दिल्ली के जंतर-मंतर पर विभिन्न राज्यों के मनरेगा के मजदूर धरने पर बैठे हैं। उन्होंने यह तय किया है कि वे सौ दिनों तक धरने पर बैठे रहेंगे। सौ दिन एक प्रतीक है, क्योंकि मनरेगा कानून के तहत मजदूरों को सौ दिनों काम दिये जाने की गारंटी का प्रावधान है। गत 14 मार्च, 2023 को आंदोलनरत मनरेगा मजदूर नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर सभागार में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों व मीडियाकर्मियों से रू-ब-रू थे। इस दौरान झारखंड के लातेहार से आयी आदिवासी महिला मजदूर सुकमनी ने यह कहकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि– “कहां जाएम-का खाएम”।
इस संवाद का आयोजन नरेगा संघर्ष मोर्चा, जन सरोकार, पीपुल्स एक्शन फॉर इंप्लॉयमेंट गारंटी और समृद्ध भारत फाऊंडेशन के द्वारा संयुक्त तत्वावधन में किया गया था। संवाद में भाग लेनेवाले नेताओं में कांग्रेेस के सांसद दिग्विजय सिंह, डी.पी. रॉय, उत्तम कुमार रेड्डी, कुमार केतकर, सीपीएम सांसद बिनॉय विस्वान, अब्दुल रहीम, डीएमके सांसद डॉ. सेंथिल कुमार, टीएमसी सासंद जवाहर सरकार, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह, आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता मीर गुप्ता, भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व नौकरशाह के. राजू, राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रो. नवल किशोर आदि शामिल थे। जबकि जन संगठनों की तरफ से ज्यां द्रेज, निखिल डे, आशीष रंजन, अनुराधा तलवार, जेम्स हरेंज के अलावा झारखंड के लातेहार से आयीं महिला मनरेगा मजदूर सुकमनी मुर्मू और तेतरी मुर्मू ने संवाद में हिस्सा लिया। वहीं इस मौके पर मनरेगा के क्रियान्वयन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ रहे प्रशांत भूषण भी मौजूद रहे।
इस कार्यक्रम में भाजपा सांसदों की गैर-मौजूदगी के संबंध में पूछने पर आयोजक संगठन की प्रतिनिधि रक्षिता स्वामी ने बताया कि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था।
बहरहाल, इस संवाद में मनरेगा कानून के विभिन्न आयामों पर विमर्श किया गया। नेताओं और जन-संगठनों के सदस्यों द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि इसे सही तरीके से लागू कराने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। वहीं यह बात भी उठी कि अधिकांश विपक्षी पार्टियां मनरेगा कानून को मुद्दा क्यों नहीं बनातीं। साथ ही इस योजना के सामाजिक पक्ष पर भी विचार किया गया कि चूंकि इस कानून के लाभार्थियों में सबसे अधिक दलित, पिछड़े और आदिवासी हैं, तो क्या इसलिए भी सरकार के स्तर पर और राजनीतिक दलों के स्तर पर उपेक्षा का भाव है? इसके अलावा यह भी विचार किया गया कि नरेगा जैसी योजना शहरी इलाकों में भी लागू की जानी चाहिए और इसे केवल 100 दिन नहीं बल्कि बढ़ाकर 365 दिन किया जाना चाहिए। न्यूनतम मजदूरी की राशि को बढ़ाकर कम से कम 500 रुपए किये जाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाने की बात भी कही गई।
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संवाद का आगाज जानेमाने समाजशास्त्री प्रो. ज्यां द्रेज ने यह कहते हुए किया कि भारत में मनरेगा कानून जो कि लोगों को रोजगार देने की गारंटी देता है, पिछले बीस वर्षों से लागू है, यह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है। इस तरह की योजना को लेकर पूरे विश्व में विचार-मंथ्न किया जा रहा है। फिर चाहे वह यूरोप के देश हों, अमेरिका हो या फिर दक्षिण अफ्रीकी देश। उन्होंने कहा कि तमाम तरह की बाधाओं के बावजूद यह कानून आज भारत में लागू है, इसके लिए हमें अपने देश पर गर्व करना चाहिए।
प्रो. द्रेज ने मनरेगा योजना के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि झारखंड में इस योजना के तहत बड़ी संख्या में आम के पेड़ लगाए गए हैं। अब इन पेड़ों से फल भी आने लगे हैं, जिससे लोगों को मीठे आम खाने को मिल रहे हैं और आय की भी प्राप्ति हो रही है। उन्होंने कहा कि वे लोग जो मनरेगा के विरोधी हैं और इसे अनुपयोगी बताते हैं, उन्हें झारखंड जाकर देखना चाहिए कि इस योजना का किस तरह सकारात्मक असर हुआ है।
प्रो. ज्यां द्रेज ने अपने प्रारंभिक संबोधन में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के मद में बजट घटाए जाने को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने त्रिशूल की उपमा देते हुए कहा कि सरकार आज मनरेगा के ऊपर त्रिशूल से वार कर रही है। इस त्रिशूल का पहला शूल बजट के आवंटन में कमी करना है। केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए मनरेगा का बजट 60 हजरी करोड़ तक सीमित कर दिया है। इसमें भी यदि पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान बकाए मजदूरी की रकम को घटा दें तो वास्तविक आवंटन 50 हजार करोड़ से भी कम है। द्रेज ने कहा कि पूरे देश में करीब 15 करोड़ मनरेगा मजदूर हैं और यह उनलोगों की एक बड़ी संख्या है, जिन्हें काम चाहिए और मजदूरी भी।
प्रो. द्रेज ने कहा कि केंद्र सरकार के त्रिशूल का दूसरा शूल एनएमएमएस ऍप है, जिसे 1 जनवरी, 2023 के बाद से अनिवार्य कर दिया गया है। इस ऍप के जरिए मनरेगा मजदूरों की ऑनलाइन हाजिरी दर्ज की जाती है। उन्होंने कहा कि आज भी देश के अनेक हिस्सों में, खासकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में कोई मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता है, वहां मनरेगा मजदूरों को केवल ऍप के नहीं चलने या फिर सर्वर डाउन होने की बात कहकर काम नहीं दिया जा रहा है।
वहीं तीसरे शूल के बारे में प्रो. द्रेज ने कहा कि आधार कार्ड के जरिए मजदूरी का भुगतान करने की विधि आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम (एबीपीएस) ही केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के ऊपर चलाए जा रहे त्रिशूल का तीसरा शूल है। यह एक ऐसी भुगतान व्यवस्था है, जिसके जरिए जटिलताएं कम होने के बजाय बढ़ती चली जा रही हैं। उनका कहना था कि अधिकांश मनरेगा मजदूर ऐसे हैं कि उनके जॉब कार्ड और बैंक खाते तक स्थानीय कर्मचारियों के पास रखे होते हैं। कइयों के बैंक खाते आधार कार्ड से लिंक नहीं हैं। ऐसे में काम करने के बावजूद मजदूरों के भुगतान को रोक दिया गया है। ज्यां द्रेज ने जोर देते हुए कहा कि मनरेगा मजदूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाना अमानवीय व आपराधिक कृत्य है।
बिहार से सामाजिक कार्यकर्ता आशीष रंजन ने कहा कि मजदूरों को मजदूरी नहीं देने के अनेक तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं। उन्होंने बिहार में एक कार्यस्थल से संबंधित रिपोर्ट दिखाते हुए बताया कि केवल 9 मजदूरों की सूचनाओं में खामी का बहाना बनाकर 49 मजदूरों की मजदूरी रोक दी गई। वहीं झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हरेंज ने बताया कि ऑनलाइन हाजिरी की प्रक्रिया का दुरूपयोग भी किया जा रहा है। एक ही कार्यस्थल की अलग-अलग तस्वीरें अपलोड कर फर्जी काम दिखाया जा रहा है।
वहीं झारखंड के लातेहार से आयीं मनरेगा मजदूर सुकमनी मुर्मू ने अपनी मातृभाषा में कहा कि वे काम मांगती हैं तो कहा जाता है कि काम नहीं है। बकाया मजदूरी भी समय पर नहीं मिलती है। अपने आंसू पोंछती हुई सुकमनी ने कहा कि– रांड़ हम कहां जाएम, का खाएम (मैं विधवा अपना घर छोड़कर कहां जाऊं और क्या खाऊं)?
राजनेताओं में सबसे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा कि ज्यां द्रेज द्वारा उठाए गए सभी सवाल वाजिब हैं और इसमें कोई शक नहीं है कि केंद्र सरकार गरीबों के लिए लाभकारी मनरेगा योजना को लागू ही नहीं करना चाहती है। इसलिए वह इसके बजट में लगातार कमी कर रही है। इसके अलावा उसने शिक्षा, स्वास्थ्य व जन वितरण प्रणाली सहित सामाजिक तमाम सुरक्षा योजनाओं के बजट में कटौती की है। उन्होंने कहा कि फिलहाल तो सत्ता पक्ष ही संसद को नहीं चलने दे रहे हैं। यदि संसद चले तो मनरेगा से जुड़े सवालों को कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ उठाएगी।
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वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि हाल ही में उन्होंने राज्यसभा में यह सवाल पूछा था कि किन-किन राज्यों में मनरेगा मजदूरों की कितनी मजदूरी का भुगतान लंबित है। इसके जवाब में सरकार द्वारा 3898 करोड़ रुपए बकाए की बात कही गई। इसमें दो हजार करोड़ रुपए से अधिक पश्चिम बंगाल में है। उन्होंने कहा कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां मनरेगा के मद में वित्तीय आवंटन नहीं किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी के बकाए का सवाल सामाजिक कार्यकर्ता अनुराधा तलवार ने भी उठाया। उन्होंने कहा कि पिछले 15-16 महीने से उनके राज्य को केंद्र सरकार पैसा नहीं दे रही है। जबकि जिन मजदूरों का पैसा बकाया है, उनमें 50 से 60 फीसदी महिलाएं हैं जो दलित, आदिवासी और पिछड़े वगों की हैं। वे इतने गरीब हैं कि हर दिन खाने के लिए काम करती हैं। उनका मजदूरी का पैसा भी रोका जा रहा है। हालांकि अनुराधा तलवार ने पश्चिम बंगाल सरकार की भी आलोचना करते हुए कहा कि यदि केंद्र के साथ राज्य को कोई समस्या है तो इसका हल उसे निकालना चाहिए। केवल हाथ पर हाथ रख बैठने से कुछ नहीं होने वाला। अनुराधा ने सीपीआई, सीपीआई एमएल व कांग्रेस पार्टी के नेताओं से भी सवाल किया कि वे पश्चिम बंगाल के मनरेगा मजदूरों के बारे में चुप क्यों हैं।
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कांग्रेसी सांसद उत्तम कुमार रेड्डी ने इस मौके पर कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार के इरादे नेक नहीं हैं। मनरेगा के मजदूरों की मजदूरी के भुगतान की प्रक्रिया को जटिल बनाकर 6-7 महीने की देरी की जा रही है। सरकार कहती है कि वह इंटरनेट के जरिए भुगतान को सरल व सहज बना रही है, जबकि अभी भी देश के अनेक इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है और मजदूरों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं।
संवाद के क्रम में कांग्रेस के एससी-एसटी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व नौकरशाह के. राजू ने यह सुझाव दिया कि गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री एक दिन मिलकर दिल्ली में यह सवाल एक साथ उठाएं कि उनके राज्य के साथ किस तरह का भेदभाव किया जा रहा है। ऐसा करने से यह मुमकिन है कि केंद्र सरकार पर दबाव बने और मनरेगा जो कि गरीबों के बेहद महत्वपूर्ण योजना है, उसे सही तरीके से लागू किया जा सके।
केरल से सीपीएम के सांसद अब्दुल रहीम ने कहा कि पहले से ही बेरोजगारी खतरे की सीमा को पार कर गया है। बढ़ती महंगाई के कारण लोगों का जीवनयापन रोज-ब-रोज मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में नरेगा जैसी लोक कल्याण्कारी योजना के मद में कटौती निंदनीय है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा सरकार देश में बेरोजगारी का विस्तार कर रही है।
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डीएमके के सांसद डॉ. सेंथिल कुमार ने भी केंद्र सरकार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जबकि शहरी क्षेत्रों में भी रोजगार की संभावनाएं कम हो रही हैं, भाजपा सरकार मनरेगा को अनपुयोगी बताकर इस योजना का अवमूल्यन कर रही है।
वहीं कांग्रेसी सांसद कुमार केतकर ने कहा कि केंद्र केवल नरेगा को महत्वहीन बनाने की साजिश कर लोगों के ऊपर हमले ही नहीं कर रहा है, बल्कि राज्यों के वित्त पर भी प्रहार कर रहा है। हमें विकेंद्रित तरीके से सीधे सड़कों पर लोगों के साथ उतरने की जरूरत है। इसमें राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग शामिल हों। तभी हम मनरेगा को बचा सकेंगे।
सीपीआई सांसद बिनॉय विस्वान ने कहा कि वामपंथी दलों ने यूपीए-1 के दौरान मनरेगा को पारित कराने में अहम भूमिका का निर्वहन किया था। उन्होंने यह भी कहा कि तमाम वामपंथी दल इस महत्वपूर्ण योजना को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मनरेगा का मामला अभी लंबित है। जल्द ही इसे सूचीबद्ध कराने की वे कोशिश करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट से यह अनुरोध करेंगे कि इस योजना को लेकर वह सरकार को निर्देशित करे कि ऑनलाइन हाजिरी, आधार कार्ड पर आधारित मजदूरी का भुगतान आदि जटिलताएं दूर करे। ये जटिलताएं मनरेगा मजदूरों के साथ अन्याय है। और यदि कहीं किसी जगह भ्रष्टाचार होता है तो उसके लिए मनरेगा मजदूर कैसे दोषी माने जाएंगे, जिन्होंने काम किया। उन्होंने कहा कि मनरेगा पर हमला लोगों के मौलिक अधिकार पर हमला है।
संवाद कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने किया।
(संपादन : अनिल)
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