गत 27 सितंबर, 2023 को ‘ठाकुर का कुआं’ कविता संसद में पढ़ने वाले राजद सांसद मनोज झा का बचाव करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कहा कि मनोज झा विद्वान आदमी हैं। बात सही भी है। मनोज झा संसद के साथ-साथ अलग अलग मंचों पर दिए गए अपने धाराप्रवाह और तर्कपूर्ण भाषण के लिए जाने जाते हैं। लेकिन संसद भवन से कई सौ किलोमीटर दूर बिहार की राजधानी पटना से सटे खुसरूपुर में भी एक आदमी लालू जी के बोलने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।
बेहद दुबला-पतला यह आदमी चाहता है कि लालू प्रसाद यादव उसकी भाभी पर हुए अत्याचार पर बोलें। अगर लालू जी नहीं भी बोलें तो उनकी पार्टी का कोई प्रभावशाली नेता उसकी भाभी के पक्ष में आवाज उठाए। उनसे उनके गांव आकर मुलाकात करे, जहां उसने बिजली के खंभों पर बड़ी शिद्दत से पेंट किया है– “आई लव आरजेडी”।
यह शख्स है अशोक दास। अशोक दास पटना जिले के खुसरूपुर प्रखंड के राष्ट्रीय जनता दल दलित प्रकोष्ठ के बीते 15 साल से अध्यक्ष हैं। खुसरूपुर के मोसिमपुर गांव में जिस दलित महिला को नग्न करके पीटा और जिसके मुंह पर पेशाब किया गया, वह अशोक दास की भाभी हैं। मैं जब उनसे मिलने गई तो वह बिना खिड़की वाले एक बंद कमरे में लेटी थीं, जिसमें पंखा रेंग रहा था। मेरे पहुंचने पर उन्होंने अपने चेहरे को रंग-बिरंगे गमछे से ढंक लिया ताकि उनकी पहचान किसी तस्वीर में उजागर न हो।
चटक पीली साड़ी में लिपटी पड़ी इस दुबली-पतली औरत के दोनों पैर में कम-से-कम पांच जगह गोलाकर नीले निशान उभर आए हैं। दस से बारह सेंटीमीटर के व्यास के ये निशान 23 सितंबर की रात उसके साथ हुई क्रूरता की वीभत्स कहानी कह रहे हैं। सिर के दाहिने हिस्से में पीली पड़ चुकी पट्टी बंधी है, जिसको बदला नहीं गया है। उस औरत के आसपास बैठी महिलाएं कहती हैं कि सिर का हिस्सा जो बालों से ढंका है, वह जगह चोट की वजह से फूल गया है।
गत 23 सितंबर की रात खुसरूपुर में घटी इस घटना में जातीय दबंगई, महाजनी प्रथा का अभी भी चलन में होना, महिला के खिलाफ हिंसा के साथ-साथ एक राजनीतिक दल द्वारा अपने जातीय वोट के लिए अपने समर्पित कार्यकर्ता को इग्नोर करके चुप्पी साध लेना शामिल है। पहले बात उस घटना की, जो अशोक दास की भाभी के साथ घटित हुई।
अशोक दास की भाभी यानी पीड़िता सरकारी स्कूल में रसोईया का काम करती है। वह गंगा नाम के जीविका समूह से भी जुड़ी है। उन्होनें अपने इलाज के लिए 1500 रुपए अपने ही गांव के यादव जाति से आने वाले प्रमोद सिंह यादव से तकरीबन दो साल पहले उधार लिए थे। पीड़िता का कहना है कि दस दिन के अंदर ही उसने ये रुपए प्रमोद सिंह यादव को वापस कर दिए थे। लेकिन इधर कुछ दिनों से प्रमोद सिंह और उनका परिवार पीड़िता पर रुपए वापस करने का दबाव बना रहा था।
दरअसल प्रमोद सिंह यादव 1500 रुपए पर लगने वाले सूद के रुपए चाहता था, जबकि पीड़िता का पक्ष था कि हमने दस दिन के अंदर कर्ज वापस कर दिया है, तो फिर सूद का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। पीड़िता के मुताबिक 22 सितंबर की शाम इसी सूद को वसूलने के लिए प्रमोद की पत्नी ममता देवी और उनका बेटा अंशु उसके घर आए और रुपए मांगने लगे। जब पीड़िता ने रुपए देने से इंकार किया तो अंशु ने उसकी छाती पर ईंट फेंक कर मारा। अगले दिन सुबह जब पीड़िता पानी लाने अपने घर से कुछ दूरी पर लगे चापाकल पर गई तो उसके ऊपर लाठी से हमला किया गया। उसे यह धमकी दी गई कि उसे नंगा करके नचाया जाएगा।
इन हमलों से आठ परिवार का यह दलित टोला दहशत में आ गया। सबने खुद को घरों में बंद कर लिया। लेकिन 23 सितंबर की रात करीब 10 बजे के करीब जब पीड़िता की भाभी को शौचालय जाने की जरूरत महसूस हुई, तो पीड़िता को पानी लाने के लिए अपने घर से बाहर निकलकर हैंडपंप के पास जाना पड़ा। वहां पहले से ही घात लगाए प्रमोद सिंह यादव ने पीड़िता से कहा कि उसने उसके पति सुबोध दास को बंधक बना लिया है।
रविदास टोला स्थित पीड़िता के घर से प्रमोद का घर कुछ ही दूरी पर है। प्रमोद सिंह यादव की बात सुनकर पीड़िता उसके घर की तरफ दौड़ी। पीड़िता का आरोप है कि यहीं उसको घर में बंद करके नंगा किया गया। फिर प्रमोद सिंह यादव सहित 6 अभियुक्तों ने उसे मिलकर पीटा। तकरीबन दस मिनट मारने के बाद प्रमोद सिंह के कहने पर उसके बेटे अंशु ने उनके मुंह पर पेशाब की। जिसके बाद पीड़िता किसी तरह अपनी जान बचाकर नग्न हालत में ही भागी। इधर शौचालय से निकलने पर जब पीड़िता की भाभी ने उसे मौजूद नहीं पाया तो ढूंढना शुरू किया। हल्ला मचा तो परिवार के लोगों ने देखा कि वह नग्न हालत में आ रही है, जिसके बाद घर की स्त्रियां उसे साड़ी लपेटकर घर लाईं।
बाद में पुलिस को परिवार वालों ने 112 नंबर पर कॉल किया, जो तकरीबन 45 मिनट बाद रविदास टोला पहुंची। पुलिस पीड़िता को इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ले गई, जहां से उन्हें 24 सितंबर की शाम को छुट्टी दे दी गई। इस तरह 23 सितंबर की रात घटित इस घटना की प्राथमिकी 24 सितंबर की सुबह ही दर्ज हो सकी। पीड़िता के पति के बड़े भाई (भैंसुर) बिजली दास ने फारवर्ड प्रेस को बताया, “एफआईआर जब हम लोग करने गए तो पुलिस वाले पहले से ही अभियुक्तों के साथ बैठे थे। बाद में पुलिस ने एफआईआर कर ली, लेकिन उसकी कॉपी नहीं दे रहे थे। जब भीम आर्मी वाले लोगों ने दबाव बनाया तब एफआईआर की कॉपी दी गई।”
इस मामले में प्रमोद सिंह यादव, उसके बेटे अंशु और चार अज्ञात पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। इनमें से प्रमोद सिंह यादव ने आत्मसमर्पण कर दिया है और मारपीट की घटना को स्वीकार किया है, लेकिन उसने महिला को नग्न करके पीटने और मुंह पर पेशाब करने से इंकार किया है। जबकि प्रमोद सिंह यादव की पत्नी और उनका बेटा अंशु फरार है। प्रमोद सिंह यादव के घर में मौजूद उनकी भाभी रेखा देवी ने कहा कि 22 सितंबर की सुबह ही प्रमोद सिंह यादव की पत्नी ममता देवी और बेटा अंशु अपने नाना के घर चले गए थे।
इस घटना के बाद से ही कर्जदार दलित लोगों के घरों में ताला लटक गया है और कुछ ने अपने घर की बेटियों को दूसरी जगह भेज दिया है। पीड़िता के तीन बच्चों में सबसे छोटी बेटी सात साल की है, जिसकी सुरक्षा को लेकर पीड़िता दहशत में है। फिलहाल पीड़िता के घर राजनीतिक दलों और महिला संगठनों की टीम का आना-जाना जारी है। लेकिन अशोक दास को अपनी पार्टी यानी राजद के किसी नेता का इंतजार है। वे बताते हैं कि स्थानीय विधायक अनिरुद्ध यादव तक उनके फोन करने पर आए।
दरअसल अशोक दास राजद का कोई मामूली कार्यकर्ता नहीं है। साल 2003-04 के आसपास अशोक कभी बिहार के अखबारों के फोटोग्राफर्स के चहेते हुआ करते थे। वजह थी इनकी लालू भक्ति। अपनी लालू भक्ति में ये अजब-गजब कारनामे को अंजाम देते थे। साल 2004 में लालू यादव जब सारण से लोकसभा चुनाव जीते तो अशोक दास ने उनकी जीत पर अपने खून से इसकी इबारत लिखकर बधाई दी थी।
इसी तरह वो कभी लालटेन सीने पर रखकर राजद को वोट देने की अपील करते। राजद के उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए वो घंटों एक पैर पर खड़े रहते। सभी लोग शिक्षित हों, इसके लिए अशोक ने 24 अगस्त, 2004 को पटना से दिल्ली तक की यात्रा की थी। वह अपने गांव में भी लोगों को अपना नाम-पता लिखना सिखाते रहे हैं। अशोक दास बताते हैं कि रेल मंत्री रहते हुए लालू जी ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया, लेकिन वे नहीं माने।
आज जब दहशत में अशोक दास की पत्नी और उनके बच्चे अपने घर की छत से नीचे उतरने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे तो अशोक दास टूट गए हैं। वे कहते हैं कि पार्टी कुछ करे, नहीं तो हमको निर्णय लेना पड़ेगा। अगर मोसिमपुर गांव की जातीय संरचना देखें, तो यहां यादवों का दबदबा है। चाईं, तांती, रविदास और कुछ घर मुसलमानों के भी इस गांव में हैं।
यहां के यादव परिवार मुख्यत: दो काम करते हैं– खेती और सूद पर रुपए लगाना। इलाके के सरपंच दिनेश सिंह बताते हैं, “यहां का 100 परिवार कर्जा देने का काम करता है। सैकड़ा पर तीन से चार रुपए महीना सूद पर। हम इसका बाकायदा कागज पत्तर (रिकार्ड) रखते हैं। और कभी इस तरह का विवाद होता है तो पंचायती करके मामला सुलझा लिया जाता है। इस मामले में ऐसा नहीं हो पाया।” साफ शब्दों में कहें तो यह एक तरह का गुंडा बैंक है। साथ ही बिहार सरकार के दावे – ग्रामीण बिहार में महाजनी प्रथा पर लगाम लग गई है – की भी पोल खोलता है।
चूंकि इस मामले में राजद के कोर वोटर यादव आरोपों के घेरे में है, इसलिए पार्टी चुप्पी साधे बैठी है। पार्टी की यह चुप्पी ही अशोक दास को बेचैन कर रही है। वे कहते हैं, “पार्टी को तो गरीब-गुरबा के न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए। लेकिन इतने घिनौने अपराध में भी यादव जाति को देख रही है।”
बिहार में सामाजिक न्याय आंदोलन की महत्वपूर्ण कड़ी लालू प्रसाद यादव को भगवान का दर्जा देने वाले अशोक दास जैसे कई लोग आपको मिल जाएगें। लेकिन अहम सवाल यह है कि अशोक दास जैसे समर्पित कार्यकर्ता की मुश्किल की इस घड़ी में सत्तासीन पार्टी और उसके नेता का स्टैंड क्या है?
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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