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मराठाओं को ओबीसी आरक्षण देने के खिलाफ उतरे छगन भुजबल, कपिल पाटिल ने किया समर्थन

भुजबल ने कहा कि आरक्षण गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है बल्कि वर्षों से जो दबे कुचले हैं, उन्हें सामाजिक न्याय देने के लिए आरक्षण दिया गया जबकि मराठा समाज को ऐसी किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ी है। वहीं, कपिल पाटिल का कहना है कि यदि कुनबी (उत्तर भारत में कुर्मी) समाज के लोग अपने जातिगत अहंकार का वस्त्र फेंककर खुद को समाज से जुड़ना चाहते हैं तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर सूबे के दो बड़े ओबीसी नेताओं छगन भुजबल और कपिल पाटिल के विचार अलग-अलग सामने आए हैं। राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री छगन भुजबल ने राज्य में सत्तासीन अपने ही गठबंधन की एकनाथ शिंदे सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। दरअसल, मराठा आरक्षण को लेकर दो बार भूख हड़ताल करनेवाले मनोज जांगरे पाटिल ने राज्य सरकार को आगामी 24 दिसंबर तक की मोहलत दी है और वे अपने आंदोलन को निर्णायक बनाने के लिए राज्यव्यापी यात्राएं कर रहे हैं। वहीं दूसरी और छगन भुजबल ने कहा है कि सरकार मराठाओंं के लिए आरक्षण का फैसला लेती है तो उन्हें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन उन्हें ओबीसी के आरक्षित कोटे में से आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। उधर महाराष्ट्र में जातिगत जनगणना की मांग उठाते रहनेवाले कपिल पाटिल, जो कि महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य व जनता दल यूनाईटेड के प्रदेश अध्यक्ष हैं, ने मराठाओं को आरक्षण देने का समर्थन किया है।

असल में राज्य में मराठाओं को कुनबी व कुर्मी जाति का प्रमाणपत्र देकर ओबीसी आरक्षण का लाभ देने के संबंध में सरकार के फैसले का विरोध राज्य स्तर पर ओबीसी समुदायों के संगठनों द्वरा किया जा रहा है। इसी कड़ी में गत 17 नवंबर को छगन भुजबल ने सूबे जालना जिले में एक विशाल रैली के माध्यम से अपनी ही सरकार को चेताया और कहा कि भाजपा राज्य में जातिगत चुनाव कराने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो भाजपा के लोग यह कहते हैं कि वे ओबीसी वोटों से जीतकर आते हैं, और दूसरी तरफ उनके ही आरक्षण की हकमारी की बात करते हैं। उन्होंने साफ कहा कि राज्य सरकार को ओबीसी कोटे के तहत मराठा जाति के लोगों को आरक्षण देने का निर्णय यदि सरकार लेती है तो वे पूरे राज्य में आंदोलन खड़ा करेंगे।

तीस साल बाद जालना जिले में फिर गूंजी ओबीसी के हितों की मांग

बताते चलें कि गत 17 नवंबर, 2023 को महाराष्ट्र के जालना जिले के अंबाड में आयोजित रैली एक तरह से इतिहास का हिस्सा बना। करीब तीन दशक पहले 6 जून, 1993 को महात्मा फुले समता परिषद की जनसभा हुई थी। भुजबल इसके संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिश को मंजूर किया था और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने ओबीसी समाज को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया था। 

ओबीसी रैली में राज्य के खाद्य व आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल, विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार सहित कई विधायक शामिल हुए। भुजबल ने मराठा आरक्षण की मांग कर रहे मनोज जरांगे पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि आरक्षण गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है बल्कि वर्षों से जो दबे कुचले हैं, उन्हें सामाजिक न्याय देने के लिए आरक्षण दिया गया जबकि मराठा समाज को ऐसी किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ी है। उन्होंने राज्य में जातिगत जनगणना नहीं कराने को लेकर भी भाजपा पर हमला बोला। 

उन्होंने कहा कि यदि मराठों को आरक्ष्ण ओबीसी आरक्षण की कीमत पर दी गई तो राज्य सरकार से ईंट-से-ईंट बजाकर मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। भुजबल ने कहा कि मराठा अब कुनबी मराठा के रूप में धनगर, माली और वंजारी समाज में घुसना चाहते हैं, लेकिन ओबीसी समुदाय अपने मौजूदा कोटे में उन्हें घुसने की इजाजत नहीं देगा। उन्होंने गत 30 अक्तूबर को बीड में एनसीपी विधायक प्रकाश सोलंके और विधायक संदीप क्षीरसागर के आवास पर आगजनी और उससे पहले एक सितंबर को अंतरावली-सराटी गांव में पुलिस पर हुए हमले को लेकर सवाल उठाया, जिसमें 70 पुलिसकर्मी घायल हुए थे।

छगन भुजबल व कपिल पाटिल

भुजबल से अलग कपिल पाटिल के विचार

वहीं महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य व जनता दल यूनाईटेड के राज्य प्रमुख कपिल पाटिल ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में खुद को छगन भुजबल के विचारों से अलग रखते हुए कहा कि यदि कुनबी (उत्तर भारत में कुर्मी) समाज के लोग अपने जातिगत अहंकार का वस्त्र फेंककर खुद को समाज से जुड़ना चाहते हैं तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह इसलिए कि उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्र के कुनबी पहले से ही ओबीसी में शामिल हैं। केवल कोंकण क्षेत्र (पश्चिमी महाराष्ट्र) और मराठवाड़ा के कुनबियों को शामिल नहीं किया गया। आप यह भी देखें कि केवल एक कोंकण क्षेत्र को छोड़ दें तो शेष महाराष्ट्र में कुनबियों और मराठों में कोई अंतर नहीं है। कोंकण के मराठे खुद को राव मराठा कहते हैं। इनमें नारायण राणे, रामदास कदम और यहां तक कि मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गांव के लोग भी शमिल हैं, जे ओबीसी का दर्जा नहीं चाहते। जबकि इस क्षेत्र के कुनबी पिछड़ों में भी अति पिछड़े हैं। 1940 के दशक में एक समय था जब कुनबी खुद को क्षत्रिय मानने लगे थे। लेकिन आप देखें कि महात्मा फुले ने जब समानुपातिक प्रतिनिधित्व की बात की तो उनमें कुनबी समुदाय के लोग भी शामिल थे। उनके बाद 1902 में कोल्हापुर के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज ने कुनबियों को आरक्षण की श्रेणी में रखा। बाद में डॉ. आंबेडकर भी कुनबियों के लिए आरक्षण को लेकर सहमत थे। तो मेरे कहने का मतलब यह है कि समाज के लोगों को एक-दूसरे से लड़वाना नहीं चाहिए। आरक्षण से बेरोजगारी खत्म नहीं होगी। लेकिन आरक्षण भेदभाव व अन्याय के उन्मूलन का एक रास्ता जरूर है। आरक्षण को इसी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।

कपिल पाटिल ने यह भी कहा कि “आज यदि महराष्ट्र में बिहार के जैसे जातिगत जनगणना हो तो सभी शूद्र जातियों, जिनमें कुनबी भी शामिल हैं, की संख्या लगभग उतनी ही होगी, जितनी कि बिहार में है। इसलिए महाराष्ट्र में अब ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण से काम नहीं चलेगा। आवश्यकता है कि यहां भी आरक्षण 60-65 फीसदी तक बढ़ाई जाय।”

केवल दो कानून बनवा दें छगन भुजबल : प्रो. श्रवण देवरे

महाराष्ट्र के ओबीसी विमर्शकार प्रो. श्रावण देवरे ने अपनी प्रतिक्रिया में दूरभाष पर बताया कि महाराष्ट्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री छगन भुजबल का यह कहना बिल्कुल सही है कि ओबीसी के हकमारी कर मराठों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने भाजपानीत सरकार के खिलाफ अपनी बात जरूर कही है, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि यदि सरकार ने उनकी बात नहीं मानी तब वे सरकार में शामिल रहेंगे या नहीं रहेंगे।

प्रो. देवरे ने बताया कि वे राज्य सरकार से दो तरह की मांगें रख रहे हैं। पहली मांग यह कि सरकार बिहार की तरर्ज पर जल्द-से-जल्द जातिवार जनगणना अभियान चलाए। वहीं दूसरी मांग के बारे में प्रो. देवरे बताते हैं पहले पिछड़ा आयोग (कालेलकर आयोग) ने मराठों को आरक्षण की श्रेणी से बाहर रखा, क्योंकि वे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नहीं हैं। इसके बाद जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई तब उसमें भी मराठों को आरक्षित कोटे से बाहर रखा गया। यहां तक कि सूबे में विभिन्न प्रांतीय सरकारों द्वारा अबतक गठित आठ पिछड़ा वर्ग आयोगों ने भी मराठों को आरक्षित श्रेणी से बाहर रखा। इसकी वजह यह है कि मराठा हमेशा से समृद्ध जाति रही है। 

प्रो. देवरे ने कहा कि सरकार जल्दी से जल्दी सूबे में जातिगत जनगणना करवाए, इसके लिए वह एक विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए। वहीं देवरे ने कहा कि राज्य में 2004 से ही मराठा जाति के लोग ओबीसी का लाभ उठा रहे हैं। सरकार को विधानसभा में एक यह विधेयक भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिसके जरिए 2004 के बाद मराठों को कुनबी बताकर आरक्षण का लाभ लिया जा रहा है, वे सब निरस्त किए जाएं। यदि छगन भुजबल अपनी सरकार के खिलाफ खड़े हैं तो उन्हें इसके लिए पुरजोर अभियान चलाना चाहिए।

(संपादन : अनिल)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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