तमिलनाडु के मंत्री एवं मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे उदयानिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी मीडिया में इन दिनों सुर्खियों में है। इतना ही नहीं, उनकी टिप्पणी पर सनातन धर्म के कुछ साधुओं ने बड़े हंगामे के साथ उन्हें मारने पर इनाम देने की घोषणा कर दी है। सनातन धर्म की चर्चाओं से सामान्य हिंदू अधिक भ्रमित हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे तो हिंदू हैं, फिर यह सनातन धर्म क्या है?
वास्तव में उनमें यह भ्रम है कि उनका असली रिश्ता किस धर्म से है? सनातन से या हिंदू से? इसीलिए सनातन और हिंदू धर्म के वास्तविक रिश्ते को परखना और समझना जरूरी है। उदयानिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को सामाजिक असमानता, भेदभाव, ऊंच-नीच, जातिवाद और महिलाओं के अवमूल्यन से जोड़ा था। उन्होंने कहा था कि जैसे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों को ख़त्म किया जाता है, वैसे ही सनातन धर्म के असमानतावादी सिद्धांतों को ख़त्म करने की आवश्यकता है। लेकिन आरएसएस और उनसे जुड़े संगठनो ने उदयानिधि के इस टिप्पणी को ‘नरसंहार’ के रूप में प्रक्षेपित किया।
वास्तव में सनातन धर्म क्या है?
वस्तुत: ‘सनातन’ पालि भाषा का शब्द है। बुद्ध ने सनातन शब्द को अपरिवर्तनीय स्थिति से जोड़ा था। जैसे, वैर से वैर का बढ़ना और प्यार से प्यार का बढ़ना, जन्मे हुए इंसान का एक दिन निर्वाण होना तय है। सनातन एक प्रकृतिसूचक शब्द है, जिसमें बदलाव नहीं हो सकता, क्योकि वह सनातन है। बुद्ध ने प्रकृति, सूर्य, चंद्रमा, जल, अग्नि, वायु और धरती को सनातन कहा था, जो अनादि काल से अस्तित्व में है, और रहेंगे। इसे सनातन के मूल अर्थ में जाना जाता है। सनातन में बदलाव की कोई भी गुंजाइश नहीं होती।
लेकिन कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए सनातन के नाम से गलत संदेश देकर फायदा उठाते हैं। ज्यादातर सवर्ण समाज सनातन का पक्षधर होता है। उन्होंने सनातन के मूल अर्थ को बदलकर धर्मशास्त्रों के साथ जोड़कर शास्त्रों में कही हुई बातों को सनातन करार दे दिया। सनातन धर्म के शास्त्रों में वेद, उपनिषद और स्मृतियां शामिल है। सनातन धर्म का पालन मुख्यत: ब्राह्मण सहित ऊंची जातियों के लोग करते है, क्योकि वे खुद मानते है कि सनातन धर्म ही उनका मूल धर्म है।
ब्राह्मणों द्वारा सनातन शब्द का दुरुपयोग
सनातनी ब्राह्मणों द्वारा कुछ शास्त्रों का निर्माण किया गया है। इन शास्त्रों में उस समय की कुछ कहानियां और बातें आई हैं। इन मिथकीय कहानियों में कही गई बातें आज के समय में गलत, विषमतावादी, समाज में फूट डालनेवाली और अन्याय का समर्थन करनेवाली हैं। वे इसे ही सनातन कहते हैं। इन शास्त्रों के अनुसार, जातिवाद, वर्णवाद, छुआछूत, परदेश गमन, स्त्री शिक्षा बंदी, ऊंच-नीच, शूद्रों एवं महिलाओं का मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध आदि वर्जनाएं ही सनातन धर्म है। ऐसी बातों और बर्तावों में बदलाव करना जरूरी है। लेकिन कट्टर सवर्णवादी लोग बदलाव के विरोधी हैं और कहते रहते हैं कि उनका यह विषमतावादी धर्म सनातन है, इसमें बदलाव नहीं हो सकता।
हाल ही में, जब दिल्ली में संसद की नई इमारत का उद्घाटन किया गया तब उसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को शामिल नहीं किये जाने पर यह सवाल उठा कि क्या उन्हें आदिवासी होने के कारण उद्घाटन कार्यक्रम से दूर रखा गया? यह सवाल बेजा सवाल नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी एक बार मंदिर के द्वार पर ही पूजा करनी पड़ी थी, वह भी तब जब वे राष्ट्रपति थे। यह साफ दिखाता है कि खुद को सनातनी कहने वाले छुआछूत जैसी अनेक कुप्रथाओं को बरकरार रखना चाहते हैं।
सनातन धर्म और हिंदू धर्म में विरोधाभास
हिंदू शब्द और धर्म का इतिहास बहुत प्राचीन नहीं है। हिंदू शब्द का अस्तित्व किसी भी शास्त्रों, वेदों और रामायण व महाभारत जैसे महाकाव्यों में नहीं मिलता। इसलिए हिंदू शब्द पौराणिक एवं पुराना नहीं है। हिंदू शब्द आदि शंकराचार्य के समय में भी अस्तित्व में नहीं था। उनके समय उत्तर के कुछ हिस्से और दक्षिण भारत में शैव और वैष्णव जैसे पंथों का उदय हुआ था। सनातन धर्म का वैदिक धर्म से रिश्ता है, क्योंकि दोनों धर्म को माननेवाला समूह केवल आर्य ब्राह्मण है। लेकिन सनातन धर्म का हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। भारत में हिंदू शब्द का प्रयोग तेरहवीं शताब्दी में मुसलमान आक्रमणकारियों द्वारा सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने भारत को हिंदुस्तान और यहां के लोगों को हिंदू कहना शुरू किया। भारत में हिंदू शब्द के पहले ही सनातन एवं वैदिक धर्म का अस्तित्व था। लेकिन जैसे ही प्रचलित बहुजन समाज में हिंदू शब्द अधिक लोकप्रिय होने लगा और उसकी सांस्कृतिक व्यवस्था को हिंदू शब्द से जाना जाने लगा, वैसे ही ब्राह्मणों ने खुद को हिंदू कहना शुरू कर दिया।
महायानी बुद्धिस्ट कैसे बने हिंदू?
उल्लेखनीय है कि भारत में बहुजन समाज की संख्या पहले भी अधिक थी और आज भी है। इस बहुजन समाज में ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और धर्मपरिवर्तित लोगों का समावेशन होता है। इस बहुजन समाज पर बौद्ध धर्म का अधिक प्रभाव था। कालांतर में बौद्ध धर्म का विभाजन हीनयान और महायान के तौर पर अधिक तेजी से हुआ। महायान पंथ एक नया स्वरूप ले रहा था, जिसके कारण मूर्तिपूजा, तंत्रविद्या और चमत्कार का अधिक विस्तार हुआ। साथ ही खेती और सामाजिक चेतना के साथ मनोरंजन के नए प्रयोग भी विकसित हो रहे थे। इस विकास के साथ बहुजन समाज का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ताना-बना बढ़ा तथा उनमें स्थिरता आई। महायानों द्वारा भारत के अनेक जगहों पर विहारों एवं स्तूपों का का निर्माण किया गया और उसमें बुद्ध की मूर्तियां स्थापित की गईं। लेकिन आदि शंकराचार्य के समय से महायानी बौद्धों के मंदिरों पर कब्ज़ा करना शुरू किया गया। मंदिरों में बुद्ध की मूर्ति में बदलाव किया गया तथा मंदिरों का संचालन ब्राह्मण वर्ग करने लगा। तत्कालीन राजा ब्राह्मणों की सलाह से राज चलाने लगे। महायानी बहुजन समाज, जो तंत्र-मंत्र, मूर्तिपूजा को मानता था, वह समाज ब्राह्मण द्वारा संचालित मंदिरों में जाकर ब्राह्मण पंडों की बातों पर विश्वास करने लगा। सातवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक पुराणों, महाकाव्यों और स्मृतियों का निर्माण किया गया। प्रमाण यह कि आज भी अनेक प्रसिद्ध मंदिरों में बुद्ध की प्रतिकृतियां दिखाई देती हैं। यहां तक कि जमीन के नीचे जब कभी उत्खनन किया जाता है, वहां बौद्ध संस्कृति के अवशेष मिलते हैं। इतना ही नहीं, गौतम बुद्ध की मूर्तियों पर गेरूआ रंग चढ़ाकर उसे देवी और देवता रूप में पूजा की जा रही है और हर मंदिर की काल्पनिक कहानी लोगों को सुनाई जाती है।
खुद को सनातनी मानने वालों से सवाल यही है कि क्या आज का हिंदू धर्म या जिसे वे सनातन कह रहे हैं, वह महायान पंथ का वैदिक रूपांतरण नहीं है?
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, संस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in