगा। वे शायद ‘भारतीय अग्निवीर’ कहलाएंगें। तीसरे, राष्ट्रवादी धनिक सेलिब्रेटिज उन्हें अंगरक्षक के रूप में इस्तेमाल करेंगे। तब वे ‘रक्षण अग्निवीर’ कहलाएंगे।

भारतीय सैन्य बलों के उच्च अधिकारी, जिनमें तीनों सेनाओं के मुखिया शामिल हैं, आखिर इस योजना, जिसके भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए गंभीर निहितार्थ हैं, को लागू करने पर सहमत कैसे हो गए? अगर आप साल-दर-साल हजारों नौजवानों को सैन्य प्रशिक्षण देते जाएंगे और उनके लिए रोज़गार की व्यवस्था नहीं करेंगे, तो इससे देश में हिंसा कैसे घटेगी? अभी तक जो व्यवस्था लागू थी, उसमें सैनिकों को जीवन भर के लिए सेना का हिस्सा बनाया जाता था। लगभग 15 साल के कार्यकाल में उनकी शादी हो जाती थी और बाल-बच्चे भी। उनके पास स्नातक या उससे उच्च शैक्षणिक योग्यता होती थी और एक लंबा सैन्य अनुभव भी। उन्हें पेंशन भी मिलती थी और समाज में उनका सम्मान भी होता था। उन्हें आसानी से कोई दूसरा काम मिल जाता था। इसके विपरीत, स्कूल ड्रापआउट अग्निवीरों के पास न तो काम होगा न पेंशन। वे शायद विवाहित भी नहीं हों सकेंगे। क्या उन्हें समाज सम्मान की दृष्टि से देखेगा? 

आज हमारे देश में चौकीदार का काम करने वाले किस जाति के होते हैं? क्या आनंद महिंद्रा अग्निवीरों को इसी तरह का काम नहीं देना चाहते? भाजपाई मंत्री किशन रेड्डी का सुझाव है कि वे नाई या धोबी के रूप में काम कर सकते हैं। आज ये काम किन जातियों के लोग कर रहे हैं? क्या किशन रेड्डी यह पसंद करेंगे कि उनका पुत्र अग्निवीर बने और फिर ऐसा ही कुछ काम करे। इस परियोजना के ज़रिये वर्ण धर्म की विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है।  

ध्वस्त महत्वाकांक्षाएं 

यह परियोजना समाज में हिंसा बढ़ाएगी। ज्ञानार्जन करने की आयु में युवाओं को स्कूल से बाहर खींच कर उन्हें पहले योद्धा और फिर बेरोजगार बनाया जाएगा। आरएसएस अपने अल्पसंख्यक-विरोधी एजेंडा के तहत युवकों को लाठी चलाने का प्रशिक्षण देता था। अब, जब कि वह सत्ता में है, वह इससे आगे जाना चाहता है। अल्पसंख्यकों से निपटने का काम तो अब पुलिस और बुलडोज़र कर रहे हैं। आप पहले युवकों को हिंसा करने का प्रशिक्षण देते हैं और फिर उनकी महत्वाकांक्षाओं को ध्वस्त कर देते हैं। ऐसे में आपको उनकी हिंसक प्रतिक्रिया पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

जिन युवकों को शाखाओं और चुनावी सभाओं में सब्जबाग दिखाए गए थे, जब उन्हें यह पता चलता है कि अग्निवीर जैसी योजनायें ला कर उनकी महत्वाकांक्षाओं को ध्वस्त किया जा रहा है तो वे अपने आकाओं के खिलाफ ही खड़े हो जाते हैं। हम आज यही देख रहे हैं। वैश्वीकृत सोशल मीडिया और निजीकृत राज्य नयी हिंसक ताकतों को जन्म देंगे। अग्निपथ से इस प्रक्रिया की शुरुआत भर हुई है।  

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कांचा आइलैय्या शेपर्ड

राजनैतिक सिद्धांतकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता कांचा आइलैया शेपर्ड, हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के सामाजिक बहिष्कार एवं स्वीकार्य नीतियां अध्ययन केंद्र के निदेशक रहे हैं। वे ‘व्हाई आई एम नॉट ए हिन्दू’, ‘बफैलो नेशनलिज्म’ और ‘पोस्ट-हिन्दू इंडिया’ शीर्षक पुस्तकों के लेखक हैं।

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