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बहुजन साप्ताहिकी : दलित मुसलमानों और दलित ईसाईयों के आरक्षण से केंद्र ने किया इंकार

इस सप्ताह पढ़ें नीट परीक्षा के संदर्भ में ओबीसी के सवाल पर तमिलनाडु सरकार और वहां के राज्यपाल के बीच विवाद और डीएमके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले को चुनौती देने के संबंधी खबरें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के धर्मांतरण संबंधी एजेंडे को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार ने अपना रूख स्पष्ट कर दिया है। उसने सुप्रीम कोर्ट में अपने एक हलफनामे में कहा है कि यदि कोई बौद्ध धर्म के अलावा किसी और धर्म को स्वीकार करता है तो उसे आरक्षण नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान गत 10 नवंबर, 2022 को भारत सरकार की ओर से यह हलफनामा पेश किया गया।

अपने हलफनामे में सरकार ने कहा है कि इस्लाम और ईसाईयत में जातीय आधार पर भेदभाव नहीं है। इसके अलावा इन दोनों धर्मों में छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था प्रचलित नहीं है। इसके अलावा ईसाई और इस्लामी समाज के सदस्यों को कभी भी हिंदुओं के जैसे पिछड़ेपन और उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है। इसलिए इन्हें सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता है। 

वहीं बौद्ध धर्म स्वीकार कर चुके दलितों के आरक्षण के पक्ष में तर्क रखते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई व इस्लाम में धर्मांतरण से भिन्न रही है। इसके साथ ही, यह भी कहा गया है कि दूसरे धर्म को स्वीकार करने पर व्यक्ति अपनी जाति खो देता है, इसलिए वह जाति के आधार पर मिलनेवाले आरक्षण का पात्र नहीं रह जाता है।

सभी दलितों को आरक्षण का अधिकार देने की मांग करते प्रदर्शनकारी

ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को क्रमश: 15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत आरक्षण सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु दिया गया है। इनमें अनुसूचित जनजाति के वे सदस्य, जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है, उन्हें भी आरक्षण का लाभ दिया जाता है। वहीं इस्लाम धर्म में दलितों के समकक्ष जातियों को बिहार सहित देश के अनेक राज्यों में पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया जाता है। अब भारत सरकार इन दोनों आरक्षणों के खिलाफ खड़ी है।

बताते चलें कि छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में पहले से ही संघ के दलित ईसाईयों को आरक्षण से वंचित कराने हेतु अभियान चला रही है। इसी क्रम में जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने उपरोक्त हलफनामा प्रस्तुत किया है। इस हलफनामे में भारत सरकार ने कहा है कि ईसाई और इस्लाम धर्म दोनों विदेशी धर्म हैं। इसके अलावा यह तर्क भी दिया गया है कि रंगनाथ मिश्र आयोग ने बिना किसी अध्ययन के ही सभी धर्मों में धर्मांतरित दलितों को आरक्षण देने की सिफारिश की थी।

तमिलनाडु : नीट में ओबीसी हिस्सेदारी को लेकर सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद गहराया

दक्षिण भारत के तीन राज्यों केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु में सत्तासीन सरकारों ने अपने यहां के राज्यपालों के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया है। इन तीनों राज्यों की सरकारों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू को पत्र लिखकर राज्यपालों को वापस बुलाने तक की मांग की है। 

इनमें केरल में राज्य सरकार और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बीच कुलाधिपति की हैसियत से कुलपतियों की नियुक्ति के मामले में हस्तक्षेप करने को लेकर विवाद है। दरअसल विजयन सरकार ने विधानसभा में एक कानून पारित करवा लिया है, जिसके आधार पर अब वह किसी शिक्षाविद् को राज्य के कुलाधिपति के रूप में नियुक्त कर सकती है। वर्तमान व्यवस्था में राज्यपाल ही किसी भी प्रांत के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति माने जाते रहे हैं। 

वहीं तेलंगाना में सत्तासीन टीआरएस सरकार ने राज्यपाल तमिलिसै सौंदरराजन पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनके दल के विधायकों की खरीद-फरोख्त करने साजिश रची है। वहीं तमिलनाडु में सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद के केंद्र में नीट में ओबीसी आरक्षण है।

दरअसल, तमिलनाडु में डीएमके नीत धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने राज्यपाल आरएन. रवि को राज्यपाल पद के लिए आयोग्य कहा है तथा केंद्र से उन्हें वापस बुलाने को कहा है। राज्य सरकार के मुताबिक आर.एन. रवि नीट संबंधी विधेयक को केवल इस कारण मंजूरी नहीं दे रहे हैं, क्योंकि वे राज्य के राज्यपाल के अनुरूप नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। 

डीएमके देगी संविधान पीठ के फैसले को चुनौती, स्टालिन ने बुलायी सर्वदलीय बैठक

गत 7 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा आर्थिक आधार पर कमजाेर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए दस प्रतिशत आरक्षण हेतु 103वें संविधान संशोधन की वैधानिकता को बरकरार रखा गया। तमिलनाडु में सत्तासीन डीएमके पार्टी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती देने का निर्णय लिया है। इसकी घोषणा डीएमके के राष्ट्रीय महासचिव दुरईमुरूगन ने गत 10 नवंबर, 2022 की। वहीं इस मसले पर सर्वदलीय बैठक का आह्वान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री व डीएमके के नेता एम. के. स्टालिन ने किया है।

दुरईमुरूगन के मुताबिक 103वां संशोधन एससी, एसटी और ओबीसी को दिए आरक्षण संबंधी मूल अवधारणा के विपरीत है तथा इसे यदि खारिज नहीं किया गया तो इसका बुरा असर आरक्षित वर्गों के हितों पर पड़ेगा। वहीं सर्वदलीय बैठक के बारे में उन्होंने बताया कि यह बैठक आगामी 12 नवंबर, 2022 को चेन्नई में होगी। इसमें डीएमके ने अपने सभी घटक और गैर घटक दलों को आमंत्रित किया है। उन्होंने एआईडीएमके, कांग्रेस और सीपीएम को भी अपने प्रतिनिधियों को बैठक में शामिल करने हेतु अनुरोध करने की बात कही। बताते चलें कि कांग्रेस और और सीपीएम ने वर्ष 2019 में 103वें संविधान संशोधन के पक्ष में खड़े थे।   

गोरखपुर : ‘आयाम’ के आयोजन में जुटेंगे देश भर के दिग्गज

आगामी 12-13 नवंबर, 2022 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में देश भर के अनेक दिग्गज लेखक और समालोचक एकजुट होंगे। दरअसल, स्थनीय सांस्कृतिक संस्था आयाम के द्वारा विभिन्न विषयों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया है। आयोजकों ने इस सेमिनर को दिवंगत वरिष्ठ साहित्य समालोचक प्रो. मैनेजर पांडेय को समर्पित किया है। 

आयाम के संयोजक कवि देवेंद्र आर्य ने सूचना दी है कि दो दिनों का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित की जा रही है। इसका विषय ‘दलित पसमांदा तथा बहुजन : साहित्य और समाज का सच’। उन्होंने बताया कि सेमिनार में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी, दलित लेखक संघ की अध्यक्ष डॉ. अनीता भारती, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सिद्धार्थ, बनारस से प्रोफेसर चौथीराम यादव, डॉ. कमलेश वर्मा, लखनऊ से बी. आर. विप्लवी, पटना से डॉ. फ़ैयाज़ अहमद और आजमगढ़ से पी. सबीहा आदि शामिल होंगे। 

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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