h n

गोरखपुर गिरफ्तारी मामले में एस.आर. दारापुरी का बयान

“हम लोगों पर लगाए गए सभी आरोप बिल्कुल असत्य, फर्जी एवं निराधार हैं और यह केवल हमें तथा अन्य को डराने तथा दलितों की जमीन की मांग को दबाने के लिए लगाए गए हैं”

[उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी व ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.आर. दारापुरी का यह बयान हमें उनके ईमेल से प्राप्त हुआ है। वे प्रसंगाधीन मामले में नामजद अभियुक्त हैं। उनके इस बयान को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं] 

“उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आज कल जगह-जगह दलितों का सम्मेलन करके उनका कल्याण करने तथा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। उसके इस दावे की पोल गोरखपुर में गत 10-11 अक्टूबर, 2023 को सरकार द्वारा दलितों के लिए जमीन मांगने पर दलित नेताओं को जेल में डालने की घटना से पूरी तरह से खुल जाती है। 

ध्यातव्य है कि 10 अक्टूबर, 2023 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आंबेडकर जन मोर्चा द्वारा भूमिहीन दलितों को एक-एक एकड़ भूमि आवंटन की मांग को लेकर गोरखपुर स्थित कमिश्नर कार्यालय के परिसर में एक धरने का आयोजन किया गया था। उसमें मुझे भी एक वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। 

मैं 10 अक्टूबर को प्रात: ट्रेन द्वारा गोरखपुर पहुंचा था और एक होटल में रुका था। वहां से मैं लगभग 12.30 बजे धरना स्थल पर पहुंचा था और मैंने लगभग 15 मिनट तक भाषण दिया था, जिसमें मैंने दलितों के लिए भूमि की आवश्यकता, भूमि आवंटन की मांग का औचित्य तथा पूर्व में इंदिरा गांधी द्वारा भूमि आवंटित किए जाने की बात कही थी। उसके लगभग आधा घंटा बाद मैं होटल वापस आ गया था।

धरनास्थल पर लगभग लगभग 8-9 हजार की भीड़ थी और उसमें लगभग 90 फीसदी महिलाएं थीं, जो जमीन की मांग को लेकर बहुत उत्साहित एवं मुखर थीं। वहां पुलिस तथा मजिस्ट्रेट मौजूद थे और सारा कार्यक्रम बहुत अनुशासित ढंग से चल रहा था। मौके पर मेरी भेंट धरने के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला तथा डॉ. सिद्धार्थ रामू तथा कुछ अन्य परिचित लोगों से हुई थी।

अगले दिन 11 अक्टूबर को सवेरे 6 बजे मुझे होटल वाले ने बताया कि पुलिस इंस्पेक्टर मुझसे  मिलने के लिए आया है। मैं नीचे लॉबी में गया तो उसने मुझे बताया कि आपको थाने पर चलना है। मैंने उसे बताया कि मैं फ़्रेश होकर तथा नहा-धोकर एवं नाश्ता आदि करके ही जा सकता हूं। इसके बाद मैं अपने कमरे में वापस आया और धरने के संयोजक श्रवण कुमार निराला से बात करने की कोशिश की, परंतु उनका मोबाइल बंद पाया। 

मुझे कुछ गड़बड़ होने की आशंका हुई और मैंने अपने फेसबुक पर लगभग 7.15 बजे पोस्ट लिखी– “मैं कल गोरखपुर आंबेडकर जन मोर्चा की तरफ से दलित एवं नागरिक अधिकार के मुद्दों को लेकर आयोजित जनसभा में भाग लेने के लिए आया था तथा सभा बिल्कुल शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुई थी, आज सुबह गोरखपुर की पुलिस मुझे थाने पर ले जाने के लिए आई है।” 

जमानत मिलने के बाद गोरखपुर जेल से बाहर एस.आर. दारापुरी, डॉ. सिद्धार्थ रामू और श्रवण कुमार निराला

इस पर हमारी पार्टी ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने तुरंत फेसबुक पर मेरी गिरफ्तारी के संबंध में एक पोस्ट साझा कर दिया। इसके बाद नाश्ता आदि करके लगभग 8.30 बजे इंस्पेक्टर मुझे थाना रामगढ़ ताल पर ले गए और मुझे वहां बैठा लिया गया। उसके बाद मुझे दो अन्य के साथ थाना कैंट ले जाया गया। वहां से शाम को अस्पताल में डाक्टरी जांच के बाद मुझे तथा अन्य आठ लोगों को गोरखपुर जेल भेज दिया गया। हम लोग जेल में लगभग 1.30 बजे बैरक में दाखिल हो सके, परंतु उस दिन सारा दिन खाने को कुछ नहीं मिला। 

जैसाकि स्पष्ट है कि मेरी गिरफ़्तारी प्रात: सवा आठ बजे रामा होटल से की गई थी, परंतु पुलिस के कागजों में मेरी गिरफ़्तारी शाम को 4 बजे रेलवे स्टेशन गोरखपुर बस स्टैंड से दिखाई गई है।  

अगले दिन दिनांक 12 अक्टूबर को समाचार पत्र के माध्यम से हमें पता चला कि हमलोगों के विरुद्ध थाना कैंट में दिनांक 11 अक्टूबर को मुकदमा अपराध संख्या 717/2023 धारा  147/188/342/332/353/504/506/307/120 बी/ भा.द.वि., धारा 7 क्रिमिनल लॉ एमेंडमेंट एक्ट व धारा 3 लोक संपत्ति निवारण अधिनियम तथा 138 विद्युत अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया है, जिसमें 13 लोगों को नामजद किया गया तथा 10-15 अज्ञात आरोपी हैं। इसमें हमारे ऊपर बिना अनुमति के सभा करने, धारा 144 का उल्लंघन करने, सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालने, चोट पहुंचाने तथा धमकाने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, साजिश करने तथा विद्युत चोरी करने का आरोप लगाया गया है। हमारे ऊपर लगाए गए आरोप बिल्कुल फर्जी एवं निराधार हैं जैसाकि निम्नलिखित विश्लेषण से स्पष्ट है–

  1. बिना अनुमति के मीटिंग करना : आयोजक श्रवण कुमार निराला द्वारा अनुमति हेतु काफी दिन पूर्व प्रार्थना पत्र दिया गया था तथा वह अधिकारियों से व्यक्तिगत तौर पर मिले भी थे, जिस पर अधिकारियों ने उन्हें पूरी व्यवस्था करने का मौखिक आश्वासन दिया था। मीटिंग के दिन प्रातः 9 बजे  से सभास्थल पर शामियाना आदि लगना शुरू हो गया था, परंतु इस पर किसी भी अधिकारी द्वारा कोई आपत्ति नहीं की गई थी। उसके बाद 11 बजे से शाम तक सारा कार्यक्रम शांतिपूर्ण ढंग से चलता रहा और पुलिस बल एवं अधिकारी वहां उपस्थित रहे तथा किसी ने भी उस पर आपत्ति नहीं की। शाम करीब 9 बजे जिलाधिकारी मौके पर आए और उन्होंने ज्ञापन प्राप्त किया तथा भूमि आवंटन की मांग को उचित बताते हुए एक कमेटी बनाने का आश्वासन दिया तथा धरने को समाप्त कराया। यह देखने की बात है की यदि धरना बिना अनुमति के था तो प्रशासन ने उसे शुरू में ही रोका क्यों नहीं और जिलाधिकारी ने मौके पर आकर ज्ञापन क्यों लिया और कमेटी बनाने का आश्वासन क्यों दिया?
  2. बिजली चोरी का आरोप : यह सरासर फर्जी एवं निराधार है, क्योंकि वहां पर किसी भी प्रकार से बिजली का कनेक्शन लेना संभव नहीं था। मौके पर जनरेटर की व्यवस्था थी और उसी से माइक तथा प्रकाश की व्यवस्था की गई थी।
  3. कमिश्नर कार्यालय के कर्मचारी के साथ मारपीट एवं गला दबाने का आरोप : यह एकदम  निराधार एवं असत्य है, क्योंकि शिकायतकर्ता ने थाने पर दी गई लिखित तहरीर में इसका कोई उल्लेख नहीं किया था। डाक्टरी मुआयना के अनुसार उसने केवल सूंघने की समस्या एवं दाहिने कंधे में दर्द की बात कही थी, जिस के लिए डाक्टर ने ईएनटी सर्जन को रेफर करने तथा एक्स रे कराने की बात कही थी। यह उल्लेखनीय है कि इस मामले में 10 तारीख की 11 बजे की घटना की प्रथम सूचना 11 तारीख को प्रात: 6 बजे लगभग 18 घंटे के विलंब से लिखाई गई। उसमें शिकायतकर्ता का गला दबाने की कोई बात नहीं कही गई थी। लेकिन बाद में 5 घंटे बाद उसके 161 के बयान में गला दबाने की बात जोड़ दी गई, जोकि बिल्कुल फर्जी है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारे खिलाफ लगाए गए आरोपों को गैर-जमानतीय बनाकर जेल में डालना था।   
  4. कमिश्नर कार्यालय में तोडफोड : यह आरोप भी एकदम फर्जी एवं निराधार है, क्योंकि वहां किसी भी प्रकार की शांति भंग नहीं हुई थी।
  5. जेल में राजनीतिक बंदियों का दर्जा न दे कर सामान्य अपराधियों के साथ रखना : कुछ दिन पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति से मारपीट करने वाले एबीवीपी के सदस्यों को अलग बैरक में रखकर विशेष व्यवस्था की गई थी। जेल में प्रवास के दौरान हमें यह भी ज्ञात हुआ कि इससे पहले हत्या के आरोपी नेता अमरमणि त्रिपाठी को पूरी बैरक को खाली कराकर अकेले ही रखा गया था। जबकि हमलोगों के साथ सामान्य अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया।     

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि हम लोगों पर लगाए गए सभी आरोप बिल्कुल असत्य, फर्जी एवं निराधार हैं और यह केवल हमें तथा अन्य को डराने तथा दलितों की जमीन की मांग को दबाने के लिए लगाए गए हैं। इन्हीं आरोपों के आधार पर हम 9 लोगों, जिनमें दिल्ली से आए एक महिला सहित 4 पत्रकार भी थे, को गिरफ्तार कर 3 हफ्ते तक जेल में रखा गया। इसका मुख्य उद्देश्य यह संदेश देना था कि यदि भविष्य में कोई भी जमीन की मांग उठाएगा तो उसका हश्र भी हमलोगों जैसा ही होगा।”

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एस.आर. दारापुरी

एस.आर. दारापुरी पूर्व पुलिस महानिरीक्षक, उत्तर प्रदेश व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वर्तमान में वे ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...