h n

राज्यसभा में उठी एससी व एसटी के लिए केंद्रीय बजट बढ़ाने की मांग

टीडीपी सांसद कनकमेदला रवींद्र कुमार ने कहा कि सिर्फ जनजातीय दर्जा दे देने से किसी जाति के लोगों के जीवन में सुधार नहीं होगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि विकास की दौड़ में पिछड़ गए वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए। सैयद ज़ैगम मुर्तजा की खबर

गत 13 दिसंबर, 2022 को राज्‍यसभा में संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक 2022 पर चर्चा के दौरान तमाम सदस्यों ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कल्याण पर ख़र्च होने वाले केंद्रीय बज़ट को बढ़ाने की मांग की है। इस विधेयक का उद्देश्य अनुसूचित जातियों के बारे में 1950 के संवैधानिक आदेश और उत्‍तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के बारे में 1967 के आदेश में संशोधन किया जाना थ। 

दरअसल, सितंबर, 2019 में केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के नवगठित चार जिलों चंदौली, संत रविदासनगर (भदोही), संत कबीरनगर और कुशीनगर में भी गोंड जाति व इसकी पांच उपजातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्णय लिया था। इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए ही उपरोक्त विधेयक लाया गया।

विधेयक पर चर्चा के दौरान सदन में कई सदस्यों ने कहा कि न सिर्फ सरकारी नौकरियों में ख़ाली पड़े आरक्षित पद जल्द भरे जाएं, बल्कि बहुजनों के कल्याण के लिए सरकार पर्याप्त पैसे का प्रावधान करे। सदस्यों ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि इस विधेयक के प्रावधानों को उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िलों में ही लागू किया जाना है।

बहुजन समाज पार्टी के सदस्य रामजी ने विधेयक का समर्थन किया। रामजी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कुछ समुदायों की अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किए जाने की मांग लंबे अरसे से लंबित थी। सरकार ने यह विधेयक लाकर अच्छा क़दम उठाया है। उन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ समुदायों को भी आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग की।

कनकामेडला रवींद्र कुमार, राज्यसभा सांसद, तेलुगूदेशम पार्टी

विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए तृणमूल कांग्रेस सांसद शांतनु सेन ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने एससी और एसटी के लिए चलने वाली कई योजनाओं के बजट में भारी कटौती की है। शांतनु सेन ने कहा कि अनुसूचित जाति के लिए भाजपा सरकार का प्रेम महज़ दिखावा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के गांव में बिजली का खंभा उस दिन लगाया गया, जिस रोज़ उन्होंने अपना नामांकन पत्र दाख़िल किया था।

तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) के सदस्‍य कनकामेडला रवींद्र कुमार ने केंद्र सरकार से वाल्‍मिकी और बोया समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति का दर्ज दिए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह दोनों वर्ग लंबे समय से अपेक्षित हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सदस्य मनोज कुमार झा ने आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा सरकार ने एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के युवा शोधार्थियों को दी जाने वाली फेलोशिप की योजनाओं को समाप्त कर दिया है। उन्होंने फेलोशिप योजनाओं के लिए बजट प्रावधान की मांग की और कहा कि इनके बंद होने से बहुजन समाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अदालत ने आरक्षण की सीमा का समाप्त कर दिया है। इसके मद्देनज़र उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 52 प्रतिशत तक कर देने की मांग की। जाति आधारित जनगणना का मुद्दा उठाते हुए मनोझ झा ने इससे संबंधित आंकड़े जल्द जारी करने की अपनी पार्टी की मांग भी दोहराई।

जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) सदस्य खीरू महतो ने विधेयक का समर्थन किया, लेकिन साथ ही झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के कुर्मी समुदाय के लोगों को जनजातीय श्रेणी में स्थान दिए जाने की मांग की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) सांसद संदोष कुमार पी ने महतो की मांग का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जनजातीय वर्ग की सूची में कुछ जातियों को शामिल करने भर से उनकी समस्याओं का पूरी तरह समाधान नहीं होगा। संतोष कुमार ने कहा कि जाति आधारित जनगणना इसलिए भी ज़रूरी है कि लोगों को उनकी संख्या के अनुपात में हिस्सेदारी मिल सके। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) सदस्य एम. षणमुगम ने भी जाति आधारित जनगणना की पुरज़ोर वकालत की और सरकार से तुरंत इस दिशा में क़दम उठाने की मांग की।

टीडीपी सांसद कनकमेदला रवींद्र कुमार ने कहा कि सिर्फ जनजातीय दर्जा दे देने से किसी जाति के लोगों के जीवन में सुधार नहीं होगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि विकास की दौड़ में पिछड़ गए वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से अनुसूचित जाति और जनजातियों से जुड़ी योजनाओं में बजट राशि बढ़ाने की मांग की।

कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने भी एससी/एसटी के लिए केंद्रीय बजट में कटौती पर सवाल उठाय़ा। प्रमोद तिवारी ने संविधान (अनुसूचति जातियां एवं जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक के प्रावधानों के राज्यों में समान रूप से लागू नहीं किए जाने पर ऐतराज़ जताया। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या अनुसूचित जाति या जनजाति के लोग सिर्फ कुछ ज़िला मुख्यालयों पर ही रहते हैं। कांग्रेस सांसद ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार जातियों को एससी और एसटी की सूची में शामिल करने के लिए तो क़ानून बनाने का दावा करती है लेकिन इस सूची में नए समुदायों के शामिल होने के बावजूद बजट राशि नहीं बढ़ाती है।

कांग्रेस सांसद डॉ. एल. हनुमंथईया ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को जनसंख्‍या के अनुसार बजट में प्रावधान किए जाने की मांग की। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सांसद केवी लिंगैयाह यादव ने दावा किया कि तेलंगाना में उनकी पार्टी की सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए कई अच्छी योजनाएं चला रही है। उन्होने कहा कि केंद्र सरकार उन योजनाओं का राष्ट्रीय स्तर पर लागू करे तो इन समुदायों का सही में भला हो सकता है।

बिल पर चर्चा के दौरान बीजू जनता दल के निरंजन बिशी ने कुछ और समुदायों को आदिवासियों की सूची में शामिल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार ने कुछ समुदायों को एसटी सूची में डालने की सिफारिश की हैं। केंद्र सरकार इन सिफारिशों पर जल्दी अमल करके समुचित क़दम उठाए।

चर्चा के दौरान भाजपा सांसद सुमित्रा वाल्मीकि ने आरोप लगाया कि आज़ादी के बाद लंबे समय तक दलितों और जनजातीय समुदाय को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया। उन्होंने दावा किया कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद पिछले आठ साल में एससी/एसटी की उन्नति की दिशा में केंद्र ने कई ठोस प्रयास किए हैं। भाजपा के ही अजय प्रताप सिंह ने कहा कि देश में कई जातियां ऐसी हैं जिनका रहन-सहन और खानपान एक जैसा है। इन तमाम जातियों तो एक छतरी के नीचे लाने और उन्हें एक जैसी आरक्षण सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यक्ता है।

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...