h n

दलित-मुक्ति में हिंदी नवजागरण काल की पत्रकारिता और भूमिका

हिंदी नवजागरण में, चाहे वह उन्नसीवीं शताब्दी का हो या बीसवीं शताब्दी का, दलित कहीं केंद्र में नहीं है। इससे यह बात साफ हो जाती है कि शूद्र और अछूत को इस नवजागरण के प्रवर्त्तक हिंदू समाज का अंग नहीं मानते थे। वे अपने रचनाकर्म में हिंदुत्व और हिंदू धर्मशास्त्रों पर जिस तरह मुग्ध नजर आते हैं, उससे दलित-शूद्रों का जीवन उनके लिये चिंतनीय हो भी कैसे सकता था? पढ़ें, कंवल भारती के इस विस्तृत आलेख का पहला भाग

वर्ष 1914 में जब पटना के हीरा डोम की भोजपुरी कविता ‘अछूत की शिकायत’ को पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ में छापा, तो उनका क्या मकसद रहा होगा? यह प्रश्न मेरे लिये बहुत विचारणीय है। विचारणीय कई तरह से है। एक, इसलिए कि उस कालखंड में ‘सरस्वती’ का पाठक शायद ही दलित वर्ग में कोई हो। तब, ‘सरस्वती’ के द्विज पाठक वर्ग पर इस कविता का क्या प्रभाव पड़ा होगा? दो, क्या यह गांधीवाद का प्रभाव था? ऐसा इसलिये नहीं कहा जा सकता कि गांधी जी जी के ‘हरिजनोद्धार’ को 15 साल बाद पैदा होना था। गांधीवाद (दलित संदर्भ में) 1932 में अस्तित्व में आया था, जब डॉ. आंबेडकर के साथ ‘पूना-पैक्ट’ हुआ था। तीन, क्या इसके पीछे कोई सामाजिक दबाव था? यह हो सकता है। उस कालखंड में इसके कारण भी मौजूद थे। वे कारण क्या थे?

पूरा आर्टिकल यहां पढें : दलित-मुक्ति में हिंदी नवजागरण काल की पत्रकारिता और भूमिका

लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

संबंधित आलेख

फूलन देवी की आत्मकथा : यातना की ऐसी दास्तान कि रूह कांप जाए
फूलन जाती की सत्ता, मायके के परिवार की सत्ता, पति की सत्ता, गांव की सत्ता, डाकुओं की सत्ता और राजसत्ता सबसे टकराई। सबका सामना...
बहुजनों के वास्तविक गुरु कौन?
अगर भारत में बहुजनों को ज्ञान देने की किसी ने कोशिश की तो वह ग़ैर-ब्राह्मणवादी परंपरा रही है। बुद्ध मत, इस्लाम, अंग्रेजों और ईसाई...
ग्राम्शी और आंबेडकर की फासीवाद विरोधी संघर्ष में भूमिका
डॉ. बी.आर. आंबेडकर एक विरले भारतीय जैविक बुद्धिजीवी थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादी वर्चस्व को व्यवस्थित और संरचनात्मक रूप से चुनौती दी। उन्होंने हाशिए के लोगों...
मध्य प्रदेश : विकास से कोसों दूर हैं सागर जिले के तिली गांव के दक्खिन टोले के दलित-आदिवासी
बस्ती की एक झोपड़ी में अनिता रहती हैं। वह आदिवासी समुदाय की हैं। उन्हें कई दिनों से बुखार है। वह कहतीं हैं कि “मेरी...
विस्तार से जानें चंद्रू समिति की अनुशंसाएं, जो पूरे भारत के लिए हैं उपयोगी
गत 18 जून, 2024 को तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित जस्टिस चंद्रू समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को सौंप दी। इस समिति ने...