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बिहार जाति गणना रिपोर्ट से आरक्षण कोटा बढ़ाने की जमीन तैयार, मायावती-अखिलेश सहित अनेक नेताओं की मांग

“बीएसपी को प्रसन्नता है कि देश की राजनीति उपेक्षित बहुजन समाज के पक्ष में इस कारण नया करवट ले रही है, जिसका नतीजा है कि एससी/एसटी आरक्षण को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने वाले तथा घोर ओबीसी व मंडल विरोधी जातिवादी एवं सांप्रदायिक दल भी अपने भविष्य के प्रति चिंतित नजर आने लगे हैं।” पढ़ें, मायावती व अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया

गत 2 अक्टूबर, 2023 को बिहार की राजधानी पटना में राज्य सरकार द्वारा जाति आधारित गणना-2022 की जब रपट आई तब पूरे देश के दलित-बहुजनों ने इसका स्वागत किया। इनमें बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी शामिल रहे। स्वागत करनेवालों में कांग्रेस के नेता व सांसद राहुल गांधी भी रहे। इस संबंध में राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने गत 3 अक्टूबर, 2023 को यह बयान देकर वर्षों से चल रही मांग को मजबूती दे दी कि बिहार में आरक्षण कोटा बढ़ाया जाएगा। 

इससे पहले 2 अक्टूबर, 2023 को रपट पर अपनी प्रतिक्रिया में लालू प्रसाद ने कहा– “आज गांधी जयंती पर इस ऐतिहासिक क्षण के हम सब साक्षी बने हैं। बीजेपी की अनेक साजिशों, कानूनी अड़चनों और तमाम षड्यंत्र के बावजूद आज बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे को रिलीज किया। ये आंकडे़ वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और तरक़्क़ी के लिए समग्र योजना बनाने एवं हाशिए के समूहों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए नज़ीर पेश करेंगे। सरकार को अब सुनिश्चित करना चाहिए कि जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी हो। हमारा शुरू से मानना रहा है कि राज्य के संसाधनों पर न्यायसंगत अधिकार सभी वर्गों का हो। केंद्र में 2024 में जब हमारी सरकार बनेगी तब पूरे देश में जातिगत जनगणना करवायेंगे और दलित, मुस्लिम, पिछड़ा और अति पिछड़ा विरोधी भाजपा को सत्ता से बेदखल करेंगे।”

वहीं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांग करते हुए कहा– “बिहार सरकार द्वारा कराए गए जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने की खबरें आज काफी सुर्खियों में हैं तथा उस पर गहन चर्चाएं जारी है। कुछ पार्टियां इससे असहज ज़रूर हैं, किंतु बीएसपी के लिए ओबीसी के संवैधानिक हक के लंबे संघर्ष की यह पहली सीढ़ी है। बीएसपी को प्रसन्नता है कि देश की राजनीति उपेक्षित बहुजन समाज के पक्ष में इस कारण नया करवट ले रही है, जिसका नतीजा है कि एससी/एसटी आरक्षण को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने वाले तथा घोर ओबीसी व मंडल विरोधी जातिवादी एवं सांप्रदायिक दल भी अपने भविष्य के प्रति चिंतित नजर आने लगे हैं। वैसे तो यूपी सरकार को अब अपनी नीयत व नीति में जनभावना व जन अपेक्षा के अनुसार सुधार करके जातीय जनगणना/सर्वे अविलंब शुरू करा देना चाहिए, किंतु इसका सही समाधान तभी होगा जब केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराकर उन्हें उनका वाजिब हक देना सुनिश्चित करेगी।”

इस संबंध में कांग्रेस के नेता व सांसद राहुल गांधी ने लालू प्रसाद के बयान – जितनी जिसकी भागीदारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी – को आगे बढ़ाते हुए ‘एक्स’ पर जारी अपने बयान में कहा कि हमारी सरकार बनने पर पूरे देश में जातिगत जनगणना कराई जाएगी। उन्हेंने कहा– “बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां ओबीसी + एससी + एसटी 84 प्रतिशत हैं। केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 ओबीसी हैं, जो भारत का मात्र 5 प्रतिशत बजट संभालते हैं। इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है। जितनी आबादी, उतना हक़ – ये हमारा प्रण है।”

लालू प्रसाद, मायावती, राहुल गांधी, अखिलेश यादव व अली अनवर

वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा– “समाजवादी पार्टी लागतार जातिगत जनगणना के पक्ष में रही है और लगातार जनगणना के मुद्दे को उठाती रही है। अब उत्तर प्रदेश की भाजपाई सरकार अगर जनगणना नही करवाती है तो एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक, आदिवासी समाज इसको वोट नहीं देगा।”

आरक्षण का कोटा बढ़ाने की मांग करते हुए अखिलेश ने कहा– “बिहार सरकार द्वारा आंकड़ा जारी करने के बाद अब ओबीसी आरक्षण को तत्काल 60 प्रतिशत करना चाहिए, क्योंकि 15 प्रतिशत को 60 प्रतिशत आरक्षण अन्याय हैं। उन्हें भी आरक्षण दिया जाये। सामान्य वर्ग आरक्षण को 15 प्रतिशत किया जाये। यही सामाजिक न्याय है। अब हर राज्य में इसकी मांग उठनी चाहिए, क्योंकि धन और धरती बंट के रहेगी।” 

अखिलेश यादव ने सामाजिक न्याय का गणितीय आधार बताते हुए लिखा– “जातिगत जनगणना 85-15 के संघर्ष का नहीं, बल्कि सहयोग का नया रास्ता खोलेगी और जो लोग प्रभुत्वकामी नहीं हैं, बल्कि सबके हक़ के हिमायती हैं, वो इसका समर्थन भी करते हैं और स्वागत भी। जो सच में अधिकार दिलवाना चाहते हैं वो जातिगत जनगणना करवाते हैं। भाजपा सरकार राजनीति छोड़े और देशव्यापी जातिगत जनगणना करवाए। जब लोगों को ये मालूम पड़ता है कि वो गिनती में कितने हैं तब उनके बीच एक आत्मविश्वास भी जागता है और सामाजिक नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ एक सामाजिक चेतना भी, जिससे उनकी एकता बढ़ती है और वो एकजुट होकर अपनी तरक़्क़ी के रास्ते में आनेवाली बाधाओं को भी दूर करते हैं, नए रास्ते बनाते हैं और सत्ताओं और समाज के परंपरागत ताक़तवर लोगों द्वारा किए जा रहे अन्याय का ख़ात्मा भी करते हैं। इससे समाज बराबरी के मार्ग पर चलता है और समेकित रूप से देश का विकास होता है। जातिगत जनगणना देश की तरक़्क़ी का रास्ता है।” इसके साथ ही अखिलेश ने कहा कि “अब ये निश्चित हो गया है कि पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) ही भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे।”

वहीं ऑल इंडिया पसमांदा महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर ने अपनी प्रतिक्रिया में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट उनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन की सफलता है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले 18 दिसंबर, 2009 को उन्होंने देश में जातिगत जनगणना का सवाल राज्यसभा में उठाया था। उन्होंने कहा कि इस सवाल को लोकसभा में शरद यादव, लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव, भाजपा के सांसद गोपीनाथ मुंडे आदि ने उठाया था, जिसके कारण तत्कालीन यूपीए सरकार ने जातिगत जनगण्ना कराने का फैसला किया। हालांकि उस जनगणना को सार्वजनिक नहीं किया गया। बाद में नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मांग को ठंडे बस्ते में रखा। अली अनवर ने कहा कि पहले यह केवल अनुमान के आधार पर कहा जाता था कि 100 में 80 मुसलमान पसमांदा हैं, लेकिन बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट ने इसे स्थापित कर दिया है और संघर्ष के लिए ठोस आधार दे दिया है।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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