आदिवासी न्यूज राऊंड-अप
गत 19 अप्रैल, 2023 को महाराष्ट्र के पालघर जिले के धानिवरी गांव में आदिवासियों को पुलिस ने घर से बाहर कर दिया। इसके लिए पुलिस ने उनके ऊपर बल प्रयोग किया। इस क्रम में पुलिस ने महिलाओं और बुजुर्गों के साथ भी मारपीट की। बताया जा रहा है कि यह सब महाराष्ट्र पुलिस ने बड़ौदा-मुंबई एक्स्प्रेस हाइवे के लिए जमीन अधिग्रहण के नाम पर किया। इस संबंध में एक वीडियो गत दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में आदिवासियों पर पुलिस के बल प्रयोग करते दिख रही है।
इस वीडियो के वायरल होने के बाद महाराष्ट्र समेत सीमावर्ती राज्यों यथा मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के आदिवासियों में आक्रोश फैल गया। पालघर जिले के चारों आदिवासी विधायक – सुनील भुसारा (विक्रमगढ़), राजेश पाटिल (बोइसर), विनोद निकोल (दहाणू) और श्रीनिवास वनगा (पालघर) – ने अगले दिन धानिवरी गांव का दौरा किया और विरोध स्वरूप प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर विधायक सुनील भुसारा ने आरोप लगाया कि जिले के विभिन्न परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है और इसके सबसे अधिक शिकार आदिवासी हुए हैं। वहीं विनोद निकोल ने कहा कि जब तक मुआवजा नहीं दिया जाएगा तब तक किसी भी काम को आगे नहीं बढ़ने दिया जाएगा।

घटना के विरोध में जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन के संरक्षक एवं मध्य प्रदेश के धार जिले के मनावर से विधायक डॉ. हिरालाल अलावा ने कहा कि विकास के नाम पर बेबस आदिवासी समाज अपना घर, पूर्वजों की जमीन, सब कुछ छोड़ने को मजबूर हो रहा है। आदिवासियों का जीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। राजस्थान के डूंगरपुर जिले के आदिवासी कार्यकर्ता कांति रोत ने कहा कि आदिवासियों के विस्थापन से संविधान के पांचवीं अनुसूची से अधिसूचित क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में बाहरी लोगों और प्राइवेट कंपनियों का दबदबा बन रहा है, जबकि आदिवासियों जनसंख्या घट रही है।
बहरहाल, इस मामले में महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग ने भी संज्ञान लिया है। पुलिस द्वारा आदिवासी महिलाओं की बेरहमी से पिटाई का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने पर आयोग की अध्यक्ष रूपाली चाकणकर ने पालघर के जिला अधिकारी को घटना की जांच कर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं और कहा कि परियोजना से प्रभावित लोगों को विस्थापित करने से पहले प्रशासन को उनके साथ समन्वय कर उनका समुचित पुनर्वास करे।
उड़ीसा : चूना-पत्थर खदान के विरोध में आदिवासी
उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले के कुत्रा प्रखंड में आदिवासी ग्राम पंचायत रंगियाडिपा के ग्रामीण इन दिनों आक्रोशित हैं। उनके आक्रोश की वजह डालमिया सीमेंट कंपनी (डीसीबीएल) के लांजीबेरना चूना-पत्थर खदान का विस्तारीकरण है। इसके विरोध ग्रामीण आदिवासियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तथा उड़ीसा के राज्यपाल गणेशी लाल को पत्र लिखकर चूना-पत्थर खदान निरस्त करने की मांग की है।
ध्यातव्य है कि डालमिया सीमेंट कंपनी के लांजीबेरना चूना पत्थर खदान के लिए कुत्रा प्रखंड और राजगांगपुर प्रखंड के पांच ग्राम पंचायतों की भूमि पिछले साल अधिग्रहित की गई थी, जिसका आदिवासियों ने काफी विरोध किया था। अब फिर खदान का विस्तारीकरण हो रहा है, जिससे रंगियाडिपा के ग्रामीण खदान के विरोध में आ गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि खदान के कारण उनके क्षेत्र में पर्यावरण और खेती प्रभावित हुई है। भूगर्भ जलस्तर गिरता जा रहा है, उपजाऊ भूमि बंजर बनती जा रही है। है। इसके अलावा चूना पत्थर खनन और सीमेंट कंपनियों के कारण अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण सर्दियों के मौसम में खेती छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसका असर यह भी है कि लोग टीबी के मरीज हो रहे हैं।
इस संबंध में पांचवीं अनुसूची संघ, रंगियाडिपा ग्राम पंचायत के सदस्य अनिल एक्का का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 244(1) पांचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित हमारा गांव अनुसूचित क्षेत्र है। यहां ग्रामसभा के अनुमति के बगैर कोई कंपनी प्रोजेक्ट या खनन कार्य नहीं हो सकता है और ना ही किसी बाहरी को बसाया जा सकता है। लेकिन डालमिया सीमेंट कंपनी के लिए काम करने वाले भाड़े के लोगों से हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण करवाकर जबरन बसाने का प्रक्रिया राज्य शासन के जरिए किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ : अनुसूचित क्षेत्र में कलेक्टर की अनुमति पर भी नहीं बिकेगी आदिवासी की जमीन
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति की जमीन के खरीद-बिक्री के संबंध में गत 18 अप्रैल, 2023 को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया है कि कलेक्टर के आदेश के बाद भी अब अनुसूचित जनजाति की भूमि गैर-आदिवासी को बेची नहीं जा सकती। यह फैसला दंतेवाड़ा जिले के बचेली में गैर-आदिवासी वर्ग के कुछ लोगों द्वारा कलेक्टर से अनुमति प्राप्त कर आदिवासी वर्ग की भूमि खरीदने के मामले में आया।
ज्ञात हो कि बस्तर के कमिश्नर ने प्रावधान नहीं होने के कारण कलेक्टर द्वारा आदिवासी की जमीन की बिक्री की दी गई अनुमति को निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ गैर-आदिवासी खरीदारों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता के अनुसार नगरपालिका क्षेत्र में कलेक्टर से अनुमति प्राप्त कर अनुसूचित जनजाति वर्ग की जमीन गैर-आदिवासी भी खरीद सकते हैं।
इस मामले में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 (6),(1) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में कलेक्टर से अनुमति प्राप्त होने के बाद भी अनुसूचित जनजाति की जमीन गैर-अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति नहीं खरीद सकता है। कोर्ट ने खरीदी बिक्री के व्यवहार को शून्य घोषित कर दिया।
(संपादन : नवल/अनिल)
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