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तेजस्वी यादव के लिए संभावनाओं से अधिक चुनौतियां

तेजस्‍वी यादव और नीतीश कुमार की नयी पारी अविश्‍वास की बुनियाद पर शुरू हुई है। यह मजबूरियों और परिस्थितियों का गठबंधन है। यह सत्‍ता के लिए समझौता है, कोई स्‍थायी बंदोबस्‍त नहीं है। नीतीश कुमार भाजपा के साथ अपमान की पराकाष्‍ठा झेलने के बाद राजद के साथ आये हैं। लेकिन उनकी अंतरात्‍मा का कोई भरोसा नहीं है कि कब जाग जाय। पढ़ें, वीरेंद्र यादव का त्वरित विश्लेषण

बिहार में सरकार के नये स्‍वरूप के साथ नीतीश कुमार‍ फिर सत्‍ता में लौट आए हैं। गत 10 अगस्‍त, 2022 को आठवीं बार उन्होंने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। तीन बार उन्‍होंने राजद के समर्थन से बनी सरकार के रूप में शपथ ले चुके हैं और अब दूसरी बार राजद के साथ सरकार में लौटे हैं। इससे पहले फरवरी, 2015 में उन्‍होंने राजद के समर्थन से सरकार का गठन किया था, लेकिन राजद सरकार में शामिल नहीं था। नंवबर 2015 में नीतीश कुमार राजद के साथ चुनाव लड़कर साझा सरकार का नेतृत्‍व कर रहे थे।

तेजस्‍वी यादव को साथ लेकर सत्‍ता में लौटे नीतीश कुमार के लिए करने के लिए कुछ नया नहीं है। सरकार की जारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करना ही उनकी चुनौती है। बेहतर और भरोसेमंद कानून व्‍यवस्‍था हर सरकार की जिम्‍मेवारी होती है। दरअसल नीतीश के साथ दूसरी बार सत्‍ता में लौटे तेजस्‍वी यादव के लिए बहुत कुछ करने की संभावना है। उनसे लोगों की अपेक्षाएं भी हैं और उन्हें पूरा करना ही उनकी चुनौती है।

2020 के विधान सभा चुनाव में राजद ने एक घोषणा पत्र जारी किया था। इसमें कई वादे किये गये थे। लोगों को लगता है कि सरकार में आये तो तेजस्‍वी यादव उन घोषणाओं पर अमल करेंगे। लेकिन चुनाव घोषणा और सरकार की योजनाओं में भारी फर्क होता है। चुनावी घोषणा मतदाताओं को भ्रमित करने की राजनीतिक प्रक्रिया है, जबकि सरकार में बैठकर कल्‍याणकारी योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाना और उसके असर का आकलन राजनीतिक यथार्थ है। इसलिए नेता प्रतिपक्ष के रूप में तेजस्‍वी यादव के तेवर और उपमुख्‍यमंत्री के रूप में तेजस्‍वी यादव की भूमिका को भेद साफ-साफ दिखायी देगा।

दरअसल तेजस्‍वी यादव की संभावना और चुनौती की बात करें तो दोनों ही मोर्चों पर यात्रा की लंबी राह है। संभावना अगर बेहतरी के लिए अवसर उपलब्‍ध करा रहे हैं तो चुनौती के रूप में संसाधनों का अभाव भी बरकरार है। तेजस्‍वी यादव को एक साथ कई मोर्चों पर का काम करना होगा। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में काम करना होगा। यदि नीतीश कुमार फिर से राजद को नहीं छोड़ते हैं तो 2024 का लोकसभा और 2025 के विधान सभा चुनाव सबसे बड़ा अवसर है, जब तेजस्‍वी यादव को अपने काम और व्‍यक्तित्‍व का असर दिखाना होगा। इतना तय होगा गया है कि सरकार के मुखिया नीतीश कुमार हैं, लेकिन सरकार की उपलब्धियों या विफलता अब तेजस्‍वी के खाते में जाएंगी। नीतीश कुमार आठवीं पाली में सिर्फ सलाहकार की भूमिका में हैं, यह नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि राजनीतिक स्‍तर पर निणार्यक भूमिका में भी नहीं रहेंगे।

गत 11 अगस्त, 2022 को पटना में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव

तेजस्‍वी यादव की सबसे बड़ी चुनौती है, काम के आधार पर अलग दिखने की। बिजली और सड़क के क्षेत्र में बिहार में अतिरिक्‍त काम करने की आवश्‍यकता नहीं है। केंद्र और राज्‍य सरकार की अलग-अलग योजनाएं पहले से संचालित हो रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती है युवाओं को रोजगार देने की। इसका कोई रोडमैप तेजस्‍वी यादव के पास नहीं है और जिस तरह से रोजगार के अवसर नीतीश गढ़ रहे हैं, उससे अलग कुछ भी नहीं किया जा सकता है। हर काम को ठेके पर दिया जा रहा है, सरकारी विभागों में संविदा के आधार पर नियोजन किया जा रहा है। उस स्थिति में सरकारी रोजगार की गारंटी कौन देगा। अलग-अलग समय पर विरोध करने वाले जब नीतीश कुमार के साथ आये तो उनकी ही नीतियों के अनुगामी बन गये। जीतनराम मांझी को नीतीश कुमार ने मुख्‍यमंत्री बनवाया था। मांझी बागी होने के बाद नीतीश कुमार की खूब आलोचना करते थे। लेकिन जब राजनीतिक अस्तित्‍व पर संकट आया तो फिर शरणागत हो गये।

तेजस्‍वी यादव और नीतीश कुमार के बीच कभी कोई नीतिगत मतभेद नहीं रहा है। इन दोनों की लड़ाई कुर्सीजनित थी। अब दोनों कुर्सी पर हैं, इसलिए लड़ाई के मुद्दे समाप्‍त हो गये। तेजस्‍वी यादव को प्रशासनिक स्‍तर पर काम करने के लिए कुछ नहीं है। जिन विभागों की जिम्‍मेवारी मिलेगी, उसमें बेहतर काम करना होगा। भ्रष्‍टाचार तंत्र का हिस्‍सा हो गया है। इसलिए उसे समाप्‍त करने की बात बेमानी होगी। न्‍यूनतम भ्रष्‍टाचार में अधिकतम काम हो, यह सु‍निश्चित करना होगा। नयी सरकार में भी सिस्‍टम पर नीतीश कुमार की पकड़ ही बनी रहेगी। अपने विभाग से आगे किसी भी मंत्री को सोचने की स्‍वायतता न पहले थी और न अब होगी। 2015 और 2022 में मूलभूत अंतर है कि पहली बारी में तेजस्‍वी यादव एकदम अनुभवहीन थे और नयी पारी में 7 वर्षों के संसदीय अनुभव के साथ सत्‍ता में लौटे हैं। उपमुख्‍यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के रूप में संसदीय प्रक्रिया, प्रशासनिक लूट और सहयोगी विधायकों के साथ सौदेबाजी का अनुभव देख चुके हैं। इससे उलझने या निपटने का अनुभव भी हो गया है।

इसलिए नयी पारी में चुनौतियों से निपटना आसान है। पहली पारी में तेजस्‍वी के सामने कोई चुनौती नहीं थी। सरकार नीतीश कुमार की थी और तेजस्‍वी यादव के साथ उनकी कोई प्रतिस्‍पर्धा नहीं थी। हर काम के लिए नीतीश कुमार जिम्‍मेवार थे। समर्थकों को भी तेजस्‍वी यादव से कोई अपेक्षा नहीं थी। लेकिन नयी पारी में तेजस्‍वी यादव पर बेहतर प्रदर्शन के साथ ही सामाजिक और राजनीतिक जिम्‍मेवारी ज्‍यादा आ गयी है। इसमें सबसे बड़ी जिम्‍मेवारी है आधार वोटों का विस्‍तार। इसमें कोई शक नहीं है कि यादव और मुसलमान तेजस्‍वी के साथ एकजुट हैं। लेकिन तीसरी जाति को अपने साथ जोड़ना तेजस्‍वी के लिए चुनौती है। सवर्ण जातियों का वोट राजद या जदयू को मिलने से रहा। महागठबंधन के किसी भी दल को सवर्णों का वोट नहीं मिलने वाला है। जोड़ने की कवायद भी की जाएगी। तेजस्‍वी यादव ने इसी परिप्रेक्ष्‍य में ‘ए टू जेड’ पार्टी का नारा गढ़ा था। यह नारा भी निरर्थक रहा। तेजस्‍वी यादव और नीतीश कुमार के मिलने से आधार वोटों में बिखराव रुकेगा, यह निर्विवाद है। लेकिन भाजपा इस वोट में सेंधमारी का कोई अवसर नहीं छोड़ेगी। अब दोनों की जिम्‍मेवारी है कि वोटों को एकजुट रखा जाये।

इसमें बड़ी जिम्‍मेवारी तेजस्‍वी यादव की है, क्‍योंकि नीतीश कुमार राजनीति की अंतिम पारी खेल रहे हैं और तेजस्‍वी यादव की शुरुआत हो रही है। नीतीश कुमार की पारी समाप्‍त होने के बाद उनका आधार वोट तेजस्‍वी के साथ जुड़ा रहेगा, इस बात की गारंटी नीतीश कुमार भी नहीं दे सकते हैं। नीतीश कुमार भी कब तक साथ हैं, इसका कोई भरोसा नहीं है।

दरअसल तेजस्‍वी यादव और नीतीश कुमार की नयी पारी अविश्‍वास की बुनियाद पर शुरू हुई है। यह मजबूरियों और परिस्थितियों का गठबंधन है। यह सत्‍ता के लिए समझौता है, कोई स्‍थायी बंदोबस्‍त नहीं है। नीतीश कुमार भाजपा के साथ अपमान की पराकाष्‍ठा झेलने के बाद राजद के साथ आये हैं। लेकिन उनकी अंतरात्‍मा का कोई भरोसा नहीं है कि कब जाग जाय। तेजस्‍वी यादव को इन परिस्थितियों के लिए भी तैयार रहना होगा। सत्‍ता के साथ उन्‍हें संगठन की मजबूती पर भी ध्‍यान देना होगा। इसके लिए उन्हें कार्यकर्ताओं की अपेक्षा का भी सम्‍मान करना होगा। पिछले छह वर्षों से विभिन्‍न आयोगों और बोर्डों में खाली पड़े राजनीतिक पदों को भरना होगा। उन्‍हें आधार वोटों की सामाजिक और राजनीतिक संभावनाओं को पहचानना होगा। उनकी संवेदनाओं को समझना होगा। तेजस्‍वी यादव को सत्‍ता से ज्‍यादा संगठन की चुनौती को झेलना पड़ेगा।

कुल मिलाकर नये दौर के तेजस्‍वी यादव को नयी चुनौतियों को समझना होगा। इसके लिए उन्‍हें अपने कार्यालयीन कल्‍चर को बदलना होगा, सामाजिक व्‍यवहार को बदलना होगा। तेजस्‍वी को सबके लिए सुलभ और सहज बनना होगा। सत्‍ता की धमक उनकी सामाजिक जमीन को न खिसका दे, इसका भी उन्‍हें ध्‍यान रखना होगा। उनकी टीम में शामिल लोगों को भी सामाजिक वास्‍तविकता को ईमानदारी से समझना और स्‍वीकारना होगा।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

वीरेंद्र यादव

फारवर्ड प्रेस, हिंदुस्‍तान, प्रभात खबर समेत कई दैनिक पत्रों में जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव इन दिनों अपना एक साप्ताहिक अखबार 'वीरेंद्र यादव न्यूज़' प्रकाशित करते हैं, जो पटना के राजनीतिक गलियारों में खासा चर्चित है

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