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बहुजन साप्ताहिकी : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के औचित्य पर सवाल पर उठाया सवाल

इस बार पढ़ें, वेब पोर्टल ‘न्यूजक्लिक’ को करीब सात सौ बुद्धिजीवियों द्वारा समर्थन दिए जाने की खबर के अलावा झारखंड के सीसीएल में 2377 कर्मियों की नौकरी पर आए संकट व मुंबई में पहली बार आयोजित फूलन देवी जयंती समारोह से जुड़ी खबर

बिहार में संपन्न हो चुके जातिगत सर्वेक्षण को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ के द्वारा दायर याचिका पर गत 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई के पहले दिन न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने सर्वेक्षण के औचित्य पर उठाए गए सवाल पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। 

पीठ ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के दौरान जाति या उप जाति का विवरण प्रदान करता है तो इसमें क्या नुकसान है, खासकर तब जब किसी व्यक्ति का डेटा राज्य सरकार के द्वारा प्रकाशित नहीं किया जाएगा? 

बिहार में जातिगत सर्वेक्षण का काम गत 6 अगस्त, 2023 को पूरा हो गया। इस डेटा को गत 12 अगस्त को सरकार के सर्वर में सुरक्षित रख दिया गया है। इस आशय की जानकारी सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के प्रतिनिधि अधिवक्ता श्याम दीवान ने दी। उन्होंने कहा कि यह सर्वेक्षण किसी भी तरह से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। याचिकाकर्ता संगठन के अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन ने इसके संबंध में सवाल उठाया था। इस पर न्यायमूर्तिद्वय ने भी उनसे यह सवाल पूछा कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि जातिगत सर्वेक्षण अनुच्छेद 21 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है?

सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली

शून्य अंक प्राप्त करनेवालों को भी मिली एमबीबीएस में दाखिला

यह जानकारी आपको चौंका सकती है कि 110 ऐसे छात्रों को एमबीबीएस कोर्स में दाखिला दिया गया, जिनके प्राप्तांक शून्य रहे। वहीं 400 छात्र ऐसे रहे, जिनका प्राप्तांक 10 से कम रहा। लेकिन यह हुआ डोनेशन के आधार पर। हालांकि यह मामला 2017 का है। ऑल इंडिया ओबीसी वेलफेयर फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव जी. करुणानिधि ने अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में 18 जुलाई, 2023 को प्रकाशित एक रपट के हवाले से यह सवाल उठाया है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार एक तरफ दलित-पिछड़े-आदिवासी छात्रों के रास्ते में बाधाएं पैदा कर रही है तो दूसरी तरफ पैसे के बल पर ऊंची जातियों के ऐसे छात्रों को दाखिला दे रही है, जिनके पास न्यूनतम अर्हता भी नहीं है। 

प्रेमकुमार मणि ने उठाया प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के नाम पर सवाल

प्रसिद्ध समालोचक व बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य प्रेमकुमार मणि ने भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के नाम पर सवाल उठाया है। फेसबुक पर अपने पोस्ट में हालांकि उन्होंने योजना का स्वागत किया है। लेकिन नाम के सवाल पर उन्होंने कहा है कि “काल्पनिक विश्वकर्मा [मिथकीय चरित्र ब्रह्मा का मानस पुत्र] के बजाय इसे कबीर-रैदास योजना के नाम से अभिहित किया जाता तो अधिक अच्छा था। लेकिन एक कहावत है कि ‘घी का लड्डू टेढ़ा भी भला’; तो विश्वकर्मा ही सही, लेकिन इस योजना को गंभीरता से चलाया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि “इस दस्तकार तबके को ज्ञान से जबरन वंचित करके, सामाजिक तौर पर शूद्र यानी निचला घोषित करके हमारे समाज-नियामकों ने जो अपराध किया है, उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मैं चाहूंगा इस पारंपरिक पेशे से जुड़े परिवारों की नई पीढ़ी को आधुनिक तकनीकी ज्ञान के क्षेत्र में कुछ पॉइंट दिए जाएं, जिससे वे आधुनिक तकनीक से उच्च स्तर पर जुड़ सकें। आईआईटी और इस तरह के सभी संस्थानों में प्रवेश पर उनके लिए जब कुछ पॉइंट निर्धारित होंगे तो वे अधिक संख्या में वहां शिक्षित होंगे।”

कोयला कंपनी सीसीएल ने 2377 कर्मियों को बताया सरप्लस

झारखंड में भारत सरकार के अधीन लोक उपक्रम सेंट्रल कोल फील्ड्स लिमिटेड (सीसीएस) के 2377 कर्मियों पर नौकरी जाने का खतरा मंडराने लगा है। दरअसल कंपनी ने वर्ष 2023-24 के लिए मैनपॉवर बजट तैयार किया है। कंपनी हर साल यह बजट तैयार करती है ताकि वह इस बात का पता लगा सके कि उसे कुल कितने कर्मियों की आवश्यकता है। हाल ही में जारी बजट में बताया गया है कि कंपनी में फिलहाल कुल 32,948 कर्मी कार्यरत हैं। इनमें 29,721 पुरुष और 3227 महिलाएं हैं। कंपनी की रपट में यह भी कहा गया है कि उसे कुल 30,571 कर्मियों की आवश्यकता है। वहीं इस मामले में स्थानीय श्रमिक संगठन ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एटक) के नेता लखन लाल महतो ने कहा है कि कंपनी हर साल अपने मैन पॉवर बजट में कर्मियों की संख्या अधिक दिखाती है और इसके आधार पर कर्मियों को निकाल देती है। जबकि वास्तविकता इससे परे है। यदि कंपनी यह दावा करती है कि उसके पास आवश्यकता से अधिक कर्मी हैं तो फिर वह आउटसोर्सिंग क्यों कर रही है?

मुंबई में पहली बार मनाया गया फूलन देवी जयंती समारोह

गत 15 अगस्त, 2023 को महाराष्ट्र की राजधनी मुंबई में पहली बार फूलन देवी जयंती समारोह का आयोजन भारतीय शूद्र संघ द्वारा किया गया। स्थानीय आंबेडकर भवन में आयोजित इस समारोह की शुरुआत संविधान की प्रस्तावना के सामूहिक पाठ से की गई। इस मौके पर वक्ताओं ने दस्यू सुंदरी से राजनेता बनीं फूलन देवी को याद किया। वक्ताओं ने मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के ऊपर किए गए अत्याचार की निंदा की। उनका कहना था कि आज ऐसे समय में जबकि औरतों के ऊपर जुल्म किया जा रहा है, सरकारें मुंह देख रही हैं, तो फूलन देवी एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में सामने आती हैं। समारोह को देवेंद्र यादव, रामभरोसे मौर्य, राजबाला सैनी, चंद्रभान पाल, कल्पना बौद्ध, श्यामलाल निषद और मोहिनी अवनाकर सहित कई लोगों ने संबोधित किया।

न्यूज वेब पोर्टल ‘न्यूजक्लिक’ के समर्थन में उतरे अनेक बुद्धिजीवी

केंद्र में सत्तासीन भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा न्यूज वेब पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ और उसके संस्थापक व मुख्य संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के खिलाफ़ ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में प्रकाशित कुछ बातों के आधार पर लगाए जा रहे झूठे आरोपों का खंडन देश के अनेक बुद्धिजीवियों ने किया है। उनका कहना है कि ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपी रिपोर्ट में यह आरोप नहीं लगाया गया है कि ‘न्यूज़क्लिक’ ने किसी कानून का उल्लंघन किया है। वास्तविकता यह है कि ‘न्यूज़क्लिक’ लगातार सरकारी नीतियों व कार्यवाहियों और देश के करोड़ों लोगों पर उनके असर के बारे में सटीक रूप से लेख व वीडियो प्रकाशित करता रहा है। उसका खास फ़ोकस समाज के सबसे पीड़ित और शोषित तबकों, मजदूरों व किसानों के संघर्षों को उजागर करने में रहा है। 

करीब 700 से ज्यादा लोगों ने ऑनलाइन समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें वरिष्ठ पत्रकारगण, जन आंदोलनों के नेता, न्यायाधीश, वकील, शिक्षाविद्, वैज्ञानिक, लेखक, कलाकार, फिल्म निर्माता, अभिनेता और अन्य संबंधित नागरिक शामिल हैं। इनमें जॉन दयाल, एन. राम, प्रेम शंकर झा, सिद्धार्थ वरदराजन और एम. वेणु (संस्थापक संपादक, द वायर), सुधींद्र कुलकर्णी, पी. साईनाथ, वैष्णा रॉय (संपादक, फ्रंटलाइन), बेजवाड़ा विल्सन (राष्ट्रीय संयोजक, सफाई कर्मचारी आंदोलन), अरुणा रॉय (मजदूर किसान शक्ति संगठन), प्रशांत भूषण, हर्ष मंदर, सैयदा हमीद, संजय हेगड़े, जस्टिस के. चंद्रू, कॉलिन गोंसाल्वेस, के. सच्चिदानंदन, जेरी पिंटो, दामोदर मौजो (गोवा के लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता), रोमिला थापर, सुमित सरकार, के.एम. श्रीमाली, तनिका सरकार, प्रभात पटनायक, उत्सा पटनायक, जयति घोष, सी.पी. चंद्रशेखर, ज़ोया हसन, ज्यां द्रेज, रत्ना पाठक शाह, नसीरुद्दीन शाह, आनंद पटवर्द्धन आदि शामिल हैं।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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