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मुंगेरी लाल के ‘हसीन’ सपने सच हुए

यह विडंबना ही है कि मुंगेरी लाल के सामाजिक योगदान और राजनीतिक महत्‍व पर कभी किसी नेता या पार्टी ने ध्‍यान नहीं दिया। मुंगेरी लाल आयोग की रिपोर्ट बिहार की पिछड़ी जातियों के लिए मील का पत्‍थर बन गई। बता रहे हैं वीरेंद्र यादव

मुंगेरी लाल के सपने सचमुच हसीन थे। उनका सपना तो सामाजिक और आर्थिक गैरबराबरी को पाटने का था। उनका यह सपना भले ही व्यापक स्तर अब भी साकार नहीं हुआ, लेकिन वे सच जरूर हुए। सामाजिक विषमता और भेदभाव के कोख में पले-बढ़े मुंगेरी लाल का जीवन एक सामान्‍य निम्‍न-मध्‍यम वर्गीय परिवार का था। वे पासवान जाति से आते थे। उनका अपना पुश्‍तैनी घर पटना जिले के दानापुर कैंट के पास शाहपुर गांव में था। वे बचपन में ही अपनी ननिहाल कुर्जी आ गये थे। कुर्जी मुहल्‍ला पटना स्थित सदाकत आश्रम के आसपास ही है। यह जगह अब कुर्सी मोड़ के नाम से चर्चित है। गांधी मैदान से दानापुर जाने वाली सड़क के किनारे ही है मुंगेरी लाल का मकान। घर के दरवाजे पर नाम का प्‍लेट भी लगा हुआ है। स्‍वर्गीय मुंगेरी लाल, पूर्व मंत्री, बिहार सरकार।

बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आने के बाद मुंगेरी लाल अचानक काफी चर्चा में आ गये हैं। वजह यह है कि बिहार में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग इनकी ही अध्‍यक्षता में बना था। इस आयोग का गठन 1970 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की नेतृत्व वाली कांग्रेसी हुकूमत ने की थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1976 में तत्कालीन जगन्नाथ मिश्र सरकार को सौंपी थी। 

इसी आयोग ने पिछड़ी जातियों को दो भागों में विभाजित किया था। आयोग ने ओबीसी की साधन-संपन्‍न जातियों को दूसरी अनुसूची और अत्‍यंत पिछड़ी जातियों को पहली अनुसूची में रखा था। इनके लिए आरक्षण का प्रावधान भी अलग-अलग किया था। उन्‍होंने अपनी रिपोर्ट में महिला और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए भी आरक्षण का फार्मूला तय किया था। उसी आधार पर कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में पिछड़े वर्गों के लिए कोटा तय किया था।

मुंगेरी लाल (1 जनवरी, 1904 – 29 जून, 2001)

अपनी रिपोर्ट के कारण मुंगेरी लाल पिछड़ी जातियों के लिए सदैव के लिए प्रासंगिक हो गए। उनका जन्‍म 1 जनवरी, 1904 को हुआ था और उनका देहांत 29 जून, 2001 को हुआ। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर 2006 से उनकी जयंती पर 1 जनवरी को राजकीय समारोह का भी आयोजन किया जाता है।

उनके स्‍वतंत्रता सेनानी प्रमाणपत्र के अनुसार, अक्‍टूबर 1930 से मार्च 1931 तक और जून 1933 से जनवरी 1935 तक अवज्ञा आंदोलन के तहत पटना कैंप जेल में बंदी भी रहे थे। आवास सदाकत आश्रम के पास होने के कारण कांग्रेसी नेताओं के साथ उनके घनिष्‍ठ संबंध थे और कांगेस नेताओं का उनके घर आना-जाना लगा रहता था। गांधी भी उनके आवास पर कई बार आये थे। मुंगेरी लाल राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं के काफी करीब थे। कांग्रेस के आंदोलनों में सक्रियता के कारण उन्‍हें 1950 के पहले चुनाव में पटना पश्चिम सह नौबतपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट मिला। यह क्षेत्र उस समय दो सदस्‍यीय थी। मतलब यह है कि इस सीट से दो विधायक चुने जाते थे। एक सामान्‍य जाति के और दूसरे अनुसूचित जाति के। वे अनुसूचित जाति वाली सीट से निर्वाचित हुए थे। 1955 में सीटों के नए सिरे से निर्धारण के कारण सीट का स्‍वरूप बदल गया और वे चुनाव नहीं लड़ सके।

इसके बाद 1960, 1966 और 1972 में तीन बार विधानसभा कोटे से कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी बने। इसी दौरान उन्‍हें पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्‍यक्ष बनाया गया था। मुंगेरी लाल कई बार राज्‍य सरकार में मंत्री भी रहे।

मुंगेरी लाल के पिता का नाम मानकी लाल था। मुंगेरी लाल के एक पुत्र थे– केदारनाथ। वे विधान परिषद में कर्मचारी थे। उनका निधन सेवाकाल में ही हो गया था। उनकी जगह पर बड़े पुत्र कुमार प्रतीक नाथ को परिषद में नौकरी मिल गयी। मतलब मुंगेरी लाल के एक पोते परिषद में कार्यरत हैं, जबकि छोटे पोते कुमार गौरव अपना कारोबार करते हैं।

कुमार गौरव बताते हैं कि जब जीतनराम मांझी मुख्‍यमंत्री थे तो कैबिनेट के एक फैसले के अनुसार कुर्जी का नाम बदलकर मुंगेरी लाल नगर करने का निर्णय हुआ था, लेकिन आज तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

यह विडंबना ही है कि मुंगेरी लाल के सामाजिक योगदान और राजनीतिक महत्‍व पर कभी किसी नेता या पार्टी ने ध्‍यान नहीं दिया। मुंगेरी लाल आयोग की रिपोर्ट बिहार की पिछड़ी जातियों के लिए मील का पत्‍थर बन गई। इसी रिपोर्ट के लागू होने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की मांग को लेकर आंदोलन हुए तथा इसके कारण ही मंडल आयोग का गठन भी किया गया। अब यह रिपोर्ट राष्‍ट्रीय विमर्श का मुद्दा बन गया है, लेकिन खुद मुंगेरी लाल इ‍तिहास के पन्‍नों से गायब होते जा रहे हैं। यही समय और संभावनाओं की त्रासदी है।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

वीरेंद्र यादव

फारवर्ड प्रेस, हिंदुस्‍तान, प्रभात खबर समेत कई दैनिक पत्रों में जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव इन दिनों अपना एक साप्ताहिक अखबार 'वीरेंद्र यादव न्यूज़' प्रकाशित करते हैं, जो पटना के राजनीतिक गलियारों में खासा चर्चित है

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