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आजमगढ़ का खिरिया बाग आंदोलन : ग्रामीण महिलाएं संभाल रहीं मोर्चा

धरने पर बैठीं जमुआ गांव की केवलपत्ती देवी से एक पत्रकार जब पूछती हैं कि कब तक आप सब ये आंदोलन चलाएंगीं तो वे अपनी ठेंठ बोली में कहती हैं कि ‘जब तक प्रधानमंत्री हमारी जमीन हमें वापस करने का आदेश लिखकर नहीं दे देते, तब तक हम धरने पर बैठे रहेंगे।’ पढ़ें, रूपम मिश्र की रपट

इन दिनों उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में खिरिया बाग आंदोलन में मोर्चा संभालनेवाली ग्रामीण महिलाएं हैं। इनमें भूमिहीन मजदूर, बटाई पर खेती करनेवाले और छोटी जोत वाले किसान शामिल हैं। जाहिर तौर पर इनमें दलित-बहुजनों की बड़ी हिस्सेदारी है। 

यह ग्रामीण महिलाओं का साहस व प्रतिबद्धता है कि आजमगढ़ में चल रहे इस जमीनी आंदोलन के सौ से अधिक दिन बीत गए हैं। आंदोलनकारियों पर कड़ाके की ठंड भी बेअसर रही है। 

ध्यातव्य है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में लगभग नौ गांवों को उजाड़कर केंद्र सरकार एयरपोर्ट का विस्तारीकरण करना चाहती है। केंद्र सरकार की इस योजना से करीब सत्ताईस हजार लोग विस्थापित हो जाएंगे।

दरअसल, सरकार मंदुरी हवाईपट्टी को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने के लिए लगभग 670 एकड़ जमीन ग्रामीणों से अधिग्रहण करना चाहती है। इसके लिए वर्ष 2022 के मध्य से ही जिले के प्रशासनिक अधिकारियों ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया। जब 13 अक्टूबर, 2022 को बगैर किसी पूर्व सूचना के प्रशासनिक महकमा भारी पुलिस बल के साथ गांवों में सर्वेक्षण के लिए गया, तब जद में आनेवाले सभी नौ गांवों के लोगों ने सरकार के इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया।

सरकार द्वारा मुआवजे की बात कही जा रही है। लेकिन ग्रामीण अपनी जमीन छोड़ना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें अपने इलाके में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की कोई उपयोगिता नहीं दिख रही है। वे बार-बार दुहराते हैं कि उन्हें एयरपोर्ट नहीं, रोजगार, अस्पताल, स्कूल चाहिए। वे अपनी खेती के लिए खाद, बीज और सिंचाई की व्यवस्था की मांग करते हैं तथा सवाल उठाते हैं कि सरकार उन्हें वह चीज क्यों दे रही है, जिसकी उन्हें कोई जरूरत नहीं है।

इस तरह ग्रामीणों ने जब इस भूमि अधिग्रहण का विरोध किया तो पहले प्रशासन द्वारा उनके ऊपर बल प्रयोग किया गया। इस क्रम में उनके ऊपर लाठीचार्ज किया गया। आंदोलनरत महिलाओं का आरोप है कि उनके साथ पुलिस ने बदसलूकी की। इस दमन और अधिग्रहण के विरोध में नौ गांवों के लोगों ने ‘खिरिया बाग’ में इस प्रोजेक्ट के खिलाफ धरने की शुरूआत कर दी। 

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के खिरिया बाग में आंदोलन करतीं ग्रामीण महिलाएं

सनद रहे कि इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व गांव की महिलाएं कर रही हैं। यही इस आंदोलन की खासियत है। इन महिलाओं ने खिरिया बाग आंदोलन को दिल्ली के शाहीन बाग आंदोलन के रूप में बदल दिया है।

गौरतलब है कि जब केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने अपना आंदोलन स्थगित किया और जिस तरह के चुनाव परिणाम आए, उसे देखते हुए जन-आंदोलनों को लेकर सवाल उठने लगे थे। परंतु आज आजमगढ़ के खिरिया बाग आंदोलन ने इन सवालों को खारिज किया है।

आजमगढ़ जिले के खिरिया बाग में आज जो आंदोलन चल रहा है, यदि ध्यान से आंदोलनरत महिलाओं की बातें सुनें तो आपको अचरज हो सकता कि वे महिलाएं जो कुछ समय पहले यह बात राशन, खाना बनाने के लिए सिलिंडर गैस व चूल्हे के लिए सरकार के प्रति अनुगृहित रहती थीं, वे आज सरकार की एयरपोर्ट योजना का पुरजोर विरोध कर रही हैं। आज वे कहती हैं कि राशन कहां से आता है? खेती-किसानी कौन करता है। उनका कहना है कि सरकार जो कुछ दे रही है, वह उनका हक है। सरकार कुछ भी अपने घर से नहीं दे रही है। उनका यह भी कहना है कि सिलेंडर और चूल्हा आज किसी काम की नहीं हैं, क्योंकि सरकार ने गैस का दाम इतना महंगा कर दिया है कि उसे खरीद नहीं सकते।

धरने पर बैठीं जमुआ गांव की केवलपत्ती देवी से एक पत्रकार जब पूछती हैं कि कब तक आप सब ये आंदोलन चलाएंगीं तो वे अपनी ठेंठ बोली में कहती हैं कि “जब तक प्रधानमंत्री हमारी जमीन हमें वापस करने का आदेश लिखकर नहीं दे देते, तब तक हम धरने पर बैठे रहेंगे।” सरकार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा क्यों बनाना चाहती है, का एक जवाब केवलपत्ती देवी देती हैं कि “क्या आपको पता नहीं है कि सरकार हवाई अड्डों को अडाणी-अंबानी को दे रही है। लखनऊ और कई जगहेों पर एयरपोर्ट बेचे जा चुके हैं। उन्हीं के लिए बनवा रही है सरकार यह हवाई अड्डा।”

इसी तरह जमुआ गांव की ही महिला सुनीता देवी विस्थापन के कारण अपनों से छिटकने की पीड़ा की बात करती हैं। उनका कहना है कि “पीढ़ियों से हम जिनके साथ रहते आए हैं, जो हमारे दुःख-सुख के साथी रहें हैं, उनलोगों से बिछड़कर हम कैसे जिएंगे, क्या करेंगे?” 

दरअसल किसी खेती-मजदूरी करनेवालों के लिए गांव-जवार महत्वपूर्ण होता है, जहां वे सामूहिकता में वास करते हैं। वे एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं। गांव वाले बताते हैं कि अब तक बारह लोगों की असमय मौत हो गई है। उनकी मौत की वजह विस्थापन को लेकर होनेवाली चिंता भी हो सकती है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। 

इस आंदोलन में बच्चे भी आगे बढ़कर भाग ले रहे हैं। एक गांव की एक बच्ची हर्षिता उपाध्याय कहती हैं कि “अगर सरकार हमारा विकास ही करना चाहती है तो हमें इलाज और शिक्षा की सुविधा क्यों नहीं दे रही है। हमारा विकास करना हो तो हमें अच्छे स्कूल और हॉस्पिटल दें, जिनके लिए हमें इतनी दूर शहर जाना पड़ता है।”

बहरहाल, यह आंदोलन कमजोरों और ताकतवरों के बीच की लड़ाई बन गई है। ग्रामीण महिलाएं साफ कह रही हैं कि वे पीछे नहीं हटेंगीं। वहीं सरकार भी इस भूमिअधिग्रहण से पीछे हटती नहीं दिख रही है। 

(संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

रूपम मिश्र

लेखिका मूल रूप से कवि हैं। उनकी अनेक कविताएं विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है। वहीं उनका एक काव्य संग्रह ‘एक जीवन अलग से’ भी प्रकाशित है।

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