बीते 8 सितंबर, 2023 को जब दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन का आगाज हो रहा था, तभी देश के विभिन्न राज्यों के सात विधानसभा क्षेत्रों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजों की घोषणा हो रही थी। इन उपचुनावों में इंडिया गठबंधन को चार और भाजपा गठबंधन को तीन सीटों पर सफलता मिली। हालांकि अभी नहीं कहा जा सकता है कि ये परिणाम आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए कोई खास निर्णायक महत्व रखते हैं। यह कई बार साबित हो चुका है कि पिछले उपचुनावों और उसके बाद हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के नतीजे उलटे हुए थे। वैसे जनता की राय अलग होती है। यह तो वही तय करती है कि किसे कब विजयी बनाना है और कब हराना है। लेकिन विपक्षी दलों को उपचुनाव में मिली जीत से गुदगुदी और खुशी होना एकदम स्वाभाविक है। वैसे भी इंडिया के बैनर तले विपक्षी दलों की यह पहली परीक्षा थी, जिसमें उन्हें उत्तीर्ण तो कहा ही जा सकता है।
निश्चित तौर पर उपचुनाव के नतीजे मिले-जुले रहे हैं। फिलहाल, भाजपा के विरोध में विपक्षी दल एकजुट नजर आ रहे हैं। इस उपचुनाव में भाजपा की हार होती नहीं दिख रही है, उसने अपनी पिछली 3 सीटें बरकरार रखी हैं। हालांकि भाजपा पश्चिम बंगाल में धुपगुड़ी निर्वाचन क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस से हार गई, लेकिन उसने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को हराकर त्रिपुरा में बॉक्सनगर निर्वाचन क्षेत्र जीत लिया। उत्तराखंड में बागेश्वर और त्रिपुरा में धनपुर निर्वाचन क्षेत्र पर अपना कब्जा बरकरार रखा। दूसरी ओर कांग्रेस ने केरल में पुथुपल्ली और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास डुमरी सीट बरकरार है। इसलिए नतीजे सबके पास बराबर के हैं, केवल वोटों का प्रतिशत ही बदला है। और यही वोटों के प्रतिशत आनेवाले चुनावों में जिताने का फॉर्मूला तय करनेवाले हैं।
उत्तर प्रदेश की घोसी सीट का नतीजा भाजपा के लिए चौंकाने वाला और इंडिया गठबंधन के लिए राहत देने वाला है, क्योंकि इस सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने भाजपा के दलबदलू और मजबूत माने जानेवाले दारासिंह चौहान को 42,759 वोटों के अंतर से हरा दिया।
बताते चलें कि दारासिंह चौहान की राजनीतिक शुरुआत बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम से हुई। वह बहुजन समाज पार्टी के नेता और विधायक के तौर पर जाने जाते थे। लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते उन्होंने सपा और भाजपा का दामन थाम लिया। घोसी में मौजूदा सपा पार्टी से विधायक होने के बावजूद वे पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उनके दोनों उपमुख्यमंत्रियों और विशेष रूप से ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद ने उपचुनाव में दारासिंह चौहान को जिताने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। इससे एक संकेत तो यह मिलता ही है कि जनता अब योगी आदित्यनाथ और भाजपा दोनों को सबक सिखाने को तैयार है और इस उपचुनाव में उसने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं।
घोसी का परिणाम बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए भी चेतावनी है। बसपा प्रमुख मायावती ने घोसी में अपना उम्मीदवार न उतारते हुए समर्थकों से ‘नोटा’ (इनमें से कोई नहीं) पर वोट करने को कहा था। लेकिन विजयी वोटों की संख्या से पता चलता है कि, पिछले 2022 के चुनावों में जिन 21.12 प्रतिशत मतदाताओं ने बसपा का समर्थन किया था, उन्होंने उससे अपना मुंह मोड़ लिया और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का खुलकर समर्थन किया। जबकि ‘नोटा’ के तहत सिर्फ 1728 वोट मिले। इसका मतलब यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में मायावती के ‘एकला चलो रे’ के फॉर्मूले को तगड़ा झटका लगेगा और बसपा के मौजूदा 10 सांसदों की संख्या शून्य भी हो सकती है।
यदि इंडिया गठबंधन के घटक दल, मुख्य रूप से कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राजद, जदयू, शिवसेना और वामपंथी दल 2024 के लोकसभा के लिए भाजपा के खिलाफ केवल एक उम्मीदवार खड़े करते हैं, तब अगले लोकसभा चुनाव में एक अलग तस्वीर देखी जा सकती है। इसकी एक झलक घोसी विधानसभा क्षेत्र के मौजूदा उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को मिले 37.54 प्रतिशत की तुलना में समाजवादी पार्टी के 57.19 प्रतिशत वोटो से देखी जा सकती है।
हालांकि, अगर हम 2022 के चुनाव में भाजपा को मिले 33.57 फीसदी वोट और 2023 के उपचुनाव में मिले 37.54 फीसदी मिले वोटो की तुलना करें, तो भाजपा ने अपने वोट बैंक में 3.97 फीसदी का इजाफा ही किया है। जबकि उत्तराखंड के बागेश्वर निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस ने 2022 (34.5 प्रतिशत) की तुलना में 2023 (45.96 प्रतिशत) में 11.46 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि की है। लेकिन उसके बावजूद, कांग्रेस हार गई क्योंकि भाजपा का प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में 3.19 प्रतिशत का ज्यादा रहा है। इस चुनावी आंकड़े से पता चलता है कि भाजपा के वोटों की संख्या बिना किसी कमी के बढ़ रही है। यह विपक्ष के लिए चिंता का बड़ा विषय है।
इसके आधार पर, यदि विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में बिना गठबंधन के उतरते हैं, तो उन्हें अनिवार्य रूप से हार का सामना करना पड़ेगा और भाजपा सत्ता में वापस आ जाएगी। उसके बाद, जैसा कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कहते हैं, भाजपा अगर 2024 में वापस सत्ता में आएगी तब देश में चुनाव की संभावना ही ख़त्म हो जाएगी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
(संपादन : नवल/अनिल)