h n

गैर-आदिवासियों को एसटी का दर्जा : आदिवासी समुदायों में आक्रोश

हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र में गैर-आदिवासी समुदायों को एसटी का दर्जा देने के लिए विधेयक पेश किए गए। जम्मू-कश्मीर सहित देश के कई हिस्सों में इसका विरोध आदिवासी समुदायों द्वारा किया जा रहा है। पढ़ें, यह रपट

बीते अप्रैल माह में मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा सूबे के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जा देने संबंधी फैसले के बाद से ही वहां हिंसा का माहौल बन गया। कुकी-नागा आदिवासी समुदाय बहुसंख्यक मैतेई के निशाने पर आ गए। इसके साथ ही, केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारें भी कुछ गैर आदिवासी समुदायों/जातियों को एसटी दर्जा देने की पहल कर रही हैं, जिसे सियासी प्रोपेगेंडा बताया जा रहा है। जिन राज्यों में ऐसी कोशिशें की जा रही हैं, वहां विरोध भी सामने आया है।

जम्मू-कश्मीर में विरोध के स्वर

विगत 26 जुलाई, 2023 को लोकसभा में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से जुड़े चार विधेयक पेश किए गए। ये हैं– जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधयेक-2023, संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक-2023, संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक-2023 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक-2023। इनमें से पहले तीन विधेयकों को जम्मू-कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल व ओबीसी संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है।

इन संगठनों के प्रतिनिधियों का आरोप है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को दूसरा मणिपुर बनाने पर तुली है।

दरअसल उपरोक्त तीनों विधेयकों द्वारा जम्मू-कश्मीर के आर्थिक-सामाजिक रूप से मजबूत कहे जाने वाले पहाड़ी, ब्राह्मण, कोल, चांग, आचार्य, कौरो समेत कई जातियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी), अनुसूचित जाति और ओबीसी लिस्ट में शामिल किया जाना प्रस्तावित है। इसमें सबसे ज्यादा विरोध पहाड़ियों और ब्राह्मणों को एसटी कैटेगरी में शामिल किए जाने का किया जा रहा है।

ध्यातव्य है कि जम्मू-कश्मीर में भाषाई अल्पसंख्यक समूह ‘पहाड़ी’ को एसटी का दर्जा देने के लिए लाया गया यह अपनी तरह का पहला विधेयक है।

इसके विरोध में गत 6 अगस्त, 2023 को जम्मू के आंबेडकर चौक पर सैकड़ों की संख्या में गुज्जर-बकरवाल समुदाय के लोगों द्वारा केंद्र सरकार के विरोध में प्रदर्शन किया गया। इसके बाद संभागीय आयुक्त रमेश कुमार को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। गुज्जर-बकरवाल समुदायों का यह विरोध अब जम्मू के अलावा पुंछ, राजौरी, श्रीनगर, कुपवाड़ा और अन्य जिलों में पहुंच गया है। इसके अलावा पश्चिम उत्तर प्रदेश में इन समुदायों के लोगों द्वारा विरोध किया गया है।

हिंदी दैनिक अमर उजाला के मुताबिक, जम्मू के प्रदर्शन में शामिल गुफ्तार अहमद चौधरी ने कहा, “पहाड़ियों और ब्राह्मणों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देना गुज्जर-बकरवालों के साथ अन्याय है। सरकार को यह बिल वापस लेना होगा, नहीं तो पूरे देश में ऐसे प्रदर्शन किए जाएंगे। लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतरेंगे। जिन लोगों को एसटी का दर्जा दिया जा रहा है, वे कुलीन वर्ग के लोग हैं।” 

वहीं जम्मू-कश्मीर में जनजातीय समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था ‘ऑल रिजर्व्ड कैटेगरीज ज्वाइंट एक्शन कमेटी’ (एआरसीजेएसी) की ओर से अधिवक्ता अनवर चौधरी का दावा है कि यह पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देना अवैध और असंवैधानिक है, क्योंकि पहाड़ी लोग एसटी दर्जे के मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं। वहीं गुर्जर नेता एवं अधिवक्ता मोहम्मद अयूब चौधरी ने कहा, “जम्मू-कश्मीर में गुज्जर और बकरवाल के अधिकारों को छीनकर ऊंची जातियों को दिया जाना हम स्वीकार नहीं करेंगे। हम 60 विधानसभा सीट पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जम्मू क्षेत्र की हर विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ेगा।”

श्रीनगर में विरोध करते गुज्जर-बकरवाल समुदाय के लोग

गुज्जर नेता और एआरसीजेएसी के संस्थापक सदस्य तालिब हुसैन कहते हैं कि पहाड़ियों की अलग-अलग जातियां और धर्म है। पहाड़ियों में सैयद, बुखारी जैसे ऊंची जाति के मुस्लिम और ब्राह्मण, राजपूत, महाजन जैसे हिंदू शामिल हैं। वे शासक वर्ग और संपन्न परिवारों से हैं। अभी अनुसूचित जनजाति में गुज्जर, बकरवाल, शिना, गद्दी और सिप्पी शामिल हैं। यदि बिना एसटी मापदंड वाली नई जातियों को भी एसटी में शामिल किया जाएगा तो और भी समुदाय एसटी दर्जे की मांग करेंगे। अगर पुंछ के बुखारी को आदिवासियों में शामिल किया गया तो आगे श्रीनगर के बुखारी भी आदिवासी होने का दावा करेंगे। यह चिंताजनक है कि पहाड़ियों को सिर्फ भाषा के आधार पर एसटी का दर्जा दिया जा रहा है।”

तालिब का मानना है कि केंद्र की भाजपा सरकार जम्मू-कश्मीर के लोगों में असंतोष के बीज बोने की कोशिश कर रही है। वह एक को दूसरे के खिलाफ भड़काकर मणिपुर जैसे हालात बनाना चाहती है।

जम्मू-कश्मीर पहाड़ी पीपुल्स मूवमेंट के शाहबाज़ खान ने हिंदी दैनिक जनसत्ता को बताया, “पहाड़ी बिल्कुल गुज्जरों की तरह एक जातीय समूह हैं। गुज्जरों ने खुद को राष्ट्रवादी के रूप में चित्रित कर पिछली केंद्र सरकारों को आश्वस्त किया कि हम (पहाड़ी) एसटी में शामिल होने के लायक नहीं हैं। जमीनी तौर पर गुज्जरों और हमारे बीच कोई अंतर नहीं है। फर्क सिर्फ भाषा का है।” वहीं जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा, “पहाड़ियों को आरक्षण से किसी के नाखुश होने का सवाल ही नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि पहाड़ियों को आरक्षण गुज्जर-बकरवाल और अन्य एसटी समुदायों को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त होगा।”

ओबीसी महासभा, ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन एवं ऑल जम्मू-कश्मीर वेलफेयर फोरम श्रीनगर के सदस्यों ने भी केंद्र के इस फैसले का विरोध किया है। इसके महासचिव मोहन लाल पवार ने कहा, “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के जम्मू-कश्मीर के ओबीसी वर्ग के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करते हैं।” 

वहीं भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने ट्विवटर पर जारी अपने एक संदेश में कहा, “जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की भाजपा सरकार की साजिश के खिलाफ़ गुज्जर-बकरवाल समुदाय के प्रतिनिधिमण्डल से सहारनपुर में मुलाकात हुई। भाजपा राजनीतिक लाभ के इरादे से जम्मू-कश्मीर में अगड़े वर्गों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का ख्वाब पाल रही हैं लेकिन भाजपा को पता होना चाहिए कि गुर्जर समाज केवल जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में भी बड़ी संख्या में हैं। यदि भाजपा वास्तविक एसटी के अधिकारों का उल्लंघन करती है तो उसे चुनाव में गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। मैं सभी आरक्षित श्रेणियों विशेष रूप से भारत के गुर्जर समाज से अपील करता हूं कि वे अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए जम्मू-कश्मीर में अपने भाइयों-बहनों का समर्थन करें।”

एसटी दर्जा के लिए क्या है प्रक्रिया? 

संविधान में अनुसूचित जनजाति की श्रेणी के निर्धारण के लिए कोई मानदंड निर्दिष्ट नहीं है। हालांकि लोकुर समिति (1965) द्वारा निर्धारित पांच विशेषताएं– आदिम लक्षणों के संकेत, विशिष्ट संस्कृति, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क करने में संकोच, भौगोलिक अलगाव और पिछड़ापन को एसटी निर्धारण के लिए मान्यता दी गई है।

किसी भी जाति/समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए पहले राज्य सरकार द्वारा अनुशंसा की जाती है। उसके लिए राज्य के जनजातीय अनुसंधान संस्थान (टीआरआई) से प्राप्त वैध दस्तावेज केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय को देना पड़ता है। उस दस्तावेज को समीक्षा करने के बाद केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय उसे गृह मंत्रालय भेजता है। गृह मंत्रालय इसकी समीक्षा कर इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजता है। वहां से प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद वापस इसे केंद्र सरकार को भेजा जाता है और तदुपरांत केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सहमति से केंद्र सरकार इसे एक विधेयक के रूप में संसद में पेश करती है। संसद द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत अंतिम निर्णय लेते हैं और तब जाकर किसी जाति/समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलता है। 

झारखंड-ओड़िशा-पश्चिम बंगाल में कुड़मी मांग रहे एसटी दर्जा

झारखंड, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में कुड़मी समुदाय एसटी दर्जा के लिए लगातार मांग कर रहा है। इसके लिए वे राज्य स्तर पर संगठन बनाकर अपनी मांग मनवाने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव बना रहे हैं। इस क्रम में दिसंबर, 2022 में झारखंड, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के कुड़मी समाज के प्रतिनिधिमंडल ने एक ज्ञापन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा था। दूसरी ओर आदिवासी समुदाय कुड़मियों के इस मांग को अनुचित बताकर इसका विरोध कर रहा है। 

राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं स्थानीय आदिवासी नेता संजय पहान कहते हैं, “सबसे बड़ी बिडंबना है कि सिस्टम में जो शासक वर्ग है वह राजनीतिक वोटबैंक के लिए एसटी दर्जे का उपयोग रेवड़ियों की तरह कर रहा है और उन्हें एसटी का दर्जा दे रहा है, जो इसके हकदार नहीं हैं। लेकिन एसटी दर्जा कोई मुफ्त में बांटी जानेवाली रेवड़ी नहीं है। आदिवासी बनने के लिए संविधानिक रूप से जो क्राइटेरिया लोकुर समिति और टीआरआई झारखंड ने तय किया है, कुड़मी उसके अंतर्गत नहीं आते।” 

झारखंड के चाईबासा में कुड़मी समुदाय की मांग का विरोध करते स्थानीय आदिवासी

संजय पहान आगे कहते हैं, “टीआरआई झारखंड के लंबे समय तक निदेशक रहे प्रकाश उरांव ने जनजातीय मंत्रालय भारत सरकार को स्पष्ट लिखा था कि कुड़मी समुदाय लोकुर कमिटि के मापदंड के अनुसार नहीं हैं, कुड़मी पहले से शिवाजी के वंशज हैं। तभी ये लोग शिवाजी को भी पूजते हैं। और इनकी महिलाएं भी हिंदू कर्मकांड करती हैं। दरअसल ये लोग आदिवासियों की जमीन लूटने के षड्यंत्र के लिए एसटी का दर्जा मांग रहे हैं।” 

उत्तर प्रदेश : राजभरों को एसटी दर्जा के लिए सर्वे कराएगी योगी सरकार

वहीं उत्तर प्रदेश में ओबीसी में शामिल भर (राजभर) समेत 18 जातियों को एससी दर्जा देने के प्रस्ताव को भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त द्वारा खारिज किया जा चुका है। ऐसे में अब भर को एसटी दर्जा देने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उन 17 जिलों में सर्वे कराएगी, जहां गोंड समुदाय को एसटी का दर्जा प्राप्त है। सरकार का मत है कि भर और राजभर को एसटी दर्जा देना गोंड जनजाति से उनके रोटी-बेटी के रिश्ते पर निर्भर करेगा। 

इस पर आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मदन गोंड कहते हैं, “उत्तर प्रदेश की योगी सरकार यह सब सिर्फ वोट के लिए कर रही है। जब इलेक्शन खत्म हो जाएगा, यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा, क्योंकि सबको पता है कि एसटी दर्जा के लिए जो मापदंड हैं उसके अंतर्गत भर और राजभर नहीं आते। जिस तरह बिहार में नीतीश कुमार द्वारा लोहारों को आदिवासी का दर्जा देने की कोशिश की गई, लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर उसे खारिज कर दिया गया। ऐसे ही भर और राजभर सहित 17 जातियों को उत्तर प्रदेश में एसटी का दर्जा दिए जाने का प्रयास खारिज होगा।” 

मदन गोंड आगे कहते हैं कि “भर जाति के लोगों को समझना होगा कि यह बरगलाने की राजनीति है। किसी जाति को एसटी दर्जा देना कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। कोई भी सरकार हो या कोई भी संस्था हो, वह किसी जाति में जो एसटी नहीं है, उसमें एसटी का नस्ल नहीं पैदा कर सकती।” 

विदित हो कि ब्रिटिश इंडिया में भर (राजभर) को क्रिमिनल ट्राइब्स के अंतर्गत रखा गया था। उत्तर प्रदेश में यह ओबीसी सूची में शामिल है। पारंपरिक रूप से भर और राजभर को एक ही माना जाता है। 

हिमाचल-छत्तीसगढ़ में संशोधित कानून को लेकर सहमति

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा मिल गया। 4 अगस्त, 2023 को राष्ट्रपति ने हाटी समुदाय के एसटी संशोधित बिल पर अपनी मुहर लगा दी। अब संभावना है कि आगामी एक-दो माह में सिरमौर जिले में हाटी समुदाय के एसटी प्रमाण पत्र बनने लगेंगे। 

वहीं छत्तीसगढ़ में धनुहार, धनुवार, किसान, सौंरा, संवरा और बिझिंया समुदायों और भरिया, भूमिया समुदाय के पर्यायवाची के रूप में भुइंया, भुइयां और भुइया समुदायों को एसटी में शामिल करने के लिए राज्यसभा में प्रस्ताव पारित किया गया है। इन जातियों का आरोप था कि लिपिकीय त्रुटियों के कारण एसटी दर्जा एवं संविधान प्रदत्त अधिकारों और लाभ से वंचित किया गया।

हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय एवं अन्य राज्यों के कुछ समुदायों को एसटी दर्जा देने को आदिवासी बुद्धिजीवियों ने इसे भाजपा का राजनीति से प्रेरित कदम बताया है। उनका कहना है कि भाजपा हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हार गई और इन समुदायों को कोई चुनावी लाभ देने में असफल रही। इसलिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ समुदायों को एसटी दर्जा देकर उन्हें लुभाने की कोशिश की जा रही है। आदिवासी दर्जा देने के लिए जो ‘स्पष्ट मानदंड’ निर्धारित हैं उसका पालन नहीं किया जा रहा है। 

वहीं छत्तीसगढ़ के बारे में आदिवासी छात्र संगठन, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष योगेश ठाकुर का कहना है कि “सूबे में जिन 12 जातियों को जनजाति का दर्जा दिया जा रहा है, वह आदिवासी समाज के लिए घातक है। इसमें आदिवासी समाज को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा सवर, सवरा, संवरा/सौंरा जाति वाला कांड, क्योंकि इसमें संवरा या सौंरा जाति ट्राइबल नहीं है। संवरा/सौंरा लोगों ने भ्रम फैलाया है। इन 12 जातियों के लोग सक्षम और जागरूक हैं और एसटी की नौकरी पर ये लोग ज्यादा कब्जा करेंगे। ये लोग लिपिकीय त्रुटि के नाम पर फायदा उठाना चाहते हैं। ये सिर्फ नौकरियों को ही नहीं छिनेंगे, बल्कि आदिवासी के जमीन, जंगल और सभी अधिकारों को भी प्रभावित करेंगे। हम लोग इसका विरोध करेंगे और आनेवाले समय में अन्य जातियों को एसटी दर्जा देने और एसटी का फर्जी सर्टिफिकेट बनाने के मामले में कोर्ट में केस करेंगे।”

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...