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आदिवासी युवतियों का गर्भ जांच करवा रही शिवराज सिंह चौहान सरकार

स्वास्थ्य विभाग भी यह सफाई दे रहा है कि शादी से पहले अनुवांशिक रूप से रक्त की कमी (सिकल-सेल) व रक्त की कमी (एनीमिया) की जांच कराई गई है। जानकार सवाल उठाते हैं कि मूत्र (यूरिन) का इन जांचों से क्या वास्ता है? जबकि इन जांचों के लिए चिकित्सक मूत्र के बदले खून नमूने के तौर पर लेते हैं। पढ़ें, मनीष भट्ट मनु की खबर

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार और भाजपा का आदिवासी प्रेम क्या महज सत्ता हथियाकर रखने की एक चाल है? यह सवाल इसलिए कि राष्ट्र्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के विचारों पर आधारित तथाकथित कल्याणकारी योजनाओं की आड़ में आदिवासी समाज में हिंदुवादी संस्कृति को लादने का प्रयास किया जा रहा है। यह आशंका और भी बलवती तब हो गई जब गत 22 अप्रैल को आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में आदिवासी लड़कियों के गर्भ जांच को अनिवार्य किया गया और कथित तौर पर गर्भवती महिलाओं को शादी करने से रोक दिया गया। 

गौरतलब है कि कुछ आदिवासी समुदायों में शादी के बिना ही साथ रहने और बाद में शादी को सहज स्वीकृति प्राप्त है। याद दिला दें कि शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में आदिवास समाज की महिलाओं के अपमान का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले 2013 में भी अधिकारियों ने आदिवासी युवतियों के इसी तरह के टेस्ट कराए थे। यह टेस्ट डिंडोरी और बैतूल – दोनों ही आदिवासी बहुल – जिले में कराए गए थे। तब यह मामला देश की संसद तक पहुंचा था। राज्य सरकार ने तब दंडाधिकारी स्तरीय जांच के आदेश भी दिए थे। लेकिन उस जांच का क्या हुआ, आज तक किसी को खबर नहीं है।

पहले स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा– ऊपर से मिले थे आदेश

बहरहाल, डिंडौरी जिला की बजाग तहसील अंतर्गत गाड़ासरई में आयोजित सामूहिक विवाह में 219 दुल्हनों का गर्भ जांच कराए जाने की बात प्रारंभ में चिकित्सकों द्वारा स्वीकार भी की गई थी। स्वास्थ्य विभाग के स्थानीय अधिकारियों का कहना था कि इसके लिए उन्हें ऊपर से आदेश मिले थे। वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के डिंडौरी जिला अध्यक्ष अवधराज बिलैया भी मीडिया के सामने आ इस टेस्ट को जायज करार देने का प्रयास करते नजर आए थे। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि कई बार योजना का लाभ लेने के लिए लोग दोबारा शादी कर लेते है। ऐसे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए लड़कियों का शारीरिक परीक्षण किया जाता है। यह परीक्षण डाक्टरों की टीम करती है। 

सामूहिक विवाह समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

हालांकि अब जिला अध्यक्ष खामोश हैं और स्वास्थ्य विभाग भी यह सफाई दे रहा है कि शादी से पहले अनुवांशिक रूप से रक्त की कमी (सिकल-सेल) व रक्त की कमी (एनीमिया) की जांच कराई गई है। 

खून के बदले मूत्र की जांच

वहीं जानकार सवाल उठाते हैं कि मूत्र (यूरिन) का इन जांचों से क्या वास्ता है? जबकि इन जांचों के लिए चिकित्सक मूत्र के बदले खून नमूने के तौर पर लेते हैं। 

डिंडौरी जिले में मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना में लड़कियों का गर्भ जांच कराए जाने के बाद इलाके में तनाव व्याप्त है। अब युवतियां सरकार के खिलाफ खुलकर बोल रही हैं। ऐसी ही एक युवती ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “वह बीते कुछ महीने से अपने प्रेमी के साथ रह रही थी। इस दौरान शारीरिक संबंध भी बने और यह गर्भवती हो गई, लेकिन शादी नहीं हुई। विधिवेत्ताओं के अनुसार कानून में भी इसका जिक्र है कि जब तक बालिग महिला को आपत्ति ना हो, तब तक इसे गैरकानूनी नहीं माना जाता।” 

दुल्हनों ने किया विरोध

युवती ने बताया कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के चलते शादी नहीं कर पा रहे थे। इसी दौरान महिला सरपंच ने इन लोगों को मुख्यमंत्री विवाह योजना की जानकारी दी। इसके बाद यह युगल अपने परिजनों के साथ सामूहिक विवाह योजना के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचा था। लेकिन यहां प्रशासन ने इस लड़की का गर्भ जांच करवाया, जिसका परिणाम सकारात्मक आया। इसके बाद इस युगल तथा कई अन्य का नाम भी लाभार्थियों की सूची से हटा दिया गया। 

इस लड़की ने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए बताया कि उसके साथ जो हुआ, वह उसका अपमान है। हालांकि वह अकेली इसका उदाहरण नहीं है, बल्कि एक ही गांव के 6 जोड़ों के साथ ऐसा हुआ और उन्हें अपात्र घोषित कर दिया गया। इनका आरोप है कि इनमें से किसी को भी मेडिकल टेस्ट के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। 

जनप्रतिनिधियों ने जताया विरोध

बछरगांव ग्राम पंचायत की सरपंच मेदनी मरावी ने भी कार्यक्रम में लड़कियों के प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने के खिलाफ विरोध किया। वे आरोप लगाती हैं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समस्त महिलाओं का अपमान किया है। उन्होंने कहा कि यदि पहले से ऐसा पता होता तो वे आवेदन नहीं करवातीं। 

भोपाल के अधिवक्ता रामेश्वर पटेल के मुताबिक यदि यह आरोप सच है तो प्रशासन ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है। इस अनुच्छेद के तहत हर आदमी को निजता का अधिकार है और बिना उसकी सहमति के उसका स्वास्थ्य परीक्षण नहीं करवाया जा सकता।

गोंड समाज से ताल्लुक रखने वाले और छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा से कांग्रेस के पूर्व विधायक जतन उईके इस पूरे प्रकरण में सरकार पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि जब शहरी इलाकों में तथाकथित सभ्य समाज तलाक लेकर पुनः शादी करता है और कई बार शादी करता है तो इसे गलत नहीं माना जाता। इसे एक प्रगतिशील सोच के तहत देखा जाता है। यही सोच अब शहरों में सहजीवन (लिव इन रिलेशनशिप) पर भी समाज को नाराज नहीं होने देती। मगर जब आदिवासी समाज की बात आती है – जहां आज भी तथाकथित सभ्य समाज की तुलना में महिलाओं को अधिक अधिकार प्राप्त हैं – तो सत्ता और प्रशासन की सोच महिला विरोधी कैसे हो जाती है। 

मंडला से कांग्रेस के पूर्व विधायक संजीव उईके प्रश्न करते हैं कि क्या एक गर्भवती लड़की अपने प्रेमी से शादी नहीं कर सकती? उनके अनुसार आदिवासियों के लगभग सभी समुदायों में बहुत ही खुलापन है। लड़की या महिला को लांक्षित करने या प्रताड़ित करने का रिवाज आदिम समाज में नहीं है। उनकी एक अलग जीवनशैली है। राष्ट्र्रीय गोंडवाना पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आनंद श्याम आरोप लगाते हैं कि जहां एक ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुनावी साल में जगह-जगह लाडली बहनों से संवाद कर रहे हैं, वहीं सार्वजनिक तौर पर अपमान की शिकार हुई दो सौ से ज्यादा आदिवासी महिलाओं के मुद्दे पर सब मौन हैं। 

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रवक्ता राधेश्याम काकोडिया आरोप लगाते है कि संघ के दबाव में शिवराज सिंह चौहान सरकार और उसके अफसर आदिवासी समाज की रवायतों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। अक्षय तृतीया के दिन सामूहिक विवाह सम्मेलन – जिसका आदिवासी समाज से कोई संबंध नहीं है – आयोजित किया जाना दरअसल आदिवासियों को हिंदू धर्म की ओर मोड़ने का षड्यंत्र है। जबकि सब जानते हैं कि आदिवासी हिंदू पर्सनल लॉ के दायरे में नहीं आते हैं। 

जतन उईके कहते हैं कि आदिवासी समाज के अपने नियम व मान्यताएं हैं। महिलाओं को लेकर अन्य समाजों जैसी धारणा और कट्टरता उनमें नहीं है। आनंद श्याम पूछते हैं कि जब आदिवासी समाज को ही लड़का और लड़की के एक साथ एक घर में रहने पर कोई आपत्ति नहीं है तो फिर सरकार कौन होती है। क्या कोई गर्भवती युवती अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती? जब समाज और लड़के को कोई आपत्ति नहीं तो शिवराज सिंह चौहान की सरकार कौन होती है आपत्ति करनेवाली।

विवादों से रहा है मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का पुराना नाता

बहरहाल, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का विवादों से पुराना नाता रहा है। आलोचक अक्सर ही इस योजना पर सवाल उठाते हुए भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं। कमाल यह है कि खुद शिवराज सिंह चौहान भी इसे गाहे-बगाहे स्वीकारते रहे हैं। मुख्यमंत्री के गृह जिले विदिशा के सिरोंज से विधायक उमाकांत शर्मा द्वारा राज्य विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के बाद आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने विदिशा जिले की सिरोंज तहसील में लॉकडाउन में हुए विवाह सहायता योजना में 30 करोड़ के घोटाले का भंडाफोड़ किया था। सिरोंज ब्लॉक के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी के खिलाफ धोखाधड़ी, गबन, अवैध वसूली सहित भ्रष्टाचार अधिनियम का मामला दर्ज किया गया और उन्हें सस्पेंड भी किया गया था। मगर आज तक इस बाबत कोई भी प्रभावी कार्यवाही नही किए जाने के आरोप हैं। 

वहीं, 8 मार्च, 2022 को विधानसभा में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, कन्या विवाह, निकाह, दिव्यांग और कल्याणी योजना के तहत 2020-21 में 23,107 और 2021-22 में 759 शादियां हुईं और 150 करोड़ रुपए से अधिक वितरित किए गए। रिपोर्ट में ही आगे बताया गया था कि पिछले दो वर्षों में केवल कल्याणी और दिव्यांग विवाह ही हुए हैं, क्योंकि कन्या विवाह और निकाह के तहत सामूहिक विवाह प्रतिबंधित थे। बजट सत्र 2022 के दौरान ही पूर्व वित्त मंत्री और वर्तमान कांग्रेस विधायक तरुण भनोत द्वारा लॉकडाउन में हुई शादियों पर एक सवाल पूछा गया था, जिसका जवाब देते हुए राज्य सरकार ने सदन को बताया था कि कोरोना काल में अकेले जबलपुर जिले में ही 2543 से अधिक शादियां हुईं। इन शादियों में लाभार्थियों को करीब 13 करोड़ रुपए दिए गए थे।

क्या है सरकारी प्रावधान?

राज्य सरकार की योजनाओं की बात करें तो चार तरह की विवाह सहायता योजनाएं संचालित हैं। ये हैं– सामाजिक न्याय विभाग के अंतर्गत मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, मुस्लिमों के लिए मुख्यमंत्री निकाह योजना एवं विधवाओं के लिए मुख्यमंत्री कल्याणी विवाह योजना एवं शारीरिक रूप से विकलांग जोड़ों के लिए दिव्यांग विवाह। कन्या विवाह, निकाह और कन्यादान में, सरकार 51,000 रुपए की वित्तीय सहायता देती है, जबकि विधवाओं के लिए कल्याणी योजना में यह राशि 2 लाख रुपए निर्धारित है। वहीं दिव्यांगों में, वर-वधू दोनों के विकलांग होने पर एक लाख रुपए व गैर-विकलांग पुरुष द्वारा विकलांग महिला के साथ विवाह करने पर दो लाख रुपए दिये जाते हैं। 

(संपादन : राजन/नवल)


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लेखक के बारे में

मनीष भट्ट मनु

घुमक्कड़ पत्रकार के रूप में भोपाल निवासी मनीष भट्ट मनु हिंदी दैनिक ‘देशबंधु’ से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं। आदिवासी विषयों पर इनके आलेख व रपटें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।

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