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लाहौरी राम बाली, जिन्होंने पंजाब में आंबेडकर की विरासत को संजोया

साल 1956 में 6 दिसंबर को डॉ. आंबेडकर की मृत्यु के बाद एल.आर. बाली ने अपनी नौकरी छोड़ दी और फिर पलट कर उसकी ओर नहीं देखा। उन्होंने एक अन्य वरिष्ठ आंबेडकरवादी चरण दास निधारक के साथ मिलकर शेडयूल्ड कास्ट्स फेडरेशन को पुनर्जीवित किया और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया की पंजाब इकाई की स्थापना की। बता रहे हैं प्रोफेसर रौनकी राम

लाहौरी राम बाली (20 जुलाई, 1930 – 6 जुलाई, 2023)

6 जुलाई 2023 को आंबेडकरवादी और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लाहौरी राम बाली का निधन हो गया। वे पंजाब में एससी समुदायों में खासे लोकप्रिय थे, जहां राज्य की आबादी के अनुपात में सबसे अधिक यानी राज्य की कुल आबादी के करीब 30 फीसदी दलित हैं। देश के अन्य भागों और विदेश में रहने वाले अनुसूचित जाति वर्ग के लोग भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे। 

नवांशहर में प्रेमी देवी और भगवान दास के घर 20 जुलाई, 1930 को जन्मे बाली ने राजनीतिक मसलों में रुचि अपने दादा चौधरी इंदर राम से विरासत में पाई थी। चौधरी इंदर राम, ऐतिहासिक आदि धर्म के संस्थापक बाबू मंगूराम मुगोवालिया के निकट सहयोगी थे। सन् 1920 के दशक के उत्तरार्द्ध में इस आंदोलन ने पंजाब के निम्न वर्ग की जातियों में सामाजिक और राजनीतिक चेतना जागृत करने में महती भूमिका निभाई थी।

बााली को अपने दादा के कागज़ातों के अस्त-व्यस्त ढेर में आदि धर्म मंडल की रपट हाथ लगी। इस दस्तावेज में मुगोवाल, होशियारपुर में 11-12 जून, 1926 को आंदोलन की शुरुआत के अवसर पर पारित प्रस्ताव प्रकाशित थे। सन् 1970 के दशक की शुरुआत में बाली ने यह दस्तावेज प्रतिष्ठित अमरीकी अध्येता और पंजाब में दलित अध्ययन के प्रणेता मार्क जुएर्गेन्स्मेयेर को उस समय सौंप दिया, जब वे पंजाब में दलित चेतना पर अपने डाक्टोरल शोध के सिलसिले में उनसे मिले थे। आदि धर्म मंडल की यह रपट आगे चलकर मार्क की लब्धप्रतिष्ठित पुस्तक ‘रिलिजन एज़ सोशल विज़न: द मूवमेंट अगेंस्ट अनटचेबिलिटी इन ट्वेंटिएथ-सेंचुरी पंजाब’ (यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस, बर्कले, 1982) का आधार बनी। 

आंबेडकर के मिशन में बाली की रुचि उनके चाचा हाकिम गुरुचरण दास ने पैदा की। आंबेडकर के ज़बरदस्त प्रशंसक गुरुचरण दास, आदि धर्म मंडल की आर्थिक रीढ़ सेठ किशन दास के काफी नज़दीक थे। सेठ किशन दास पंजाब शेडयूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के संस्थापक अध्यक्ष थे। सन् 1942 में स्थापित फेडरेशन, पंजाब का पहला आंबेडकरवादी राजनीतिक दल था।  

सन् 2008 में एल.आर. बाली लाहौर, पाकिस्तान में

मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद 1947 में काम के तलाश में बाली दिल्ली आ गए। वहां 8 दिसंबर, 1948 को उन्हें सरकारी गवर्नमेंट प्रेस में ‘कॉपी होल्डर’ का काम मिल गया। दिल्ली में उन्हें आंबेडकर से उनके निवास बंगला नंबर 1, हार्डिंग रोड (अब तिलक पथ) पर मिलने का मौका मिला। बाली रोज़ इसी सड़क से होकर अपने ऑफिस जाया करते थे। बाली ने 1951 में आंबेडकर द्वारा नई दिल्ली की रानी झांसी रोड पर आंबेडकर भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में भाग लिया। बाली के शब्दों में, “हालांकि मुझे डॉ. आंबेडकर से मिलने का मौका केवल तीन बार मिला, लेकिन मैंने उन्हें कई बार देखा और सुना। लेकिन 30 सितंबर, 1951 का दिन मेरे लिए ऐतिहासिक था।” उस दिन बाली ने डॉ. आंबेडकर से वायदा किया कि वे उनके मिशन को पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देंगे। ऐसा वायदा करने के लिए वह समय कतई उपयुक्त नहीं था। पंजाब में आंबेडकर का मिशन मृतप्राय था। शेडयूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के कई नेता कांग्रेस में शामिल हो गए थे। राज्य में फेडरेशन की शाखा के संस्थापक सेठ किशन दास कलकत्ता में बस गए थे और सक्रिय राजनीति से दूर हो गए थे।   

एक अन्य जाने-माने आंबेडकरवादी के.सी. सुलेख, जो फेडरेशन की पंजाब इकाई के महासचिव थे और जिन्हें केवल एक महीने बाद, 27 अक्टूबर, 1951 को, आंबेडकर की जालंधर यात्रा के दौरान शहर के रामदासपुरा (बूटा मंडी) में आयोजित उनके कार्यक्रम का संचालन करने का सम्मान हासिल हुआ था, सन् 1952 से अपनी नौकरी में व्यस्त हो गए और मिशन को पर्याप्त समय देना उनके लिए संभव न रहा। 

बाली ने डॉ. आंबेडकर से किया अपना वायदा निभाया। साल 1956 में 6 दिसंबर को डॉ. आंबेडकर की मृत्यु के बाद एल.आर. बाली ने अपनी नौकरी छोड़ दी और फिर पलट कर उसकी ओर नहीं देखा। उन्होंने एक अन्य वरिष्ठ आंबेडकरवादी चरण दास निधारक के साथ मिलकर शेडयूल्ड कास्ट्स फेडरेशन को पुनर्जीवित किया और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया की पंजाब इकाई की स्थापना की। जालंधर में जिस स्थान पर डॉ. आंबेडकर ने 27 अक्टूबर, 1951 को अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था, बाली ने वहां आंबेडकर भवन बनवाया। उन्होंने आंबेडकर भवन ट्रस्ट, आंबेडकर मिशन सोसाइटी, आल इंडिया सैनिक दल और बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की पंजाब इकाईयों की स्थापना की और जीवन भर इन सभी का नेतृत्व किया। सन् 1957 के दूसरे आम चुनाव से पहले बाली ने आंबेडकर के बेटे यशवंत आंबेडकर को पूरे पंजाब का तूफानी दौरा करवाया और 1962 के आम चुनाव में उन्हें होशियारपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए राजी किया। बाली ने स्वयं भी 1957 में कांग्रेस उम्मीदवार और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्वर्ण सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। धम्म का प्रचार-प्रसार करने और आंबेडकरवादी मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने 1963 में बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया।  

सन् 2008 में लाहौर म्यूजियम में एल.आर. बाली (बाएं) और इस आलेख के लेखक

उसके अगले साल बाली ने पाकिस्तान में बस गए पंजाब के रहवासियों की ज़मीनों को राज्य के भूमिहीन दलितों में बांटने के लिए दो बड़े आंदोलन चलाए। इन दोनों आंदोलनों को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के झंडे तले और चरण दास निधारक के साथ मिलकर 15 जून और 6 दिसंबर, 1964 को शुरू किया गया। इस आंदोलन के दौरान बाली के बड़े भाई बिहारी लाल खार ने फगवाड़ा के नज़दीक चक हाकिम रविदास मंदिर से दिल्ली तक साइकिल यात्रा पर निकले 101 कार्यकर्ताओं की साइकिलों की मुफ्त में मरम्मत की। 6 दिसंबर, 1964 को शुरू हुए इस आंदोलन के दूसरे चरण के पहले बाली सहित आरपीआई के अनेक पुरुष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन आरपीआई की महिला नेताओं ने आंदोलन को थमने नहीं दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री की 26 दिसंबर, 1964 को जालंधर यात्रा के दौरान इन महिलाओं ने उनके सामने ज़बरदस्त प्रदर्शन किया। इसके बाद कई महिलाओं को भी गिरफ्तार किया गया। इनमें बाली की पत्नी बीबी अजीत बाली भी शामिल थीं, जिन्हें उनके दो छोटे बच्चों राहुल और सुजाता के साथ जेल भेज दिया गया।    

बाली के कई महत्वपूर्ण योगदानों में से सबसे अहम था– सन् 1958 में उर्दू-पंजाबी मासिक ‘भीम पत्रिका’ की शुरुआत। इसका पहला अंक मई, 1959 में निकला। सन् 1965 से यह हिंदी में प्रकाशित हो रही है, हालांकि उसमें कुछ चुनिंदा लेख अंग्रेजी में भी होते हैं। पत्रिका के अलावा, भीम पत्रिका पब्लिकेशंस ने महाराष्ट्र सरकार से बहुत पहले आंबेडकर के लेखन और भाषणों का प्रकाशन शुरू किया। इसने आंबेडकरवादी साहित्य पर कई पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी किया, जिनमें से कई स्वयं बाली ने लिखी थीं। आंबेडकर भवन और भीम पत्रिका पब्लिकेशंस का बाली ने सालों तक मेहनत और लगन से संचालन किया। ये दोनों संस्थाएं जालंधर के अकादमिक जीवन में आज भी अहम स्थान रखते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से और विदेशों से भी अध्येता, सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता, शोधार्थी और पत्रकार यहां आते हैं।  

बाली ने विपुल लेखन किया और वे बहुत अच्छे वक्ता थे। वे पंजाबी, उर्दू, हिंदी, फारसी और अंग्रेजी भाषाओं में धाराप्रवाह भाषण दे सकते थे। वे लाग-लपेट करने वालों में से नहीं थे और अपनी मुखरता और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते थे। यही कारण था कि उनके और उनकी लिखी पुस्तिकाओं के विरुद्ध कई मामले दर्ज करवाए गए और ‘रंगीला गांधी’ सहित कई पर प्रतिबंध भी लगाया गया। मुझे कई बार उनसे मिलने और बातचीत करने का अवसर मिला। हम दोनों ने एक साथ लाहौर में जून, 2008 में आंबेडकर पर आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भाग लिया था और उस दौरान मुझे एक सप्ताह तक उनका सान्निध्य मिला। उनका व्यवहार मित्रवत था, लेकिन वे कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे और आंबेडकर के मिशन के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। उन्होंने अपने तेजस्वी विचारों और व्याख्याओं से लाखों लोगों को प्रेरित किया और आगे भी करते रहेंगे। उन्होंने 93 वर्ष का भरपूर और फलदायी जीवन जिया।   

(मूल अंग्रेजी से अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

रौनकी राम

रौनकी राम पंजाब विश्वविद्यालय,चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके द्वारा रचित और संपादित पुस्तकों में ‘दलित पहचान, मुक्ति, अतेय शक्तिकरण’, (दलित आइडेंटिटी, इमॅनिशिपेशन एंड ऍमपॉवरमेंट, पटियाला, पंजाब विश्वविद्यालय पब्लिकेशन ब्यूरो, 2012), ‘दलित चेतना : सरोत ते साररूप’ (दलित कॉन्सशनेस : सोर्सेए एंड फॉर्म; चंडीगढ़, लोकगीत प्रकाशन, 2010) और ‘ग्लोबलाइजेशन एंड द पॉलिटिक्स ऑफ आइडेंटिटी इन इंडिया’, दिल्ली, पियर्सन लॉंगमैन, 2008, (भूपिंदर बरार और आशुतोष कुमार के साथ सह संपादन) शामिल हैं।

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