“सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने दो मुकाबले तीन के तहत आर्थिक आधार पर कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए दस फीसदी आरक्षण को वैध करार दिया है। यहां तक कि मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू.यू. ललित और न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट ने इसे अपने-अपने फैसले में अवैध कहा है। हम अभी फैसले की प्रति का इंतजार कर रहे हैं। जल्द ही इसे पढ़ने के बाद हम इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।” ये बातें जनहित अभियान के संयोजक राज नारायण ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत के क्रम में अपनी प्रतिक्रिया में कही।
बताते चलें कि जनहित अभियान सहित अन्य 32 याचिकाकर्ताओं ने 103वें संविधान संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके जरिए 2019 में केंद्र सरकार ने सरकारी सेवाओं और उच्च शिक्षण संस्थानों में गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था।
इस मामले में कई याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने गत 27 सितंबर, 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले में सुनवाई के बाद पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने खंडित फैसला दिया। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर सहमति जताई है। तीनों जजों का मानना है कि यह आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। फैसला सुनाते हुए तीनों जजों ने यह भी माना कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा कोई आखिरी सीमा नहीं है।

इस संबंध में मुख्य याचिकाकर्ता जनहित अभियान के संयोजक राज नारायण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनके पास दो ही रास्ते बचे हैं। एक तो यह कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिरोपित 50 फीसदी आरक्षण सीमा को खत्म करे और इसके लिए सरकार पर दबाव बनाने हेतु राजनीतिक-सामाजिक आंदोलन चलाया जाय और दूसरा यह कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर किया जाय। राज नारायण के मुताबिक वे इन दोनों विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।
वहीं इस मामले में एक अन्य याचिकाकर्ता और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश व राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैय्या ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला संविधान के मूल भावना के विरूद्ध है। इसके मूल में ही आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन है। इसे आर्थिक कहा जाना अनुचित है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में वे सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।
(संपादन : अनिल)