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नूंह हिंसा : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सवालों के घेरे में हरियाणा सरकार

जिन लोगों के घर ढाहे गए, उनमें कई को तो अपना दोष भी नहीं मालूम। अनीश ने हिंसा वाले दिन अपने घर में हिसार के रहने वाले रवींद्र फोगाट समेत तीन लोगों को भीड़ से बचाकर पनाह दी। मगर अगले दिन अनीश का ही घर बुलडोज़र से रौंद दिया गया। पढ़ें, सैयद ज़ैगम मुर्तजा की रपट

हरियाणा के मेवात इलाक़े में हाल ही में भड़की हिंसा में 6 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हिंसा के बाद पुलिस ने क़रीब डेढ़ सौ से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया और 12 सौ से ज़्यादा संपत्तियाें को ज़मींदोज़ कर दिए। इस कार्रवाई के बाद प्रशासन पर ग़रीब और पसमांदा मुसलमानों के ख़िलाफ एकतरफा कार्रवाई के आरोप लग रहे हैं।

ध्यातव्य है कि गत 31 जुलाई, 2023 को बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद ने हरियाणा के मेवात इलाक़े में बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा निकाली। इस यात्रा में बजरंग दल के हज़ारों कार्यकर्ता शामिल हुए हुए। यात्रा जब नूंह ज़िले में दाख़िल हुई तो हिंसा भड़क उठी। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि यात्रा में शामिल लोगों को घेरकर उनके ऊपर पथराव किया गया। दूसरी तरफ स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस यात्रा के दौरान न सिर्फ आपत्तिजनक नारे लगाए गए बल्कि हथियारों का खुलकर अवैध प्रदर्शन भी किया गया।

प्रशासन भी दबी ज़बान में मान रहा है कि यात्रा निकालने से पहले बजरंग दल के कथित कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और भड़काऊ बयानों वाले वीडियो जारी किए। इसके कारण इलाके में तनाव फैला, जो बाद में हिंसा में बदल गया। बहरहाल, नूंह में मंदिर के पास से शुरू हुई हिंसा सोहना होते हुए गुरुग्राम तक आ गई। कई दुकानों में आग लगा दी गई। एक मस्जिद के इमाम की हत्या कर दी गई और घरों में घुसकर तोड़-फोड़ की गई।

हिंसा के बाद पुलिस प्रशासन ने तक़रीबन डेढ़ सौ एफआईआर दर्ज किया है। इनमें 29 मामले सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने से जुड़े हैं। नूंह में 56 प्राथमिकियां दर्ज की गईं। इसके बाद शुरू हुआ गिरफ्तारियों का सिलसिला। स्थानीय लोगों का आरोप है कि हिंसा भड़काने वाले बाहर से आए थे, लेकिन कार्रवाई के नाम पर पुलिस स्थानीय ग़रीब मुसलमानों को निशाना रही है। अब तक गिरफ्तार किए गए तमाम लोगों में तक़रीबन 90 फीसदी मुसलमान हैं। हिंसा और उसके बाद हुई पुलिस कार्रवाई का शिकार बने अधिकांश लोगों का ताल्लुक़ पसमांदा तबक़े से है। यह तब है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम भाजपा नेता आए दिन पसमांदा प्रेम के गीत गाते नज़र आते हैं।

घर ढाहे जाने के बाद नूंह में उदास पसमांदा समाज की महिलाएं

केंद्र और हरियाणा राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा पिछले काफी समय से पसमांदा मुसलमानों को अपने पक्ष में लाने के लिए उनके कल्याण से जुड़े तमाम दावे कर रही है। हालांकि यह मसला पसमांदा प्रेम से ज़्यादा मुसलमान वोटरों में फूट डालकर चुनावी लाभ लेने का ज़्यादा है। फिर भी निशाने पर पसमांदा मुसलमान हैं तो ज़ाहिर है सवाल उठेंगे ही। 

ख़ैर, नूंह में भड़की हिंसा में सबसे ज़्यादा नुक़सान मेव, सैफी और सलमानी बिरादरियों से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों का हुआ है। लेकिन अब उन्हें इंसाफ की कोई किरण दूर-दूर तक कहीं नहीं दिख रही है।

अमरोहा ज़िले के बाबू सलमानी गुरुग्राम में बाल काटने का काम करते थे। 31 जुलाई को भड़की हिंसा के बाद किसी तरह अपनी जान बचा कर वापस भाग आए। बाबू सलमानी बताते हैं कि उन्होंने नारेबाज़ी करती भीड़ की अपनी दुकान की तरफ आते देखा तो वहां से भाग लेने में भलाई समझी। उन्हें नहीं मालूम कि दुकान का क्या हुआ, और अब डर की वजह से बाबू वापस गुरुग्राम लौटना नहीं चाहते। कुछ ऐसा ही मेरठ के मुंडाली इलाक़े के रहने वाले अज़ीम के साथ भी हुआ। गुरुग्राम में हिंसा के दौरान उनकी फर्नीचर रिपेयर की दुकान जला दी गई। उन्हीं की तरह और भी लोग हैं जो अब शायद ही दोबारा वहां जाकर काम कर पाएं।

यह तो थी कारोबारी नुक़सान की बात। अब बात पुलिस कार्रवाई की। हिंसा के बाद एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स यानी एपीसीआर की टीम ने हरियाणा का दौरा किया। इस 11 सदस्यीय दल ने अपनी जांच में पाया है कि पुलिस प्रशासन को हिंसा भड़कने की आशंका थी। जिस तरह फरीदाबाद का बिट्टू बजरंगी और मानेसर का मोनू यादव सोशल मीडिया पर मुसलमानों को ललकार रहे थे, अगर पुलिस ने समय रहते सतर्कता बरती होती तो शायद हिंसा नहीं होती।

यात्रा से पहले ही तमाम तरह के आपत्तिजनक बयान और वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे थे। विश्व हिंदू परिषद की यात्रा से पहले ही संभावित हिंसा की आशंकाएं ज़ोर पकड़ने लगी थीं, लेकिन पुलिस ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की। प्रशासन हथियार लहराती और आपत्तिजनक नारे लगाती कथित श्रद्धालुओं की भीड़ को क़ाबू कर पाने में नाकाम रहा। उलटा हिंसा भड़कने के बाद नूंह में एक हज़ार से ज़्यादा घर और दुकानें बुलडोज़र चलाकर मलबे में बदल दीं।

जिन लोगों के घर ढाहे गए, उनमें कई को तो अपना दोष भी नहीं मालूम। इनमें गुरुग्राम-अलवर राजमार्ग पर रहने वाले अनीश भी हैं। अनीश ने हिंसा वाले दिन अपने घर में हिसार के रहने वाले रवींद्र फोगाट समेत तीन लोगों को भीड़ से बचाकर पनाह दी। मगर अगले दिन अनीश का ही घर बुलडोज़र से रौंद दिया गया। इसी तरह नलहड़ में दवा की दुकान चलाने वाले नवाब शेख़ भी प्रशासनिक कार्रवाई का शिकार बने। उनका कहना है कि हिंसा के बाद बिना नोटिस, बिना सुनवाई उनकी दुकान तोड़ दी गई। अब उनके सामने रोज़ी-रोटी का संकट है।

मुसलमानों को एकतरफा कार्रवाई का शिकार सिर्फ बुलडोज़र ने नहीं बनाया है। गिरफ्तार किए गए तमाम लोगों में मेव नौजवानों की बड़ी तादाद है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके पढ़ने-लिखने और स्कूल जाने वाले बच्चों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है, जबकि हिंसा में शामिल लोग कहीं चैन से सो रहे होंगे।

नूंह ज़िला अदालत में गिरफ्तार युवाओं की पैरवी कर रहे वकील ताहिर हुसैन के मुताबिक़ प्रशासन ने बिना तहक़ीक़ात किए तमाम लोगों को दूसरे के बयानों के आधार पर भी आरोपी बना दिया है। पुलिस कह रही है कि उसकी कार्रवाई वीडियो के ज़रिए पहचानकर और मोबाइल लोकेशन खोजकर की गई है, लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है। अगर इस आधार पर लोगों को गिरफ्तार किया जाता तो विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सैकड़ों कार्यकर्ता सलाख़ों के पीछे होते।

पुलिसिया कार्रवाई का शिकार बने आदिल के वकील का कहना है कि वो हिंसा से बचकर अपने चाचा के घर जा रहा था, और रास्ते से उसको पकड़ लिया गया। इसी तरह कई और आरोपी हैं जो कह रहे हैं कि वह हिंसा में शामिल नहीं थे लेकिन फिर भी उनको परेशान किया जा रहा है। शाहिद (बदला हुआ नाम) का कहना है कि वह ज़मानत लेने के लिए मारा-मारा फिर रहा है, जबकि हिंसा वाले दिन और इसके बाद भी वह हरियाणा में था ही नहीं।

मेवली के रहने वाले शफात का कहना है कि बीते 1 अगस्त को उनके परिवार के नौ लोगों को पुलिस ने उठा लिया। उनको न तो परिजनों से मिलने दिया गया न वकील से। परिजन पुलिस की बदले की कार्रवाई के डर से अब कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते जबकि यह नौ की नौ गिरफ्तारियां अवैधानिक हैं। कई और लोग हैं, जिनका दावा है कि उनके घर के नाबालिग़ बच्चों को भी आरोपी बना दिया गया जबकि वो हिंसा में दूर-दूर तक भी शामिल नहीं थे।

इसी तरह जान मुहम्मद का कहना है कि उसका बेटा शाहरुख़ सिक्योरिटी गार्ड है, लेकिन उसको भी आर्म्स एक्ट में गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि पुलिस एकतरफा कार्रवाई के आरोपों से इंकार कर रही है। नूंह के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) नरेंद्र बिरजानिया के मुताबिक़ कोई भी गिरफ्तारी ग़ैर-क़ानूनी नहीं है। हिरासत में लेने से पहले सबूत और आरोपियों के आयु प्रमाण पत्रों का मिलान सही से किया गया है।

बहरहाल, पुलिस, प्रशासन और सरकार कितने ही दावे करे, उसकी कार्रवाई में पक्षपात तो साफ नज़र आता ही है। हालांकि पुलिस बिट्टू बजरंगी को पकड़कर अपनी पीठ थपथपा सकती है। मगर जिस तरह बिट्टू और मोनू यादव जैसों को अभी तक संरक्षण मिला है, पुलिस हिंसा में अपनी लापरवाही के इलज़ाम धो नहीं सकती।

कुल मिलाकर दंगों पर तमाम तरह की राजनीति अभी होनी है। चुनावी वर्ष है तो प्रशासन की कार्रवाई भी सियासी नफे-नुक़सान को देखकर ही होगी। लेकिन जिस तरह हिंसा और पुलिसिया कार्रवाई में पिछड़े निशाने पर रहे हैं, इसका नुक़सान हरियाणा न सही, दूसरी जगहों पर भाजपा को तो उठाना ही पड़ेगा।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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