h n

बहुजन साप्ताहिकी : जाति सर्वेक्षण मामले में केंद्र ने हलफनामे में किया भूल-सुधार

जातिगत सर्वेक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से जुड़ी खबर के अलावा पढ़ें रोहिणी आयोग के संबंध में उठ रहे सवाल व दलित-बहुजनों से जुड़ीं अन्य सम-सामयिक खबरें

बिहार में हुए जाति सर्वेक्षण का मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। पटना हाई कोर्ट द्वारा इस मामले में दायर सभी याचिकाओं को निरस्त किए जाने के बाद तथाकथित स्वयंसेवी संगठन यूथ फॉर इक्वलिटी के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस मामले में गत 28 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में अजीब वाकया सामने आया। हुआ यह कि सुबह में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार की तरफ से एक हलफनामा दिया गया, जिसे शाम होते ही उसे संशोधित करना पड़ा।

दरअसल, सुबह में दायर हलफनामे में केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि जनगणना कानून, 1948 के अनुसार जनगणना कराने का अधिकार केवल भारत सरकार को है। साथ ही केंद्र ने अपने हलफनामे के पांचवें पैराग्राफ में उद्धृत किया कि जनगणना या जनगणना के जैसा कुछ और प्रक्रिया करने का अधिकार किसी और संवैधानिक और गैर-संवैधानिक निकाय को नहीं है। हालांकि शाम होते-होते केंद्र की तरफ से एक संशोधित हलफनामा पेश किया गया, जिसमें पांचवें पैराग्राफ को भूलवश जोड़े जाने की बात कही गई।

इस संबंध में पटना हाई कोर्ट के अधिवक्ता मनीष रंजन ने कहा कि “सामान्य तौर पर हलफनामे में आंशिक संशोधन बेहद सामान्य बात है। केंद्र सरकार ने भी यही किया है। अब यदि इसका निहितार्थ समझने की बात कही जाय ताे यह कहा जा सकता है कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दिग्भ्रमित करने की कोशिश की। बाद में उसे लगा होगा कि जो बात संविधान में उद्धृत ही नहीं है, उसके कारण उसकी किरकिरी हो सकती है तो उसने संशोधित हलफनामा पेश किया। इस मामले में बस इतना ही है।”

सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली

रोहिणी आयोग की रपट प्रासंगिक नहीं

पिछड़ा वर्ग के उपवर्गीकरण को लेकर केंद्र सरकर द्वारा गठित जी. रोहिणी आयोग ने अपनी रपट राष्ट्रपति को समर्पित कर दिया है। इस संबंध में ऑल इंडिया ओबीसी वेलफेयर फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव जी. करुणानिधि ने कहा है कि उनकी यह रपट 1931 में हुए अंतिम जातिगत जनगणना पर आधारित है, इस कारण इसके निष्कर्ष संदिग्ध हैं। उन्होंने कहा कि 90 साल पुराने आंकड़े के आधार पर कोई निर्णय लेना लोगों के साथ अन्याय होगा। सिर्फ यह मान लेने भर की बात नहीं है कि ओबीसी की पंद्रह जातियां ही आरक्षण का अधिक लाभ उठा रही हैं, तो यह गलत है क्योंकि हमें यह भी देखना चाहिए कि किन जातियों की कितनी आबादी है। इसलिए जब तक नए सिरे से जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी, तब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है। 

भागलपुर में विभिन्न कार्यक्रमों में जुटे दलित-बहुजन

गत 27-29 अगस्त को बिहार के भागलपुर और कटिहार में सामाजिक न्याय आंदोलन व बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम आयोजित किए गए। पहले दिन 27 अगस्त, 2023 को बिहार के भागलपुर जिले के बिहपुर के झंडापुर (काली कबूतरा स्थान) में आयोजित बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) के नवगछिया अनुमंडल सम्मेलन को संबोधित करते हुए बहुजन चिंतक डॉ. विलक्षण रविदास ने कहा कि “पहले से बदहाल संपूर्ण सरकारी शिक्षा व्यवस्था की नई शिक्षा नीति-2020 के कारण बदहाली बढ़ेगी। शिक्षा महंगी होगी। सरकारी स्कूल-कॉलेज बड़े पैमाने पर बंद किए जाएंगे। नई शिक्षा नीति-2020 बहुजनों को शिक्षा हासिल करने से रोकने की नीति है, जिससे बहुजनों पर मनुवादी गुलामी का शिकंजा मजबूत होग।”

नवगछिया में सम्मेलन के दौरान वक्तागण

इस मौके पर पत्रकार-लेखक डॉ.सिद्धार्थ रामू ने कहा कि भाजपा-आरएसएस दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों को मुसलमानों से लड़ाकर हिंदू पहचान से जोड़ती है और मनुवाद की रक्षा करती है। इसलिए भाजपा-आरएसएस लगातार सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात की मुहिम को आगे बढ़ाने में लगी रहती है। बहुजनों का दुश्मन मुसलमान नहीं, बल्कि भाजपा-आरएसएस है।

सम्मेलन को सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रिंकु यादव ने भी संबोधित किया और कहा कि आज संविधान और लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश हो रही है। संविधान और लोकतंत्र नहीं बचेगा तो बहुजन युवाओं के शिक्षा व रोजगार हासिल करने का रास्ता बंद हो जाएगा। बहुजन युवाओं को बेहतर भविष्य के लिए शिक्षा-रोजगार के अधिकार के लिए लड़ने के साथ-साथ संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के लिए ताकत से खड़ा होना होगा।

दलित अधिकार आंदोलन का राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न, 4 दिसंबर को दिल्ली में प्रदर्शन

दलितों के ऊपर अत्याचार के खिलाफ 4 दिसंबर को विरोध मार्च निकाला जाएगा। इसके लिए ‘दिल्ली चले’ का आह्वान किया गया है। यह आह्वन गैर राजनीतिक दलित संगठन ‘दलित अधिकार आंदोलन’ के द्वारा किया गया है। बीते 26-27 अगस्त को हैदराबाद में संपन्न इसके राष्ट्रीय सम्मेलन में यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष व जेएनयू के प्रोफेसर रहे डॉ. सुखदेव थोराट ने कहा कि आज भी दलित छुआछूत के शिकार हैं। उनके खिलाफ बर्बरता जारी है। नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन किए जाते रहे हैं। लेकिन इस छुआछूत और अत्याचार के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़नी ही होगी। 

सम्मेलन के दौरान यह निर्णय लिया गया कि आगमी 4 दिसंबर को दिल्ली में विरोध मार्च निकाला जाएगा। इसके लिए दस सदस्यीय समिति का गठन किया गया। यह समिति अगले वर्ष होनेवाले चुनाव के लिए दलितों की तरफ से एक एजेंडा पत्र तैयार करेगी। इस समिति में मल्लाएपल्ली लक्षमय्या, रामचंद्र दोरने, निर्मल, धीरेंद्र झा, गुलजार सिंह गोरिआ, विक्रम सिंह, करनैल सिंह, बीणा पल्लिकल, एन. साईं बालजी और बी. वेंकट आदि शामिल हैं। 

गुजरात में पंचायती व नगर निगम चुनावों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण

बीते 29 अगस्त, 2023 को गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सूबे के पंचायती राज व स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। इस घोषणा को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अहम माना जा रहा है। बताते चलें कि वहां पहले ओबीसी के लिए 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित थीं, जिसे अब बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया गया है। वहीं दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षण पूर्ववत दस प्रतिशत ही रहेगा। इस फैसले के बारे में मुख्यमंत्री ने मीडियाकर्मियों को बताया कि ओबीसी आरक्षण बढ़ाने का यह फैसला सेवानिव‍ृत्त न्यायाधीश के.एस. जवेरी के नेतृत्व में गठित एक कमिटी की रिपोर्ट के आलोक में किया गया। राज्य सरकार ने इस समिति का गठन इंपीरिकल डाटा संग्रह व अध्ययन के लिए किया था। समिति ने इस साल अप्रैल माह में ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।

(संपादन : राजन/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...