गत 27 दिसंबर, 2022 को उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने सूबे में प्रस्तावित निकाय चुनावों को बिना ओबीसी आरक्षण के 31 जनवरी, 2023 तक कराने का आदेश दिया है। हालांकि न्यायमूर्ति देवेंद्र उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लावनिया की खंडपीठ के आदेश के उपरांत राज्य सरकार बार-बार कह रही है कि वह बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं कराएगी। साथ ही पीठ द्वारा सवाल उठाए जाने के उपरांत राज्य सरकार ने आननफानन में 28 दिसंबर, 2022 को पांच सदस्यीय आयोग का गठन कर दिया जो ओबीसी से संबंधित आवश्यक आंकड़े जुटाएगी। इस घोषणा के बावजूद क्या होगा यह कहना मुश्किल है।
ध्यातव्य है कि नवगठित आयोग के अध्यक्ष इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति राम अवतार सिंह हैं। अन्य सदस्यों में पूर्व आईएएस चौब सिंह वर्मा, पूर्व आईएएस महेंद्र कुमार, पूर्व अपर विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा व पूर्व अपर विधि परामर्शी व जिला जज ब्रजेश कुमार सोनी शामिल हैं।
दरअसल, सूबे में सत्तासीन योगी आदित्यनाथ की सरकार के समक्ष अब दोहरी चुनौती है। पहली चुनौती यह कि हाई कोर्ट के इस आदेश कि सूबे में निकाय चुनाव 31 जनवरी, 2023 तक करा लिए जाएं, के विरोध में क्या वह सुप्रीम कोर्ट जाएगी? दूसरी चुनौती यह कि यदि उसे 31 जनवरी, 2023 तक चुनाव कराने पड़ेंगे तो निश्चित तौर पर यह ओबीसी आरक्षण के बिना ही हो सकेगा और इसकी वजह यह कि सरकार ने जिस आयोग का गठन किया है, उसका कार्यकाल छह माह तय किया गया है। लिहाजा यह तो साफ है कि नवगठित आयोग अदालत द्वारा निर्धारित तिथि तक अपनी रपट सरकार को नहीं दे सकेगी।

बताते चलें कि यह पहला मौका नहीं है जब निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर अदालत ने हस्तक्षेप किया है। इसके पहले महाराष्ट्र्, मध्य प्रदेश और बिहार आदि राज्यों में भी अदालतों ने यही किया और इन राज्यों की सरकारों ने आननफानन में इम्पीरिकल डाटा रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। इसके कारण इन राज्यों में ओबीसी आरक्षण को शामिल करते हुए चुनाव संपन्न हो सके हैं।
उत्तर प्रदेश में 762 नगर निकायों में चुनाव होने हैं। सूबे में आखिरी बार निकाय चुनाव 2017 में हुए थे। तब ओबीसी को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार द्वारा पहले ही सर्वेक्षण करा लिया गया था। इन सभी निकायों का कार्यकाल 12 दिसंबर से 19 जनवरी 2023 के बीच समाप्त हो रहा है। पंचायती राज निकाय अधिनियम के तहत कार्यकाल समाप्त होने के पहले तक चुनाव कराया जाना आवश्यक है। यही कारण है कि राज्य सरकार ने 5 दिसंबर, 2022 को 2017 में हुए ओबीसी संबंधी सर्वेक्षण को आधार मानते हुए निकाय चुनाव कराने का आदेश जारी कर दिया।
राज्य सरकार की घोषणा के बाद अदालत में इस संबंध में दाखिल 40 से अधिक याचिकाओं की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा 5 दिसंबर, 2022 को जारी अधिसूचना को खारिज कर दिया। हालांकि सरकार ने कहा था कि 2017 में हुए चुनाव के संदर्भ में हुए सर्वेक्ष्ण को ही आधार माना जाय।
बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी राजनीति महत्वपूर्ण रही है। यदि भाजपा की ही बात करें तो आज की तारीख में ओबीसी उसका बड़ा वोट आधार है। यही वजह है कि हाई कोर्ट का निर्णय आते ही स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह ऐलान कर दिया कि राज्य में निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे। अपने एक ट्वीट में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि “उत्तर प्रदेश सरकार नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में एक आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इसके उपरान्त ही नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन को सम्पन्न कराया जाएगा।”
बहरहाल, जब गठित आयोग का कार्यकाल छह माह निर्धारित है और अदालत द्वारा निकाय चुनाव के लिए निर्धारित समयसीमा 31 जनवरी, 2023 है तो राज्य सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट का रूख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका कब दाखिल करेगी? इस संबंध में फिलहाल राज्य सरकार द्वारा कोई बयान नहीं दिया जा रहा है। वहीं सियासी गलियारों में चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं से विचार-विमर्श के उपरांत ही इस संबंध में कोई निर्णय लेंगे।
(संपादन : अमरीश हरदेनिया)
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