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तेलंगाना : धनबल और बाहुबल का जवाब दे रही भैंस वाली बहन बारेलक्का

दलित समुदाय की बारेलक्का साफगोई से अपनी बात कहती हैं और उनके संवाद कौशल से जनता और मीडिया दोनों ही प्रभावित हैं। उन्हें चुनाव मैदान से हटने के लिए धमकाया गया और उनके छोटे भाई, जो स्कूल में पढ़ते हैं, पर हमला भी हुआ। मगर उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। पढ़ें, प्रो. कांचा आइलैय्या शेपर्ड की टिप्पणी

बारेलक्का (भैंस वाली बहन) का असली नाम कर्ने शिरिषा है। करीब पच्चीस साल की शिरिषा दक्षिण तेलंगाना के कोल्लापुर विधानसभा क्षेत्र में रहती हैं। वह बेरोजगार और निर्धन हैं और चुनाव लड़ रहीं हैं। वह बेरोजगार युवाओं की प्रतिनिधि के रूप में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार कोल्लापुर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव मैदान में हैं। 

आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद से तेलंगाना में चुनावों के दौरान धनबल का महत्व बहुत बढ़ गया है। ऐसे में बारेलक्का एक नई चुनावी संस्कृति और एक नई नैतिकता का प्रकाश स्तंभ बन कर उभरी हैं। उन्हें सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त समर्थन मिला और विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, और तेलंगाना सहित कई राज्यों से बेरोजगार युवा बड़ी संख्या में उनका प्रचार करने के लिए कोल्लापुर पहुंचे। यहां तक कि बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा के धनी उम्मीदवार उनसे खतरा महसूस कर रहे हैं। 

वह साफगोई से अपनी बात कहती हैं और उनके संवाद कौशल से जनता और मीडिया दोनों ही प्रभावित हैं। उन्हें चुनाव मैदान से हटने के लिए धमकाया गया और उनके छोटे भाई, जो स्कूल में पढ़ते हैं, पर हमला भी हुआ। मगर उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। वे चुनाव लड़ने और मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने के अपने अधिकार की रक्षा के प्रति दृढ़संकल्पित हैं। यह इस राज्य और शायद पूरे देश के लिए नया है। वह मानतीं हैं कि चुनावों में धनबल और बाहुबल का महत्व बढ़ते जाने से चुनावी प्रक्रिया गरीब और कमज़ोरों के खिलाफ होती जा रही है। नई पीढ़ी को इस प्रवृत्ति से मुकाबला करना होगा। खास बात यह कि यह युवा दलित महिला, जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर, एक सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रही है। उनके समर्थकों में सभी जातियों और समुदायों के लोग शामिल हैं और समाज के सभी क्षेत्रों से आने वाली महिलाएं भी। 

एक नई आशा 

सत्ताधारी बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति), जो पहले टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति) थी, यदि अपने किसी चुनावी वायदे को पूरा करने में नितांत असफल रही है तो वह है बेरोजगारों को काम दिलवाना। यह पार्टी केवल तेलंगाना के लिए बनी थी। दस साल सरकार चलाने के बाद टीआरएस की महत्वाकांक्षाएं अखिल भारतीय हो गईं हैं। अब वह बीआरएस है और इस छोटे से राज्य का धन अखिल भारतीय स्तर पर अपनी सरकार का प्रचार करने पर खर्च कर रही है। बारेलक्का ने इस पार्टी के सबसे कमज़ोर पक्ष को अपना चुनाव एजेंडा बनाया है। ऐसा लगता है कि इसके कारण पूरे प्रदेश के बेरोजगार युवा, सत्ताधारी दल के खिलाफ हो गए हैं। बारेलक्का के चुनाव लड़ने से इस क्षेत्र को छोड़कर अन्य 118 निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस को फायदा हो सकता है क्योंकि पूरे प्रदेश के बेरोजगार युवा इस महिला की सरकार के खिलाफ लड़ाई से जुड़ गए हैं। बीआरएस के नेताओं का दावा है कि उनकी सरकार ने कई जनकल्याण योजनाएं लागू की हैं। लेकिन यह तो घर-घर दिख रहा है कि बेरोजगार युवाओं के लिए कुछ भी नहीं हुआ है। 

चुनाव प्रचार के दौरान लोगों का अभिवादन करतीं व अपनी भैंस के साथ कर्ने शिरिषा ऊर्फ बारेलक्का

तेलंगाना के राज्य बनने की प्रक्रिया में करीब 1,500 युवाओं को आत्महत्या के अंधेरे में धकेल दिया गया था। बीआरएस के नेताओं, विशेषकर के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) परिवार के सदस्यों, ने युवाओं से बार-बार आह्वान किया था कि अगर राज्य के दो टुकड़े नहीं किये गए तो वे आत्मदाह कर लें। 

बारेलक्का अपने संघर्ष का ब्यौरा देते हुए बतातीं हैं कि किस तरह उन्होंने उधार लेकर कोचिंग सेंटरों पर पैसा लुटाया और कैसे उन्हें लंबे समय तक हैदराबाद में रहना पड़ा – एक ऐसे शहर में जो ग्रामीण युवाओं का बहुत स्वागत नहीं करता है। ग्रुप वन की नौकरियों के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते समय वह निःशुल्क खाना बांटने वाली संस्थाओं और मंदिरों से मिलने वाले प्रसाद के आसरे थीं। इसके बाद भी उन्होंने पढ़ाई की और परीक्षाएं भी दीं, मगर किसी न किसी बहाने उन्हें नौकरी नहीं दी गई। वे बार-बार लोगों से कह रही हैं कि वो प्रदेश के उन 40 लाख बेरोजगार युवाओं के लिए लड़ेंगीं, जिनकी उम्र गुज़रती जा रही है और जिनकी ऊर्जा घटती जा रही है, मगर काम-धंधा न होने के कारण वे न तो शादी-ब्याह कर पा रहे हैं और ना ही उनकी जिंदगी में चैन है। वे कहतीं हैं कि इन बेरोजगार युवाओं के दुखों के लिए सरकार ज़िम्मेदार है। 

गत 25 नवंबर, 2023, मतलब चुनाव प्रचार थमने के तीन दिन पहले, मैं उनके साथ था। उनका जुलूस सबसे धनी कांग्रेस उम्मीदवार जुपाली कृष्णा राव के गांव जुपाली से गुजर रहा था। कृष्णा राव पहले टीआरएस में थे और उसकी सरकार में मंत्री भी थे। अब वे कांग्रेस में हैं। बारेलक्का के जुलूस में बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवान शामिल थे। उनके जुलूस में दोनों तेलुगू राज्यों से आई दर्जनों कारें भी थीं। सैकड़ों युवा नारे लगा रहे थे– “बारेलक्का को वोट दो”, “सीटी [बारेलक्का को आवंटित चुनाव चिह्न] को वोट दो,” “युवा बेरोजगारों की जान बचाओ” आदि। 

धरणी पोर्टल के कारण वे अपनी ज़मीन खो बैठीं 

बारेलक्का ग्रेजुएट हैं। उनकी मां एक भोली-भाली मजदूर हैं। उनके दो छोटे भाई हैं। उनके पिता शराबखोर थे। उन्होंने परिवार की एकमात्र संपत्ति 10 गुंता (एक एकड़ की एक-चौथाई) खेती की ज़मीन अपनी पत्नी को बिना बताए बेच दी और घर छोड़ कर चले गए। धरणी पोर्टल पर कोई भी व्यक्ति अपने परिवार की सदस्यों की सहमति या उनके दस्तखत के बगैर अपनी ज़मीन बेच सकता था। बारेलक्का का कहना है कि उनके पिता ने बिना उन्हें या उनके मां को बताए ज़मीन किसी को बेच दी। अब उस ज़मीन को फिर से हासिल करने का कोई तरीका नहीं है। वह कहती हैं कि “मैंने लोगों से भीख मांगी, उनके पैर पड़े कि वे हमारी ज़मीन हमें वापस दिलवा दें, मगर कुछ नहीं हुआ।” एक टीवी इंटरव्यू में बारेलक्का ने कहा, “हमारी ज़मीन को धरणी पोर्टल और मेरा नशेड़ी बाप निगल गए।” यह सब सुनकर लोग सरकार के खिलाफ और भड़क रहे हैं। यह वास्तविकता भी है कि धरणी पोर्टल, छोटे किसानों के लिए मुसीबत बन गया है। वे धरणी पोर्टल के जमीन माफिया का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। 

बारेलक्का को उम्मीद थी कि नए तेलंगाना राज्य में उन्हें नौकरी मिलेगी। केसीआर की पार्टी ने लोगों से वायदा किया था कि प्रदेश के बंटवारे के बाद वे सबको काम दिलवाएंगे। जिस समय तेलंगाना बना, बारेलक्का 13 साल की थीं। वह एक स्कूल में पढ़ती थीं और उन्होंने तेलंगाना को अलग राज्य घोषित किये जाने के समर्थन में आंदोलन में हिस्सा लिया था। उन्हें उम्मीद थी कि नए राज्य में उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी और वह अपनी मां की मदद कर सकेंगीं। 

उन्होंने राज्य प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए कई परीक्षाएं दीं। उन्होंने ग्रुप वन से लेकर कनिष्ठ पदों तक की नियुक्ति के लिए योग्यता भी हासिल की। लेकिन हर बार या तो चयन की प्रक्रिया स्थगित कर दी गई या लिखित परीक्षाएं रद्द कर दी गईं। यह कभी इस बहाने से किया गया कि प्रश्नपत्र लीक हो गए हैं तो कभी किसी और बहाने से। 

केसीआर सरकार बढ़ती बेरोज़गारी के प्रति उदासीन बनी रही और उसने राज्य की शिक्षा प्रणाली का नाश कर दिया। तेलंगाना आंदोलन के समय शिक्षा व्यवस्था ठप्प रही और पिछले दस साल से भी ठप्प पड़ी है। सरकार ने शिक्षा प्रणाली को ख़त्म कर दिया है। तेलंगाना की तुलना में आंध्र प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की दृष्टि से स्थिति काफी बेहतर है। बारेलक्का नए राज्य की नई सरकार के नए तरीकों की शिकार हैं। 

भैंसें खरीद कर बनी बारेलक्का 

बारेलक्का को पता नहीं था कि उनके परिवार का भविष्य क्या होगा। उन्होंने फ़ोन पर वीडियो बनाना सीख लिया और इन वीडियो को वे अपने इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट करने लगीं। एक वीडियो में वह कहती हैं, “नमस्कार दोस्तों, मैं आपकी बारेलक्का हूं। चाहे हम कितनी ही मेहनत से पढ़ाई क्यों न करें, चाहे हम कोई भी डिग्री हासिल क्यों न कर लें, यहां तेलंगाना में हमें कोई काम नहीं मिलेगा। यही कारण है कि मैंने अपनी मां के संघर्ष के बल पर चार भैंसें खरीद ली है। अब मैं अपनी भैंसों के साथ खेतों में हूं।” यह वीडियो वायरल हो गया। पुलिस ने अपने राजनैतिक आकाओं के इशारे पर बारेलक्का के खिलाफ मामला दर्ज किया। उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 505(2) के तहत, सरकार को बदनाम करने का आरोपी बनाया गया। उन्हें अदालत के चक्कर काटने पड़े। इस तरह उनकी मुसीबतों में एक और इज़ाफा हो गया। 

बारेलक्का संघर्षों के बीच अपने दिन काट रही थीं। इस बीच, 2023 के विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई। अपने जीवन संघर्ष में जीत की आखिरी उम्मीद में बारेलक्का ने कोल्लापुर क्षेत्र से नामांकन का पर्चा भर दिया। किसी स्थापित राजनेता को यह उम्मीद नहीं थी कि उनका नामांकन पत्र सही पाया जाएगा। उन्हें लग रहा था कि जिस तरह बारेलक्का द्वारा दी गईं परीक्षाएं बेनतीजा रहीं, उसी तरह उनका पर्चा भी बेनतीजा रहेगा। मगर उनका पर्चा ख़ारिज नहीं हुआ और उन्हें ‘सीटी’ चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया गया।

उनके चुनाव प्रचार ने जल्दी ही जोर पकड़ लिया। उनके समर्थकों ने प्रचार अभियान पर खर्च करने के लिए उन्हें छोटी-छोटी धनराशि दी और उनके साथ फुटपाथ पर रात बिताने में उन्होंने कोई गुरेज़ नहीं किया। कई यूट्यूबर्स उन्हें फॉलो कर रहे हैं, कई गीतकारों ने उनके ऊपर गीत लिखे हैं और गायकों ने उनके वीडियो बनाकर इंटरनेट पर अपलोड किए हैं। उनके प्रचार वाहनों पर बैनर लगे हैं और उनके काफिले में कई कारें शामिल हैं। इस चुनाव में बारेलक्का एक नैतिक ताकत के रूप में उभरीं हैं। वह निश्चित तौर पर एक नैतिक राजनैतिक योद्धा हैं, जिन्होंने तेलंगाना चुनाव को नया आयाम दिया है। वह जीतें या हारें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन यह तो तय है कि उन्होंने युवाओं को आगे की राह दिखाई है।

कुछ वकीलों ने तेलंगाना उच्च न्यायालय से प्रार्थना की है कि सरकार को बारेलक्का और उनके परिवार की सुरक्षा का इंतजाम करने का निर्देश दिया जाए। सरकार और चुनाव आयोग दोनों उनके और उनके परिवार की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं। यह आशंका तो है ही कि धनी और प्रभावशाली राजनेता इस गरीब और कमज़ोर लड़की के विरुद्ध कुछ भी कर सकते हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि उसने असाधारण साहस और आत्मविश्वास का परिचय दिया है। 

भारत के नागरिक समाज में जो भी नैतिक तत्त्व अब भी बचे हुए हैं, उन्हें बारेलक्का की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए। वह भविष्य के लिए आशा है। वह देश को उसी तरह ताकत दे सकतीं हैं, जिस तरह उनकी बहन भैंसों ने सदियों से इस देश को ताकत दी है। 

(अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

कांचा आइलैय्या शेपर्ड

राजनैतिक सिद्धांतकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता कांचा आइलैया शेपर्ड, हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के सामाजिक बहिष्कार एवं स्वीकार्य नीतियां अध्ययन केंद्र के निदेशक रहे हैं। वे ‘व्हाई आई एम नॉट ए हिन्दू’, ‘बफैलो नेशनलिज्म’ और ‘पोस्ट-हिन्दू इंडिया’ शीर्षक पुस्तकों के लेखक हैं।

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