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प्रो. विलक्षण रविदास पर बिहार पुलिस ने लगाया नक्सली होने का आरोप, पूर्व सांसद अली अनवर सहित अनेक बुद्धिजीवियों ने किया विरोध

डॉ. विलक्षण रविदास की पहचान एक प्रखर दलित-बहुजन विचारक के रूप में रही है। हाल के दिनों में वे जातिगत जनगणना की मांग को लेकर सक्रिय रहे हैं। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि क्या उनकी इसी सक्रियता की वजह से उनके खिलाफ कोई साजिश रची जा रही है या फिर पुलिस के दावों में कोई सच्चाई भी है?

बिहार के प्रखर दलित-बहुजन विचारक डॉ. विलक्षण रविदास पर इन दिनों बिहार पुलिस की निगाहें टेढ़ी हैं। दरअसल, बीते 4 अगस्त, 2022 को लखीसराय के पुलिस अधीक्षक पंकज कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस के जरिए डॉ. रविदास पर गंभीर आरोप लगाए। पंकज कुमार ने कहा था कि बीते 17 जून, 2022 को लखीसराय में अग्निपथ योजना के विरूद्ध हिंसक प्रदर्शन के लिए युवाओं को डॉ. रविदास ने शह दी थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि युवाओं को गाेलबंद करने के लिए डॉ. रविदास ने अपने मोबाइल फोन का उपयोग किया। इस पूरे मामले में पुलिस कप्तान का आधार मनश्याम दास नामक एक व्यक्ति का बयान है, जिसे नक्सली के संदेह में पुलिस ने 4 अगस्त, 2022 को गिरफ्तार किया। अब इस पूरे मामले में पुलिस ने डॉ. विलक्षण रविदास पर दबिश बढ़ा दी है। वहीं उनके पक्ष में बिहार के अनेक दलित-बहुजन बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता खड़े हो गए हैं। इनमें पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर भी शामिल हैं। उनके मुताबिक, यह दलित-बहुजनों की एक मुखर अभिव्यक्ति को चुप कराने की साजिश है।

इस पूरे मामले में पुलिस कप्तान के बयान को चुनौती देते हुए डॉ. विलक्षण रविदास ने गत 7 अगस्त को बिहार के पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा है और उनसे उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

बताते चलें कि तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं तथा वर्ष 2014 से विश्वविद्यालय आंबेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। इसके अलावा डॉ. रविदास बिहार में दलित-बहुजनों के सवाल पर अनेक गैर-राजनीतिक आयोजनों में शामिल होते रहे हैं और उनकी पहचान एक प्रखर वक्ता के रूप में रही है। हाल के दिनों में वे जातिगत जनगणना की मांग को लेकर सक्रिय रहे हैं। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि क्या उनकी इसी सक्रियता की वजह से उनके खिलाफ कोई साजिश रची जा रही है या फिर पुलिस के दावों में कोई सच्चाई भी है? वजह यह कि इसके पहले भी वर्ष 2016 में पुलिस ने उन्हें नक्सली होने की बात कही थी। दिलचस्प यह भी कि तब भी पुलिस के पास उसी मनश्याम दास का बयान था। हालांकि तब पूरा मामला विश्वविद्यालय की जमीन पर एक भू-माफिया द्वारा कब्जा का था। डीजीपी को लिखे अपने पत्र में डॉ. रविदास ने इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “7 फरवरी, 2016 को तातारपुर थाना कांड संख्या-19/16, भागलपुर में इसी नक्सली मनश्याम दास ने विश्वविद्यालय के भूमि माफिया और पुलिस प्रशासन से मिलकर मेरे खिलाफ नक्सली होने का बयान दिया था, जो जांचोपरांत बिल्कुल झूठ और बेबुनियाद सिद्ध हुए थे।”

डॉ. रविदास ने पूछा सवाल

डॉ. रविदास ने अपने पत्र में कहा है कि लखीसराय जिला के एसपी पंकज कुमार ने केवल मनश्याम दास के बयान के आधार पर बिना उनका पक्ष जाने या फिर मामले की जांच के ही अपराधी करार दे दिया। जबकि 17 जून, 2022 को हुए हिंसा के बारे में डॉ. रविदास ने कहा है कि हिंसक प्रदर्शन, आगजनी व तोड़फोड़ के विरोध उन्होंने फेसबुक और व्हाट्सअप ग्रुपों में संदेश के जरिए युवाओं से शांतिपूर्वक और संयमता के साथ आंदोलन करने की अपील की थी। 

डॉ. विलक्षण रविदास

जबकि डॉ. विलक्षण रविदास द्वारा 16 जून, 2022 को ही फेसबुक पोस्ट के जरिए छात्रों-युवाओं से शांति संबंधी की गयी अपील का अवलोकन किया जा सकता है। इसमें लिखा है– “बिहार सहित कई राज्यों में मोदी सरकार की सेना नियुक्ति की नई स्कीम ‘अग्निपथ’ और ‘अग्निवीर’ के खिलाफ में हजारों छात्र-युवा सड़कों पर प्रदर्शन एवं हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। सेना में भर्ती होने के उनके सपनों और मेहनत पर मोदी सरकार ने पानी फेर दिया है। मोदी जी द्वारा हर वर्ष दो करोड़ नौकरियां देने के अपने वायदे से पीछे हटना और गत 8 वर्षों में केवल 10 लाख संविदा नौकरी का ऐलान करना सरासर बेईमानी, झूठ और युवाओं को धोखा देना है। उस पर भी तुर्रा यह है कि केवल चार वर्ष की सेवा के बाद वे रिटायर कर दिए जाएंगे। उसके बाद युवाओं के जीवन, रोजगार और भविष्य सभी अनिश्चित हो जाएंगे। इसलिए बेरोज़गार युवाओं में इस प्रकार का असंतोष और गुस्सा फैलाना स्वाभाविक है। किन्तु वे अपने गुस्से और असंतोष को लोकतांत्रिक एवं शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करने में लगाएं। छात्र युवाओं को हिंसक संघर्षों से बचने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए। दरअसल इस नियुक्ति योजना का उद्देश्य ही है कि आरएसएस और भाजपा से जुड़े हुए युवाओं को सेना में भर्ती करना और 4 साल के बाद सेवानिवृत्त कर अपने उद्योगपति मित्रों की सेवाओं में लगाना तथा सरकारी पैसे से सैनिक प्रशिक्षण देकर ब्राह्मणवादी हिंदू राष्ट्र निर्माण में उन युवाओं का योगदान लेना।” 

समर्थन में उतरे अली अनवर व अन्य सामाजिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी

बहरहाल, डॉ. विलक्षण रविदास के समर्थन में पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर ने लखीसराय जिला के पुलिस प्रशासन पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि “डॉ. रविदास आंबेडकरवादी विचारक हैं और पूरे इलाके में उनकी इसी रूप में प्रतिष्ठा है। उनके बारे में यह कहना कि उन्होंने किसी को हिंसा के लिए उकसाया, निहायत ही तथ्यहीन है। वे कई कार्यक्रमों में मेरे साथ सह वक्ता रहे हैं और उनके विचारों के केंद्र में दलित-बहुजन-पसमांदा के हक और हुकूक के सवाल रहते हैं।”

सामाजिक न्याय मंच, बिहार के संयोजक रिंकू यादव का कहना है कि “राज्य सत्ता दलित-बहुजनों की मुखर होती आवाज को दबा देना चाहती है और इसके लिए वह अब साजिश करने लगी है। यह राज्य सत्ता का निंदनीय प्रयास है।”

वहीं तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय के ही प्रो. योगेंद्र कहते हैं कि “डॉ. विलक्षण रविदास के बारे में यह बिल्कुल फर्जी बात कही जा रही है। न तो उनका कभी स्वभाव ऐसा रहा है और ना ही प्रवृत्ति। ऐसे भी पुलिस के मुताबिक मामला लखीसराय का है और डॉ. रविदास भागलपुर में रहते हैं। तो कोई संबंध ही नहीं बनता। इसके पहले भी 2016 में डॉ. रविदास को फंसाने की साजिश रची गई थी। तब थाने पर जाकर सबसे पहले मैंने ही नारा लगाया था कि डॉ. रविदास को फंसाने की साजिश बंद करो। यह कोई विश्वास करनेवाली बात ही नहीं है। चूंकि बिहार की सत्ता में भाजपा शामिल है तो उसे ऐसे लाेग चुभते हैं जो वंचितों के हक और हुकूक की बात करते हैं।”

वहीं, परिधि नामक संस्था और राष्ट्र सेवा दल से जुडे भागलपुर के सामाजिक कार्यकर्ता उदय जी का मानना है कि “इस पूरे मामले में तीन बातें हैं। पहली तो यह कि लखीसराय जिला के एसपी को किसी व्यक्ति के कहने मात्र पर प्रेस कांफ्रेंस नहीं करनी चाहिए थी। कोई भी व्यक्ति किसी के बारे में कोई भी आरोप लगा सकता है। दूसरी बात यह कि यदि व्हाट्सअप ग्रुप व मोबाइल के जरिए हिंसा करने के लिए प्रेरित करने की बात कही जा रही है तो पहले पुलिस को डॉ. विलक्षण रविदास का माेबाइल जांच लेना चाहिए था। तीसरी बात यह कि डॉ. रविदास आंबेडकरवादी व्यक्ति हैं और सामाजिक न्याय के विचारों को लेकर मुखर रहते हैं।”

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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