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‘एससी, एसटी और ओबीसी के अधिकारों का जम्मू-कश्मीर में हो रहा हनन’ 

एससी, एसटी ओबीसी संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि परिसंघ केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्व से चले आ रहे आरक्षण को खत्म करने संबंधी कवायद की आलोचना करता है। पढ़ें, यह खबर

गत 16 अक्टूबर, 2022 को एससी, एसटी ओबीसी संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ का तीसरा राष्ट्रीय सम्मेलन जम्मू के गुर्जर चैरिटेबुल ट्रस्ट के सभागार में आयोजित किया गया। इस बार इसका थीम संविधान रहा और वक्ताओं ने संविधन व मौलिक अधिकारों को बचाने की बात कही। वक्ताओं में परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद डॉ. उदित राज, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतनलाल, व परिसंघ के जम्मू प्रांत के अध्यक्ष आर. के. कलसोत्रा सहित अनेक गणमान्य शामिल रहे।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि परिसंघ केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्व से चले आ रहे आरक्षण को खत्म करने संबंधी कवायद की आलोचना करता है। उन्होंने कहा कि मंडल कमीशन की अनुशंसा के अनुरूप राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह केवल 4 प्रतिशत ही है। उन्होंने कहा कि जब केंद्र ने राज्य में धारा 370 को निष्प्रभावी बना दिया है, उसे उसी तर्ज पर अधिकारों काे भी एक समान कर देना चाहिए। उन्होंने मांग किया कि नये संसद भवन का नामकरण डॉ. आंबेडकर के नाम पर हो, क्योंकि संविधान बनाने में सबसे अधिक उनकी भूमिका रही है। 

सम्मेलन के दौरान देश भर से आए विभिन्न वक्तागण

डॉ. उदित राज ने जोर देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में दलित और आदिवासी वर्ग के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय इस संबंध में अपनी सहमति दे चुका है। 

वहीं अपने संबोधन में कलसोत्रा ने कहा कि मौजूदा दौर में संविधान खतरे में है। संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, जिसके शिकार एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोग हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सूबे में धारा 370 के खात्मे के बाद केंद्र सरकार द्वारा किये गये वादे पूरे नहीं किये जा रहे हैं। आरक्षण का सवाल जस का तस बना है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे वे लोग जो सरकारी कर्मचारी हैं, वे अपने मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे हैं, लेकिन हुकूमत उनकी बातें नहीं सुन रही है। उन्होंने उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में एसटी वर्ग में दूसरे वर्गों की जातियों को शामिल किये जाने पर भी चिंता व्यक्त की। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. रतनलाल ने कहा कि वर्ष 2014 में सत्तासीन होने के बाद से ही भाजपा और आरएसएस मिलकर इस देश के संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को खत्म करने में लगे हैं। उन्होंने नई शिक्षा नीति, संविदा के आधार पर सैनिकों की बहाली और पिछले दरवाजे से आईएएस बनाने की सरकारी नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार के इन कदमों से वर्चस्वशाली ताकतें और मजबूत होंगी। जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण यादव ने कहा कि भारत सरकार की नीतियां खतरनाक रही हैं। लेकिन किसानों और छात्रों ने अच्छा प्रतिरोध किया। हमें प्रतिरोध की ऐसी ताकतों को अपना समर्थन देना होगा।

सम्मेलन में उपस्थित देश भर से आए प्रतिनिधि

दिल्ली विश्वविद्यालय में ही असिस्टेंट प्रोफेसर व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. जितेंद्र मीणा ने इस अवसर पर कहा कि देश में सांप्रदायिक उन्माद का माहौल बढ़ता रहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण विरोधी फैसलों की वजह से शासन-प्रशासन में भागीदार अपेक्षा के अनुरूप नहीं बढ़ रही है। वनाधिकार कानून का भी सरकार दुरूपयोग कर रही है तथा उसमें संशोघन कर उसे और जन-विरोधी बनाती जा रही है।   

परिसंघ के तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन को सूमित चौहान, परिसंघ की हरियाणा प्रदेश की अध्यक्ष निशा बुराक, मध्य प्रदेश के संयोजक ए.आर. सिंह के अलावा परिसंघ के सचिव डॉ. ओम सुधा, सेवानिवृत्त अधिकारी राशिद आजम इंकलाब, गुर्जर बकरवाल संघ के अध्यक्ष हाजी युसूफ गोड़सी, यूनाईटेड पीस एलायंस के अध्यक्ष शाहिद सलमीन, ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन के जम्मू-कश्मीर प्रांत के अध्यक्ष एफ. सी. साटिया सहित अनेक गणमान्य लोगों ने अपने विचार रखे। 

(संपादन : नवल/अनिल)

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एफपी डेस्‍क

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