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छत्तीसगढ़ : नक्सल हमले के 105 आरोपी आदिवासी दोष मुक्त, पांच साल बाद मिली रिहाई

एक सवाल तो यह शेष है कि जिन 105 आदिवासियों को नक्सल होने के आरोप में पांच साल तक जेल में रखा गया और जिसके कारण उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ी व उनके परिजनों को परेशानियां हुईं, सरकार को क्या उन्हें समुचित मुआवजा नहीं देना चाहिए? तामेश्वर सिन्हा की खबर

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के बुर्कापाल में हुए नक्सल हमले के आरोपी बनाए गए 105 आदिवासी दोष मुक्त घोषित कर दिए गए हैं। यह फैसला गत 16 जुलाई को एनआइए के विशेष न्यायाधीश दीपक कुमार देशलहरे ने सुनाया। 

बताते चलें कि 25 अप्रैल, 2017 में छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग अंतर्गत सुकमा जिले के बुर्कापाल में नक्सली हमले के कारण 25 जवान शहीद हुए थे। इस मामले में पुलिस ने 105 ग्रामीणों को गिरफ्तार कर जेल में बंद किया था। सभी ग्रामीणों को पांच साल बाद रिहा कर दिया गया है। 

हालांकि इस पूरे मामले में गांव वालों पर घायल नक्सलियों के इलाज का भी आरोप लगा था। जेल से रिहा हुए निर्दोष आदिवासी ग्रामीणों का कहना है कि वह सुकमा, बीजापुर जिले के अंदरूनी इलाकों में खेती किसानी करके अपना जीवन यापन करते हैं। साथ ही उनका नक्सलियों से किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद भी पुलिस के जवानों ने नक्सल सहयोगी के नाम पर उन्हें जेलों में बंद कर दिया था। साथ ही ग्रामीणों ने बताया कि किसी भी निर्दोष को जेलों में बंद नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे निर्दोष के अलावा पूरा परिवार बिखर जाता है। उन्हें यह भी पता नहीं है कि अभी उनके घर की स्थिति क्या है?

रिहा होने के बाद घर जाने की तैयारी में आदिवासी (तस्वीर : तामेश्वर सिन्हा)

आदिवासियों का कहना है कि वे आगे भी खेती किसानी करके अपना जीवनयापन करेंगे। सभी निर्दोष ग्रामीण बस में बैठकर अपने घर की ओर चले गए। रिहा हुए ग्रामीणों ने कोर्ट और सरकार का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि रिहाई के बाद परिवार से मिलना है। इस खुशी मे सभी निर्दोष ग्रामीणों के चेहरे खिले दिखे।

बहरहाल, इस पूरे मामले में एक सवाल तो यह शेष है कि जिन 105 आदिवासियों को नक्सल होने के आरोप में पांच साल तक जेल में रखा गया और जिसके कारण उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ी व उनके परिजनों को परेशानियां हुईं, सरकार को क्या उन्हें समुचित मुआवजा नहीं देना चाहिए?

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

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