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‘सबको पता चलना चाहिए कि हमारे साथ क्या हुआ’

मई, 2023 में दो अलग-अलग घटनाओं में कुकी जनजाति की महिलाओं पर गुंडों के गिरोह ने हमला किया। हमलावरों का कहना था कि वे उनके समुदाय के खिलाफ हिंसा का बदला ले रहे हैं। पढ़ें, मणिपुर की कुकी जनजाति की उत्पीड़ित महिलाओं की जुबानी कि उनके साथ किस तरह की हैवानियत को अंजाम दिया गया

तीन कुकी महिलाओं की दिल दहलाने वाली आपबीती

कुकी जनजाति की महिलाओं को भीड़ द्वारा नंगा करके घुमाने का वीडियो वायरल होने से मणिपुर में जारी गृहयुद्ध पर पूरे देश का ध्यान गया है। इस वीडियो के सामने आने के कई दिन पहले ‘स्क्रॉल’ ने मणिपुर जाकर वहां ऐसी कुकी महिलाओं से बात की, जिन्हें भीड़ के हाथों भयावह हिंसा का सामना करना पड़ा। इनमें वह महिला भी शामिल थी, जिसके साथ अत्याचार का वीडियो बनाया गया। दो मामलों में पीड़ितों ने बताया कि भीड़ में मैतेई महिलाएं भी शामिल थीं, जो पुरुषों को उकसा रही थीं।   

हम सब शर्मसार -1

पीड़िता : 19 वर्षीया कुकी जनजाति की युवती

वर्तमान निवास : राहत शिविर, जिला कांगपोकपी, मणिपुर 

घटना दिनांक व स्थान : 15 मई, इंफाल 

गत 15 मई को जब इंफाल की न्यू चेक्कों कॉलोनी में रहने वाली 19 साल की युवती एटीएम से पैसे निकालने के लिए अपने घर से निकली, तब वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उसके साथ क्या होने वाला है। अगले कुछ घंटों में उसे एक गिरोह ने अगवा किया, जबरदस्ती एक कार में धकेला और इंफाल में तीन अलग-अलग स्थानों पर उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया। यह तो उसकी किस्मत थी कि उसे उनके चंगुल से निकलने का मौका मिल गया।    

घटना के दो महीने बाद भी कांगपोकपी जिले में एक राहत शिविर में रह रही पीड़िता की रातें आंखों में कटती हैं। धीमी और कमज़ोर आवाज़ में वह बताती है, “कभी-कभी नींद से जागते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगती हूं … मुझे बार-बार याद आता है कि उन्होंने मेरे साथ क्या किया था। मैं उसके बारे में ही सोचती रहती हूं।” 

एक प्रशिक्षण संस्थान के क्लासरूम, जिसे विस्थापित कुकी लोगों के लिए राहत शिविर में बदल दिया गया है, में इस महिला ने करीब एक घंटे तक अपनी दिल दहलाने वाली आपबीती सुनाई।

3 मई, 2023 को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच टकराव शुरू हुआ। इसके अगले दिन 4 मई को पीड़िता के माता-पिता और भाई-बहनों ने सैकड़ों दूसरे लोगों के साथ इंफाल छोड़ दिया। किसी कारणवश, 19 वर्षीया पीड़िता उनके साथ नहीं जा सकी।

जिस समय हिंसा शुरू हुई, उस समय वह अपनी एक दोस्त, जिसके पति मुसलमान है, के घर पर थी। 

“तनाव बहुत था। मैं वहां नहीं पहुंच सकती थी, जहां मेरा परिवार था। इसलिए मैंने एक पांगल इलाके में शरण ली। मैतेई पांगल इंफाल घाटी के वे निवासी हैं, जो इस्लाम धर्मावलंबी हैं। मणिपुर में चल रही हिंसा में वे शामिल नहीं हैं और इसलिए दोनों पक्षों के हमलावर सामान्यतः उन्हें बख़्श देते हैं।  

कई दिनों तक पीड़िता मुस्लिम परिवार के घर से बाहर ही नहीं निकली। वह नहीं चाहती थी कि उसे कोई देख ले। 

करीब दस दिन बाद, हिंसा का पहला दौर समाप्त हुआ। लेकिन इंफाल में तब भी तनाव था। उसके माता-पिता कांगपोकपी जिले के एक राहत शिविर में थे और उन्होंने उसे सलाह दी कि उसे इंफाल छोड़ देना चाहिए। माता-पिता ने उसके खाते में कुछ पैसे भेज दिए। तय यह हुआ कि एक मुसलमान चालक उसे कांगपोकपी तक छोड़ देगा। 

15 मई को दोपहर बाद करीब चार बजे, पीड़िता अपनी मित्र, जिसके घर में वह रह रही थी, के साथ अपनी यात्रा के खर्च के लिए पैसे निकालने घर से निकली। वे एटीएम तक पहुंच पातीं, उसके पहले ही एक सफ़ेद रंग की बोलेरो और बैंगनी रंग की स्विफ्ट कार से कुछ लोग उतरे और उन्हें घेर कर उनसे कहा कि वे अपने आधार कार्ड दिखाएं। 

उन्होंने जवाब दिया कि आधार कार्ड उनके पास नहीं हैं। यह सुनते ही उन लोगों ने पहले पीड़िता की मित्र और उसके बाद पीड़िता की पिटाई करनी शुरू कर दी। उन लोगों ने पीड़िता की मित्र को एक कुकी लड़की को आश्रय देने का दोषी ठहराया और मारपीट के बाद उसे सड़क किनारे ढकेल दिया।  

इसके बाद उन्होंने पीड़िता को घसीट कर बोलेरो में बैठा दिया। गाड़ी के अंदर उन्होंने एक बार उसकी जमकर पिटाई की। वे उसे वांगखेई अयंगपली नामक मैतेई मोहल्ले में ले गए।  

वहां उन्होंने आसपास के लोगों को इकट्ठा किया। वहीं सड़क के किनारे पहले महिलाओं ने उसे मारना शुरू किया। पीड़िता के अनुसार, “उनमें से कुछ जवान थीं और कुछ उम्रदराज़। वे अपने पारंपरिक फनेक पहने हुईं थीं।” उसे हाथों और डंडों से मारा गया। कुछ लोगों के हाथों में कैंचियां भी थीं। पीड़िता के मुताबिक, “किसी ने मेरे बाल खींचे … फिर मेरे बाल काटने की कोशिश भी हुईं।”     

पूरे समय पीड़िता मैतेई भाषा में उनके सामने गिड़गिड़ाती रही। उसने बताया कि “मैंने उनसे कहा– ‘आप लोग मुझे क्यों मार रहे हैं? आप एक लड़की को इस तरह तमाचे क्यों मार रहे हैं? क्या मैं आपकी बहन नहीं हूं?’”  

लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ। पीड़िता का आरोप है कि उसे जी-भर मार लेने के बाद महिलाओं ने यह कहते हुए उसे पुरुषों के हवाले कर दिया कि वे उसे मार डालें। उसने बताया, “पुरुषों ने मुझसे पूछा कि मेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि मैं वहीं (इंफाल में) रह रही हूं? मैंने उनसे कहा कि मैं इंफाल से निकलने की पूरी कोशिश कर रही हूं और उनसे अनुरोध किया कि वे मुझे छोड़ दें।” उनमें से एक ने उससे कहा, “तुम्हारे आदिवासी लड़कों ने हम मैतेई लोगों की जान ली है, इसलिए हम तुम्हें नहीं छोड़ सकते।” 

पीड़िता ने बताया कि फिर कुछ लोग फ़ोन मिलाने लगे। उसके अनुसार वे अरमबई तेंगोल नाम के एक अतिवादी मैतेई समूह के सदस्यों को फ़ोन लगा रहे थे, जिनके ऊपर 3 मई को नस्लीय हिंसा शुरू होने के बाद से कुकी समुदाय के खिलाफ कई हमलों की अगुआई करने आरोप है। उन लोगों ने उस अतिवादी मैतेई समूह के सदस्यों को फ़ोन पर कहा, “हमने एक आदिवासी को पकड़ लिया है।”

इसके कुछ देर बाद एक और बोलेरो वहां पहुंची, जिसमें काली टीशर्ट पहने कुछ बंदूकधारी पुरुष थे। पीड़िता को घसीट कर बोलेरो में बैठाया गया और वे उसे एक दूसरी जगह ले गए। पीड़िता के अनुसार वह स्थान लांगोल हिल्स में था, जो इंफाल घाटी के पूर्वी हिस्से में स्थित एक पर्वत शृंखला है। 

वहां उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई और उसके दोनों हाथ भी बांध दिए गए। उसने बताया, “मैं पूरे समय रो रही थी … उन्होंने मुझे धमकी दी कि अगर मैंने रोना बंद नहीं किया तो वे मुझे गोली मार देंगे।” फिर, उन लोगों ने तय किया कि वे मुझे एक तीसरी जगह ले जाएंगे। यह जगह इंफाल से काफी दूर बिश्नुपुर ज़िले में थी। पीड़िता के अनुसार, “उन्हें लग रहा था कि अगर वे इंफाल में मेरे साथ वह करेंगे, जो वे करना चाहते थे तो पुलिस उन्हें पकड़ लेगी।”  

तब तक रात घिर आई थी। पीड़िता के अनुसार, उसे एक पहाड़ी पर ले जाया गया। उसने बताया, “उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं जिंदा रहना चाहती हूं तो वही करूं, जो वे कह रहे हैं।” पीड़िता ने कहा, “वे लोग बहुत भद्दे और गंदे शब्द इस्तेमाल कर रहे थे।” उन्होंने उससे कहा कि वे उसका बलात्कार करना चाहते हैं। पीड़िता के मुताबिक, “उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उन्हें ऐसा करने दूंगी तो वे मुझे बचा सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं।” 

जब पीड़िता ने उसके साथ यौन हिंसा का विरोध किया तो उन्होंने उसकी “कमीज़ खींची” और उसे जबरन दबोचने की कोशिश की। उसका कहना है कि पूरे समय उसे सुनाई पड़ रहा था कि वे लोग अपनी राइफलों में कारतूस लोड कर रहे हैं और उसे महसूस हो रहा था कि राइफल की नलियां उसके शरीर में चुभाई जा रही है। हालांकि कुछ देर मौन रहने के बाद उसने राहत शिविर में उसकी देखभाल कर रही महिला को बताया कि इसके कुछ समय बाद वह बेहोश हो गई थी। 

44 वर्षीया कुकी जनजाति की महिला, जिसके साथ की भीड़ द्वारा की गई यौन हिंसा वायरल वीडियो में दिखी  (तस्वीर : तोरा अगरवाला)

उसे जब होश आया तो उसे पेशाब करने की ज़रूरत महसूस हो रही थी। उसने बताया, “जब मैंने उन लोगों से परमिशन मांगी तो वे हंसे और मुझसे कहा कि अगर मरने से पहले तुम्हारी इच्छा पेशाब करने की है तो हम तुम्हें करने देंगे।”  

उन्होंने उसके हाथ खोल दिए और चेहरा दूसरी तरफ फेर कर उसे चेतावनी दी कि वह ज्यादा दूर न जाए। 

पीड़िता ने अपनी आंखों पर बंधी पट्टी हटाई और कुछ कदम आगे बढ़ी। पीड़िता ने बताया, “जब मैंने देखा कि उनकी पीठ मेरी तरफ है तो किसी तरह … न जाने कैसे … मैंने लेट कर पहाड़ी की ढलान पर लुढ़कना शुरू कर दिया।” 

लुढ़कते-लुढ़कते वह पहाड़ी के ठीक नीचे स्थित मुख्य सड़क पर पहुंच गई। उस समय वहां से एक मुसलमान ऑटोचालक अपने ऑटो से गुज़र रहा था। उसने पीड़िता को देखा तो अपना ऑटो रोक दिया और उसे सहारा देकर उसमें बैठाया। पीड़िता के अनुसार, “मैं अपने पैरों पर खड़े रहने लायक भी नहीं थी।”

तब तक अपहर्ताओं ने देख लिया था कि वह भाग रही है। वे गोलियां चलाते हुए पहाड़ी से नीचे की तरफ दौड़े लेकिन ऑटोचालक अपना वाहन भगा ले जाने में सफल रहा।  

उसे पहले एक पुलिस थाने ले जाया गया, जहां मौजूद पुलिसवालों ने उससे प्रभारी अधिकारी के आने तक इंतजार करने को कहा। लेकिन वह वहां असहज महसूस कर रही थी, क्योंकि सभी पुलिसवाले मैतेई थे। अंततः उसने वहां से ऑटो ड्राइवर के साथ निकल जाने का निर्णय लिया। ऑटोवाले ने उसे न्यू चेक्कों छोड़ दिया, जहां कुकी समुदाय के कुछ लोग, जो तब तक इंफाल में थे, उसे मिल गए। 

अगले दो दिन उसने भारतीय जनता पार्टी के एक पूर्व विधायक टीटी होकिप के घर में पनाह ली। पूर्व विधायक की पत्नी मैरी होकिप ने इसकी पुष्टि की।   

वह अपनी जान से हाथ न धो बैठे, इस डर से पीड़िता अस्पताल नहीं गई और उसने होकिप के घर पर प्राथमिक उपचार से ही काम चलाया। वह बताती है कि उसके कानों से खून बह रहा था, उसकी आंखें लाल थीं, उसकी पूरे शरीर पर खरोंचें थीं और उसका चेहरा सूजा हुआ था। उसने बताया, “मुझसे खाना चबाते और निगलते भी नहीं बन रहा था।” 

मैरी होकिप, जो अब चुराचांदपुर में हैं, ने कहा कि उन्होंने लड़की की देखभाल की और उसे खाना खिलाया। उन्होंने बताया, “मेरे पास उसकी हालात को बयां करने के लिए अल्फाज़ नहीं हैं।” पूर्व विधायक की पत्नी के अनुसार, “वह सीढ़ी तक नहीं चढ़ पा रही थी। दो दिन तक वह कुछ खा भी नहीं पाई। हम लोग चिंतित थे कि उसे उसके माता-पिता के पास कैसे पहुंचाया जाय। लेकिन आखिरकार इंतजाम हो गया।”  

फिर 20 मई को पीड़िता कांगपोकपी के उस राहत शिविर में पहुंच गई, जहां उसके परिवार ने शरण लिया हुआ था। 

उसे कांगपोकपी जिले के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे पड़ोसी राज्य नागालैंड के एक अस्पताल को रेफर कर दिया गया। 

नागा हॉस्पिटल अथॉरिटी, कोहिमा, के मेडिकल ऑफिसर द्वारा हस्ताक्षरित दिनांक 24 मई की एक रपट, जिसकी सत्यता की पुष्टि ‘स्क्रॉल’ ने स्वतंत्र रूप से की है, में कहा गया है कि पीड़िता का मामला “कथित तौर पर मारपीट और बलात्कार” का है। केस का संक्षिप्त विवरण कहता है– “मणिपुर में आदिवासी हिंसा के दौरान 15/05/23 को मारपीट और बलात्कार।” 

घटना के दो महीने बाद भी पीड़िता को हमलावरों के चेहरे याद हैं। उसके परिवार ने पहले पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने का मन बनाया, लेकिन बाद में भयवश उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। पीड़िता ने बताया कि उसे नहीं पता कि अंततः शिकायत दर्ज करवाई गई या नहीं।  

‘स्क्रॉल’ ने दो पुलिस थानों – कांगपोकपी और सपोरमिना – में पूछताछ की, लेकिन इस मामले का कोई रिकॉर्ड वहां नहीं मिला। 

पीड़िता ने बताया कि उसके सभी मैतेई दोस्तों के साथ उसके संपर्क-सूत्र ख़त्म हो गए हैं। उसके अनुसार, “उनमें से कुछ ने मेरी मां का नंबर पता लगाया और उनसे कहा कि वे मुझसे बात करना चाहते हैं। पर मैं उनसे बात करना नहीं चाहती। मैं यह भूल नहीं सकती कि उन्होंने (मैतेई लोगों) मेरे साथ क्या किया। मैं तो इंफाल में अपने घर वापस भी जाना नहीं चाहती।” 

उसकी मां उससे कहती रहती है कि वह मज़बूत बने। पीड़िता ने कहा, “वे मुझसे कहती हैं कि ऐसी कई लड़कियां हैं, जो इसी तरह के अनुभव से गुज़री हैं। उनकी खातिर मुझे हिम्मत बांधे रखना चाहिए।” 

हम सब शर्मसार -2

पीड़िता : 19 वर्ष और 20 वर्ष की युवतियां

वर्तमान निवास : चुराचांदपुर जिले में अपने परिवारों के साथ

घटना दिनांक व स्थान : 4 मई, इंफाल में एक नर्सिंग संस्थान

4 मई की दोपहरी को इंफाल के एक नर्सिंग संस्थान की गर्ल्स हॉस्टल के गेट पर भीड़ इकट्ठी हो गई। वे लोग मानो गेट को तोड़ देना चाहते थे। स्वाभाविक तौर पर लड़कियां बुरी तरह घबरा गईं। 

लड़कियों ने अपने कमरों की खिड़कियों से देखा कि भीड़ – जिसमें महिलाएं और पुरुष दोनों थे – अंदर घुसने में कामयाब हो गई। 

दो कुकी युवतियों, जिनमें से एक 19 साल की प्रथम वर्ष की छात्रा और दूसरी, 20 साल की दूसरे वर्ष की छात्रा, को भीड़ ने दबोच लिया। उनकी ज़बरदस्त पिटाई की गई और ‘उन्हें सड़क किनारे मरने के लिए छोड़’ कर भीड़ गायब हो गई। वहां से एक पुलिस की गाड़ी में उन्हें अस्पताल के जाया गया। 

दोनों ने पुलिस में अलग-अलग शिकायतें दर्ज करवाईं हैं– 19 वर्षीया युवती ने दिल्ली के उत्तम नगर थाने में और 20 वर्षीया युवती ने मणिपुर के चुराचांदपुर थाने में। मणिपुर के थाने में शिकायत के आधार पर हत्या का प्रयास और महिला पर यौन हमले सहित अन्य आरोपों के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कर ली गई है और उसे इंफाल के पोरांपत थाने को अग्रेषित कर दिया गया है। उत्तम नगर थाने के अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने 30 मई, 2023 को शिकायत को मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को अग्रेषित कर दिया था, लेकिन इंफाल के पोरांपत थाने से बताया गया कि उन्हें ऐसी कोई शिकायत प्राप्त ही नहीं हुई है।  

20 वर्षीया युवती ने अपनी शिकायत में लिखा, “आधुनिक हथियारों से लैस मैतेई समुदाय के अतिवादी तत्वों की एक भीड़ … आदिवासियों के खिलाफ नारे लगाते हुए … हॉस्टल के मेरे कमरे में घुस आई और मुझे ज़बरदस्ती घसीटते हुए बाहर सड़क पर ले जाया गया। मुझे अपमानित किया गया, पीटा गया और यातना दी गई।” 

जबकि 19 वर्षीया दूसरी पीड़िता ने लिखा कि “भीड़ ने उसके ऊपर आरोप लगाया कि वह ‘दूसरे देश की अवैध प्रवासी है’ और बेरहमी से उसकी पिटाई की। उसने अपनी शिकायत में कहा, “मुझे सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया गया।” 

दो महीने बाद, चुराचांदपुर में अपने घरों में दोनों युवतियां अब भी उनके साथ जो हुआ, उसे भुलाने की कोशिश कर रही हैं। वे कभी-कभी एक-दूसरे से मिलतीं हैं, लेकिन इस घटना की चर्चा नहीं करतीं।  

‘स्क्रॉल’ ने उनके घरों में उनसे मुलाकात की, जिसमें उन्होंने घटना के बारे में विस्तार से बताया। 

20 वर्षीया युवती के अनुसार, “भीड़ शाम चार बजे के कुछ समय बाद पहुंची। इस तथ्य की पुष्टि हॉस्टल की एक कर्मचारी ने की। यह महिला कर्मी मैतेई है और इंफाल में रहती है। 

भीड़ में शामिल दो महिलाओं ने हॉस्टल में घुसकर सभी विद्यार्थियों से उनके आईडी कार्ड दिखाने को कहा।  

हॉस्टल में मैतेई, नागा और कुकी समुदायों की महिलाएं रहती हैं। 19 वर्षीया पीड़िता ने बताया, “वहां नौ कुकी महिलाएं थीं। उनमें से छह हॉस्टल के एक हिस्से में छुप गईं, लेकिन मेरी सीनियर और मैं छुप नहीं पाए।” 

20 वर्षीया युवती ने बताया कि उसने आईडी कार्डों की जांच कर रही महिलाओं से कहा कि वह नागा है। उनमें से एक महिला का जवाब था, “तो फिर कोई समस्या नहीं है – हम तो केवल कुकी लड़कियों को ढूंढ रहे हैं।”

लेकिन जब उन्होंने अपने आईडी कार्ड दिखाए तब यह साफ़ हो गया कि वे दोनों कुकी जनजाति की हैं। 

19 वर्षीया पीड़िता ने बताया कि संस्थान की एक वरिष्ठ कर्मी – एक मैतेई महिला – ने दोनों महिलाओं को समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। 

इस बीच, नीचे की मंजिल पर इकठ्ठा भीड़ और उत्तेजित होती जा रही थी और चिल्ला-चिल्ला कर यह कहा जा रहा था कि दोनों कुकी महिलाओं को नीचे लाया जाए। भीड़ चिल्ला रही थी, “तुम वहां क्या कर रही हो? उन्हें बाहर लाओ, उन्हें बाहर लाओ।” 19 वर्षीया पीड़िता ने बताया कि इसके बाद दोनों को हॉस्टल से बाहर मुख्य सड़क पर लाया गया। 

19 वर्षीया पीड़िता ने बताया, “नीचे हम दोनों लड़कियों को मारा-पीटा गया। संस्थान के वरिष्ठ कर्मी असहाय देखते रहे।”   

संस्थान की एक वरिष्ठ कर्मी ने ‘स्क्रॉल’ को बताया, “मैंने भीड़ के सामने हाथ-पैर जोड़े। पर मैं उनकी मदद नहीं कर सकी। मैं एकदम असहाय थी।” 

19 वर्षीया पीड़िता को याद है कि वह निस्सहाय रो रही थी, लेकिन भीड़ उसे लातें और घूंसे मारे जा रही थी। दोनों पीड़ितों ने बताया कि भीड़ में शामिल महिलाओं ने उन्हें स्वयं तो नहीं मारा पर वे भीड़ को उत्तेजित कर रहीं थीं। वे कह रही थीं, “तुम लोग उन्हें जिंदा क्यों छोड़ रहे हो? उनके साथ बलात्कार करो। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दो। उन्हें जिंदा जला दो।” 

19 वर्षीया पीड़िता ने बताया कि उसे हाथ-पैरों से इतना मारा गया कि वह ज़मीन पर गिर पड़ी। उसने बताया, “मेरी बगल में मेरी सीनियर की भी पिटाई हो रही थी। मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि क्या हो रहा था, पर मुझे इतना तो समझ में आ रहा था कि उसे भी बुरी तरह मारा जा रहा है।” 

बीस साल की पीड़िता को इतनी जोर से घूंसे मारे गए कि उसके सामने के तीन दांत टूट कर गिर गए। चुराचांदपुर में अपनी उंगली से अपने डेंटल इंप्लांट्स को छूते हुए उसने बताया कि उसके घाव अब कुछ बेहतर हैं। लेकिन दो महीने बाद भी, उसके होंठ सूजे हुए हैं।  

उसने कहा, “मुझे अब भी उस महिला का चेहरा याद है, जो चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी कि उनका बलात्कार करो, उनके शरीर के टुकड़े कर दो। उन्हें जिंदा जला दो।” उन्नीस साल की पीड़िता कहती है कि एक महिला के मुंह से ऐसे शब्द सुनना सचमुच बहुत दुखद था। उसने कहा, “मुझे पक्का लगता है कि उस महिला की भी एक न एक बेटी होगी।”

फिर दोनों पीड़िताओं से कहा गया कि वे कुछ दूर पैदल चल कर जाएं। 19 वर्षीया पीड़िता के अनुसार, “तब तब मेरी कमीज़ से मेरे चप्पलों तक खून ही खून था।” 

उसके अनुसार, भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में पत्थर व छुरे के अलावा  बंदूकें भी थीं। उसने बताया, “जब हम लोग चल रहे थे, तब एक ने हम पर बंदूक तानी। पर एक दूसरे आदमी ने उससे कहा कि यह करने का अभी सही समय नहीं है। इसके बाद उसने बंदूक झुका ली।” 

इसके बाद उनकी पिटाई का एक और दौर शुरू हुआ, जिसके दौरान दोनों बेहोश हो गईं। जब उन्हें होश आया तो उन्होंने अपने आपको एक अस्पताल में पाया। बाद में, 19 वर्षीया पीड़िता को हवाईजहाज़ से दिल्ली ले जाया गया, जहां उसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ट्रामा सेंटर के इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती किया गया। वहीं 20 वर्षीया पीड़िता को इंफाल के आर्मी अस्पताल और उसके बाद चुराचांदपुर के जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। 19 वर्षीया पीड़िता मई के अंत में चुराचांदपुर में अपने घर पहुंची। उसने बताया, “अब मैं कुछ बेहतर हूं, पर घर आने के बाद भी कई दिनों तक मुझे चक्कर आते रहे और मेरा जी मिचलाता रहा।”  

‘स्क्रॉल’ ने हॉस्टल की एक मैतेई महिला से बात की, जिसने घटना की पुष्टि की। उसने कहा, “ये लड़कियां तो छात्राएं थीं। वे मेरे बच्चों जैसी थीं। मुझे इतना बुरा लग रहा है कि मैं उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकी।”

हम सब शर्मसार -3

पीड़िता : 44 वर्ष और 21 वर्ष की महिलाएं

वर्तमान निवास : क्रमशः चुराचांदपुर और तेंगनौपाल जिलों में अपने परिवारों के साथ

घटना दिनांक व स्थान : 4 मई, कांगपोकपी जिले में बी. फैनोम गांव के नज़दीक 

चार मई को बी. फैनोम के रहवासियों को जैसे ही पता चला कि पास के एक गांव में मैतेई लोगों की भीड़ घरों को आग के हवाले कर रही है, वे अपने घर छोड़ कर भाग निकलने के लिए सामान बांधने लगे। इन लोगों में शामिल थी गांव के मुखिया की पत्नी, जो 44 साल की थी। ज्यादातर परिवार निकल भागे लेकिन इस महिला और उसके पड़ोसी परिवार को कुछ देर हो गई। 

लेकिन फिर भी वे समय रहते निकल भागने में सफल रहे। दोनों परिवार अपने घर के नज़दीक जंगल की तरफ जाने वाले एक रास्ते में छुप गए। उन्हें वहां सुनाई पड़ रहा था कि हमलावर गांव के चर्च की घंटियां बजा रहे हैं। वे अपने जलते हुए घर भी देख सकते थे। पीड़ित महिला ने बताया, “लेकिन हमारे छुपने की जगह पर काफी घनी झाड़ियां थीं।”

लेकिन हमलावर भीड़ ने उन्हें खोज लिया। वे लोग दो हिस्सों में बंट कर आसपास छुपे लोगों को खोज रहे थे। इस महिला की आंखों के सामने उसके पड़ोसी – 56 साल के पुरुष और उसके 19 साल के बेटे – को मार दिया गया। फिर भीड़ ने इस महिला और 21 साल की पड़ोसी की बेटी को पकड़ा। बाद में उन्हें नंगा करके पैदल चलाया गया और उनके शरीर के यौनांगों को दबोचा और मसला गया। इस घटना का वीडियो इंटरनेट पर वायरल है। 

घटना के कुछ समय बाद, 21 साल की महिला का विवाह हो गया और वह अब तेंगनौपाल में रहती है। दूसरी महिला चुराचांदपुर में एक भीड़-भरे राहत शिविर में रह रही है। वहीं, जुलाई की एक शाम, उसने ‘स्क्रॉल’ से अपने अनुभव साझा किया।    

दोनों परिवारों के पकड़े जाने के बाद पुरुष उन्हें मारने लगे। भीड़ में शामिल कुछ (मैतेई) पुरुषों ने कहा कि महिलाओं को मारना ठीक नहीं है। महिला के अनुसार, “उनमें से कुछ लोग अच्छे थे … कुछ ने तो कहा भी, ‘हम महिलाओं के साथ मारपीट न करें’। लेकिन हमलावरों की भीड़ के अधिकांश लोगों को इसकी परवाह नहीं थी। उन्होंने हमें लात-घूंसे मारे, हमारे बाल खींचे गए और हमें बुरी तरह से पीटा।” 

पास में पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी। उनमें से तीन (यह महिला, 21 साल की लड़की और 19 साल का लड़का) तो गाड़ी में बैठ गए, लेकिन लड़के के पिता को बाहर खींच कर मार दिया गया।   

उसने बताया, “हमने यह तो नहीं देखा कि उन्हें कैसे मारा गया, लेकिन हमें पता है कि उन्हें मार दिया गया।” महिला के अनुसार, उसने पुलिसवालों से कहा कि वे गाड़ी चालू करें ताकि वे लोग वहां से भाग सकें।

“पहले तो पुलिसवालों ने गाड़ी आगे ही नहीं बढाई। फिर जैसे ही उन्होंने इंजन चालू किया, भीड़ ने उन्हें घेर लिया। उन्हें गाड़ी से खींच कर उतारा गया। युवा लड़के को दोनों महिलाओं से अलग कर, घसीटते हुए धान के उस खेत में ले जाया गया, जहां उसके पिता की जान ली गयी थी। दूर से उस महिला ने देखा कि लड़के पर एक मोटी लाठी से वार किये जा रहे हैं। वह अपने पिता की लाश पर ढेर हो गया।  

इस बीच भीड़ ने दोनों महिलाओं को घेर लिया और उनसे अपने कपड़े उतारने को कहा। “जब हमने विरोध किया तो उन्होंने हमें घूंसे मारे और जबरदस्ती हमारे कपड़े उतारने की कोशिश की”, उसने बताया। पुरुषों ने उन्हें चेतावनी दी कि “अगर तुम लोगों ने अपने कपड़े नहीं उतारे तो हम तुम्हें जान से मार देंगे।” 

महिला ने बताया कि उसके पास इसके सिवाय कोई विकल्प नहीं था कि ‘अपनी जान बचने के लिए’ वह अपने शरीर से एक-एक कर सारे कपड़े उतार दे।

इस बीच, उसे थप्पड़ और घूंसे मारे जाते रहे। उसे लग रहा था कि उसकी पड़ोसी महिला भी उसके आसपास ही है, लेकिन उसे ठीक-ठीक नहीं पता था कि उसके साथ क्या हो रहा था। 

नग्न अवस्था में महिला को निकट के धान के खेत में ले जाया गया। भीड़ उसके पीछे थी। वहां उसे ज़मीन पर लेटने को कहा गया। “तीन पुरुषों ने मुझे घेर लिया … दो मेरे दोनों तरफ थे और एक ठीक मेरे सामने। उनमें से एक ने दूसरे से कहा, “चलो हम इसका बलात्कार करें। लेकिन अंततः उन्होंने ऐसा नहीं किया”, उसने बताया। “लेकिन उन्हें मेरे स्तन दो बार दबोचे।”   

महिला को याद है कि हमलावर उससे कह रहे थे कि “चुराचांदपुर में कुकी लोगों ने मैतेई महिलाओं के साथ बलात्कार किया था और एक मैतेई बच्चे को मार दिया था” और यह कि वे बदला ले रहे हैं।

वे लोग उसे खेत में छोड़कर चले गए। बाद में मैतेई लोगों का एक दूसरा समूह आया और उसे उसके कपड़े दिए।  

वह पुलिस की गाड़ी की तरफ बढ़ रही थी, लेकिन रास्ते में उसे एक और भीड़ ने रोका। इन लोगों ने फिर उसके कपड़े उतरवाए। महिला के अनुसार, पुरुषों का वह पुराना समूह फिर वहां पहुंचा, जिसके कुछ सदस्य महिलाओं पर हमला करने में असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने उसके कपड़े उसे लौटा दिए। 

उसी समय उसकी पड़ोसी – 21 साल की महिला – उसके पास आई। दोनों ने अपने कपड़े इकठ्ठा किया और पास के एक गांव में चली गईं। 

महिला ने कहा कि उसने स्वयं पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं करवाई। 

लेकिन उसके एक रिश्तेदार ने शिकायत की। पुलिस का कहना है कि कांगपोकपी जिले के सैकुल पुलिस थाने में 18 मई को जीरो एफआईआर दर्ज की गई। इसमें महिला की उम्र 42 साल बताई गई है और उसमें कहा गया है कि 21 साल की महिला के साथ “दिनदहाड़े क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार हुआ।” एक तीसरी महिला, जो इन दोनों महिलाओं के साथ थी, को भी नंगा होने पर मजबूर किया गया। सैकुल पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया कि ‘अज्ञात बदमाशों’ जिनकी संख्या ‘800-1000’ है, के खिलाफ बलात्कार, हत्या और अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया गया है। 

घटना के दो महीने बाद, 44 साल की महिला ने कहा कि उसने जो कुछ किया, वह अपनी जान बचाने के लिए किया। उसने टूटती आवाज़ में बताया, “वैसे भी मैं विवाहित हूं … भीड़ के आगे मैं बेबस थी।”

राहत शिविर के नज़दीक, अपने रिश्तेदारों के साथ रह रही 21 वर्ष की महिला की मां गहरे विषाद के चलते मानो अपना होशो-हवास खो बैठी है। उसने घटना का विवरण, जैसा कि उसकी लड़की ने उसे बताया था, सुनाने की कोशिश की, लेकिन वह अपने को नहीं सम्हाल सकी और फूट-फूट कर रोने लगी। 

घटना के बाद लड़की के बॉयफ्रेंड ने उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। लड़की की मां ने बताया, “वो अब उसके साथ है … दूसरे जिले में … वह इन सबसे दूर है।”   

जहां तक गांव के मुखिया की 44 साल की पत्नी का सवाल है, उसका कहना है कि भले ही उसे कितनी ही थकावट क्यों न लगे, अपनी आपबीती मीडिया के सामने दुहराना वह महत्वपूर्ण समझती है। 

“सबको पता चलना चाहिए कि हमारे साथ क्या हुआ”, 44 साल की महिला ने कहा। “लेकिन जो कुछ हुआ उसके बावजूद मैं कहना चाहूंगी कि सारे मैतेई ख़राब नहीं हैं … कुछ पुरुषों ने मेरी मदद करने की कोशिश की थी।”

(मूल आलेख वेब पोर्टल ‘स्क्रॉल डॉट इन’ द्वारा पूर्व में अंग्रेजी में प्रकाशित व यहां ‘स्क्रॉल डाॅट इन’ की सहमति से हिंदी अनुवाद प्रकाशित, अनुवादक : अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

तोरा अगरवाला

लेखिका गुवाहाटी, असम की स्वतंत्र पत्रकार हैं

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