गत 9 अगस्त, 2022 का दिन फिर से बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक अहम तारीख के रूप में दर्ज हो गया। दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ अपना गठबंधन खत्म कर लिया और उन्हें राजदनीत महागठबंधन ने अपना समर्थन दिया। परिणाम यह कि नीतीश कुमार आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं और उनके साथ ही राजद के नेता तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री। इस बीच इस सियासी गतिविधि को बिहार से प्रकाशित अखबारों ने विश्वासघात तक सीमित रखा है और कहीं ना कहीं उन मुद्दों को गौण कर दिया है, जिनके कारण बिहार में यह राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हुई। इनमें एक बड़ा मुद्दा जातिगत जनगणना का रहा, जिसके पक्ष में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक साथ दिखाई दिये। उनके साथ महागठबंधन के अन्य घटक दल कांग्रेस और भाकपा माले भी साथ नजर आए। अब नई हुकूमत से लोगों को क्या उम्मीदें हैं, इस संंबंध में फारवर्ड प्रेस ने बिहार के सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं से बातचीत की।
नई सरकार से उम्मीदों के संबंध में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के आंबेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विलक्षण रविदास ने कहा कि “जब कभी सत्ता बदलती है तो जड़ता टूटती है और उसका लाभ जनता को मिलता है। इस बार भी जब सत्ता में बदलाव हुआ है तो उम्मीदें बढ़ी हैं। पहली उम्मीद तो यह कि बेरोजगारों को नौकरियां मिलेंगीं। वर्ष 2020 के चुनाव में तेजस्वी जी ने दस लाख नौकरियों का वादा किया था, जिसे बाद में आरएसएस, भाजपा और जदयू ने अपने एजेंडे में शामिल कर 19 लाख नौकरियां देने की बात कही, लेकिन अपना वादा पूरा नहीं किया। भाजपा ने तो केंद्र से लेकर राज्यों तक में निजीकरण को बढ़ावा दिया है और नियमित नियुक्तियों के स्थान पर संविदा के आधार पर युवाओं का शोषण करने की नीति को आगे बढ़ाया है। तेजस्वी और नीतीश कुमार से यह उम्मीद तो बनती है कि वह इस पर रोक लगाएंगे और रिक्त पदों पर बहाली करेंगे। दूसरी बात यह कि शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अधिक गिरावट आयी है। उच्च शिक्षा के मामले में तो राजभवन तक की नकारात्मक भूमिका अब सभी के सामने है। ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि नयी हुकूमत में इस स्थिति में बदलाव होगा। जहां तक सामाजिक न्याय की बात है तो सामान्य तौर पर लोग केवल दो तरह की बात ही उठाते हैं। मंडल कमीशन ने करीब 80 की संख्या में अनुशंसाएं की थीं, जिनमें से केवल दो या तीन को ही लागू किया गया है। इनमें उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश व सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण शामिल है। मुझे लगता है कि अब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की अगुआई में इस दिशा में और गंभीरतापूर्वक पहल की जाएगी।”

वहीं बिहार के बहुजन चिंतक व पूर्व विधायक एन. के. नंदा ने कहा कि “नई सरकार का गठन स्वागतयोग्य है। भाजपा हिंदुत्व का एजेंडा लागू कर रही थी, जिसके कारण अल्पसंख्यकों में दहशत का माहौल बन गया था। नीतीश कुमार भी असहज महसूस कर रहे थे। अब राजद के रूप में एक मजबूत साथी उन्हें मिला है तो अब उम्मीद है कि वह सहजता से हिंदुत्व के उन्माद फैलाने के षडयंत्र को खत्म कर सकेंगे। सामाजिक न्याय के अनेक सवाल लंबित थे और जिनके क्रियान्वयन में भाजपा बाधक थी, अब वे पूरे हो सकेंगे। इनमें आरक्षित कोटे के बैकलॉग के पदों की भर्ती से लेकर सूबे में जातिगत जनगणना भी शामिल है। लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूं कि राजद अपने कार्यकर्ताओं को संयमित रखे।”
भाकपा माले से संबद्ध अखिल भारतीय खेत ग्रमाीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव धीरेंद्र झा के मुताबिक, “यह सामंतवादी और हिंदुत्ववादी उन्मादी ताकत के खिलाफ सामाजिक और राजनीतिक गठबंधन है। बिहार ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि वह लोकशाही के साथ खड़ा है और तानाशाही को खारिज करता है। भाकपा माले सरकार में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होगी, लेकिन वह सरकार के साथ खड़ी रहेगी। साथ ही, सड़कों के सवाल और सरकार के बीच सेतु बनने का काम करेगी। जहां तक मुद्दों का सवाल है तो सबसे पहला मुद्दा है गरीबी का मुद्दा। बिहार में 52 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। उन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जाय, इसके लिए सरकार ठोस योजनाएं बनाए और उन्हें लागू करे। दूसरा मुद्दा है भूमिसुधार का और आवासहीनता का। सरकार आवासहीन लोगों, जिनमें अधिकांश दलित और पिछड़े समुदायों के लोग हैं, उनके लिए योजनाबद्ध तरीके से आवास मुहैया कराए। तीसरा सवाल है रोजगार का। भाकपा माले हमेशा संविदा आधारित नौकरियों का विरोध करती है और हम नई सरकार से अपील करेंगे कि वह नियमित नौकरियों की दिशा में पहल करे। चौथा मसला है संस्थागत भ्रष्टाचार का। भाजपा के कारण पूरे राज्य में संस्थागत भ्रष्टाचार बढ़ रहा था। तो इस दिशा में सरकार कठोर कार्रवाई करे। पांचवीं बात यह कि योजनाओं का लाभ आम जनता को मिले, इसके लिए सरकार नागरिक समाज को साथ लेकर रणनीति तैयार करे।”
वहीं बिहार के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अजमल का कहन है कि “मुख्य रूप से तीन बातें हैं। पहली तो यह कि बिहार के नौजवानों के सामने बेरोजगारी बड़ा मसला है। तेजस्वी यादव ने अपने चुनावी सभाओं में इसे प्रमुखता से उठाया था। उन्हें अब इसे लागू करने की दिशा में पहल करनी चाहिए। दूसरी बात यह कि भाजपा पहले से ही बिहार में सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने की दिशा में काम कर रही थी, तो नयी सरकार उसकी साजिशों को नाकाम करे। और तीसरी बात यह कि जातिगत जनगणना काम अब जितनी जल्दी हो, उसे शुरू कर दिया जाय। हालांकि कुछ काम तो पहले किया जा चुका है। लेकिन अब इसे जल्दी ही सरकार अमलीजामा पहनाये।”
सामाजिक कार्यकर्ता व सेवा, बिहार के संयोजक राकेश यादव का मानना है कि “नई सरकार के समक्ष दो अहम मुद्दे हैं। एक तो शिक्षा और दूसरा चिकित्सा। आज पूरे बिहार में सरकारी शिक्षा बहुत बुरे दौर में है। निजी स्कूलों में फीस बहुत महंगा है। यह हाल प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के अलावा उच्च शिक्षा में भी है। दूसरी समस्या है चिकित्सा व्यवस्था की। चिकित्सा बहुत महंगी हो गई है और सरकारी अस्पताल बदहाल हैं। आज बिहार में लोगों की औसत 5-6 हजार रुपए है। अब इतनी कम राशि में लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे दे सकेंगे और कैसे गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा हासिल कर सकेंगे। इसलिए सरकार को सबसे पहले इन दो मुद्दों पर ठोस पहल करनी चाहिए।”
(संपादन : अनिल)
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